अद्भुत है गुमला का टांगीनाथ मंदिर

शिवम शाहदेव

यूजी इंटर्न,स्‍कूल ऑफ मास कम्‍युनिकेशन

रांची विश्‍वविद्यालय, रांची

गुमला का  टांगीनाथ यहाँ आज भी भगवान परशुराम का विशालकाय फरसा इसी धाम के एक मंदिर में मौजूद है । वैसे तो यह फरसा खुले आसमान के नीचे है, लेकिन आज तक इसमें कभी भी जंग नहीं लगा। हजारों साल बाद भी यह पूरी तरह सुरक्षित है।यह गूमला जिले के डुमरी ब्लॉक में टांगीनाथ के महान त्रिशूल के लिए प्रसिद्ध है। यह गुमला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर और डुमरी से 8 किमी दूर है। टांगीनाथ पहाड़ पर लगभग 300 फीट ऊंचे स्थान पर स्थित है।यह धार्मिक और साथ ही ऐतिहासिक महत्व का एक स्थान है। वह छोटानाथपुर के नागवंशी राजा का इतिहास, सर्जुजा के रूक्सेलवन राजाओं और बारवी साम्राज्य के बारे में यहां लिखा गया है।
भगवान विष्णु, सुर्या, लक्ष्मी देवताओं की अनगिनत संख्या की पत्थर की मूर्तियाँ  हैं और अनेको शिवलिंग्स यहां मौजूद हैं। कुछ मूर्तियाँ अब भी अनजान हैं। कुछ लोग मानते हैं कि वे भगवान बुद्ध हैं। भगवान शिव का मुख्य मंदिर, महान त्रिशूल भूमि के अन्दर है, सूर्य मंदिर, सूर्यकुंड महान आकर्षण का केंद्र है

मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस फरसे से छेड़छाड़ की कोशिश करता है, उसे इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ता है। कहते हैं कि एक बार लोहार जनजाति के कुछ लोगों ने फरसे को जमीन से उखाड़ कर ले जाने की कोशिश की थी, लेकिन जब फरसा नहीं उखड़ा तो उन्होंने उसके ऊपरी भाग को काट दिया। हालांकि, उसे भी वो ले जाने में नाकाम रहे।कहा जाता है कि इस घटना के बाद आसपास रहने वाले लोहार जनजाति के लोगों की एक-एक कर मौत होने लगी, जिसके बाद वो इलाका ही छोड़कर चले गए। आज भी इस जनजाति के लोग आसपास के गांवों में रहने से घबराते हैं।मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में माता सीता के स्वयंवर के दौरान, जब भगवान राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा, तो उसकी भयंकर ध्वनि सुनकर परशुराम जी गुस्से में जनकपुर पहुंच गए और उन्होंने भगवान राम और लक्ष्मण को पहचाने बिना ही उन्हें खूब बुरा-भला कहा, लेकिन बाद में जब उन्हें ये अहसास हुआ कि राम जी भगवान विष्णु के अवतार हैं, तो वो बहुत लज्जित हुए और अपने किए का प्रायश्चित करने के लिए घने जंगलों के बीच एक पहाड़ पर चले गए। वहीं पर उन्होंने अपना फरसा गाड़ दिया और तपस्या करने लगे। उसी जगह को आज टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि फरसे के अलावा भगवान परशुराम के पदचिह्न भी वहां मौजूद हैं।

टांगीनाथ धाम में सैकड़ों शिवलिंग और प्राचीन प्रतिमाएं भी हैं और वो भी खुले आसमान के नीचे। बताया जाता है कि साल 1989 में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई करवाई थी, जिसमें हीरा जड़ित मुकुट और सोने-चांदी के आभूषण समेत कई कीमती वस्तुएं मिली थीं। अचानक ही खुदाई बंद कर दी गई। इसके बाद वहाँ काम रोक दिया गया खुदाई में मिली चीजें आज भी डुमरी थाना के मालखाने में रखी हुई हैं।

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