मनोज कुमार शर्मा
- हाल के कुछ सालों में शोर के बाद भी कई क्षेत्रों में चीन पर हमारी निर्भरता ज्यों की त्यों बनी हुई है।
- दाम कम दम ज्यादा, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की बातें बहुत सुहानी है, पर इसके लिये काम क्या हो रहे हैं?
79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब देशवासियों को संबोधित किया तो उन्होंने साफगोई से हर बात कही। चाहे वो घुसपैठियों को निकाल बाहर करने की बात हो, स्वदेशी फाइटर प्लेन इंजन बनाने की बात, देश में सौर उर्जा उपकरणों और इवी बैटरी का निर्माण या फिर सेमीकंडक्टर निर्माण में तेजी लाने की बात।
पहले के प्रधानमंत्रियों का लालकिले से देशवासियों के नाम संबोधन अमूमन रस्मि और नीरस रहा है। मनमोहन सिंह, गुजराल, पीवी नरसिंहराव, देवेगौड़ा या कोई और इतनी साफगोई से देश को संबोधित नहीं करते थे, लेकिन नरेन्द्र मोदी की खासियत है कि वो आम लोगों, पढे लिखे, मध्यवर्ग और युवाओं के मन में उठ रहे सवालों को भांप कर संबोधन और वादे करते हैं।
15 अगस्त की सुबह केसरिया पगड़ी में प्रधानमंत्री ने जब कहा कि, हम लड़ाकू जहाजों के लिये स्वदेशी इंजन बनायेंगे, सेमीकंडक्टर निर्माण में देश को आत्मनिर्भर बनाना है क्योंकि हमसे बाद में इस क्षेत्र में आने वाले देशों ने सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में तरक्की की है और हम उनपर निर्भर हो गये हैं, सौरउर्जा और इवी बैट्री का निर्माण देश में करेंगे। प्रधनमंत्री ने कहा कि जिस तरह दूकानों में हम लिखते हैं ‘शुद्ध घी की दूकान’ वैसे ही देश में ऐसे व्यापारी आगे आयें जो ऐसा निर्माण करें कि दूकानों पर लिखें ‘स्वदेशी सामान की दूकान’ ये सारी बातें प्रासंगिक हैं आम भारतीयों के मन में चलती रहती है पर इनके परिष्कार की दिशा में प्रयास बहुत धीमें या न के बराबर हैं।
इतने तारीफ और शोर के बाद भी स्वदेशी तेजस विमानों के इंजन के लिये हम अमेरिका का मुंह ताक रहे हैं। अमेरिकी कंपनी जीइ तेजस के लिये इंजन देने में देरी करती रही है, अब तक मात्र चार इंजन मिले हैं और इन इंजनों के थ्रस्ट (शक्ति) पर जानकारों की राय बहुत संतोषजनक नहीं है। हमारा स्वदेशी इंजन बनाने का प्रयास सफल नहीं हुआ है, हाल में टेस्ट किये गये कावेरी इंजन ने इतना थ्रस्ट पैदा नहीं किया कि उसे हम फाइटर प्लेन में उपयोग कर सके। फिर भी अतीत में रूस द्वारा क्रायोजेनिक इंजन न देने और भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा बना लेने के उदाहरण से मुझे उम्मीद हैं कि हमारे वैज्ञानिक जल्द ही उन्नत स्वदेशी फाइटर प्लेन का इंजन बना लेंगे।
दवा निर्माण में हम विश्व में अग्रणी हैं, पर दवा के लिये कच्चे माल में चीन पर हमारी निर्भरता खत्म नहीं हुई है।यही हाल इवी बैट्री निर्माण और सौर प्लेटों के निर्माण में भी है। कुछेक प्रयास अवश्य हुये हैं पर हम चीन पर निर्भरता को खत्म नहीं कर पाये हैं। सालों से शत्रु देश चीन के समानों के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद चीन से व्यापार और आयात में और वृद्धि हुई है।
एक विशाल सक्षम देश होने के बाद भी सेमीकंडक्टर निर्माण में हम ताइवान, चीन, कोरिया से कोसो दूर है। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को स्वदेशी कतई मत समझिये। उसके अंदर मुख्य सर्किट आज भी चीन निर्मित ही मिलेंगे। उसकी सिर्फ असेंबलिंग भारत में होती है।भारत के बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांड चीन से आये चिप और सर्किंट के बने हुये हैं सिर्फ ऊपरी ठप्पा भारतीय है। ऐसे में प्रधानमंत्री के स्वदेशी निर्माण के साथ ‘दाम कम ज्यादा दम’ के नारे पर संशय होता है।
प्रधानमंत्री ने देश की एक बड़ी समस्या घुसपैठियों पर खुल कर बात की और कहा कि ये घुसपैठिये हमारे देश में आकर आदिवासियों की जमीन और हमारे युवाओं के रोजगार पर कब्जा करते जा रहे हैं। इससे निबटने के लिये हम हाइपावर डेमोग्राफी मिशन चलायेंगे। निश्चय ही प्रधानमंत्री के इस उद्गार के केंद्र में झारखंड का संथाल क्षेत्र और यहां के आदिवासी हैं जहां बांगलादेसी और रोहिंग्या घुसपैठ और डेमोग्राफी बदलने का गंभीर संकट है। यह संतोष की बात है कि देश के एक प्रधानमंत्री ने साफगोई से इसे स्वीकार कर इसके परिष्कार की बात की है। अब देखना होगा कि सेकुलरिज्म की राजनीति करने वाली पार्टियां और सेकुलर राज्य सरकारें प्रधानमंत्री के इस मिशन में कितना सहयोग करती हैं?
ऐसा भी नहीं है कि चीन या विदेशों पर निर्भरता कम करने के प्रयास नहीं हुये हैं, याद किजिये कुछ साल पहले प्रधनमंत्री ने चीनी खिलौनों के बजाय स्वदेशी खिलौना उद्योग को फिर से पुनर्जीवित करने की बात कही थी। जिसपर उनका भरपूर उपहास उड़ाया गया था, लेकिन आज इन पांच सालों में भारतीय खिलौना उद्योग ने लंबी छलांग लगायी है। पर अन्य क्षेत्रों में गति बहुत धीमी है। इस मुद्दे पर काम से ज्यादा शोर हुआ है।
79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के वादों और प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिये। उन्होंने रस्मि बातों की बजाय सीधे उन मुद्दों की बात की जो आम आदमी के भी मन में उठते है। उन्होंने शत्रु देशों के साथ ही विश्व को यह भी संदेश दिया कि भारत को कोई ब्लैकमेल या धमका नहीं सकता। बस हम उम्मीद करें कि चीन जैसे विश्वासघाती देशों पर निर्भरता खत्म करने, घुसपैठियों को खदेड़ बाहर करने, हर क्षेत्र में स्वदेशी निर्माण और ‘दाम कम दम ज्यादा’ के प्रयासों में तेजी आये।
