हृदय रोग और मधुमेह में कारगर होने का गुण पता चलते ही तीसी अब मॉल एवं बड़े दूकानों में पैक होकर बिकने लगा
:::मनोज कुमार शर्मा::::
रांची : तिलहन का एक प्रमुख उपज रहा है तीसी। इसे अलसी भी कहते हैं अंग्रेजी में इसे फलेक्स सीड कहते हैं । कुछ दशक पहले बिहार झारखंड में तीसी की अच्छी खासी खेती होती थी। तिलहन में इसे राई और सरसों के विकल्प की तरह देखा जाता था। दरअसल तीसी का तेल तब सस्ता था और बिहार , उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में घर में खाने के अलावा बाजारों में वनस्पति तेल या शुद्ध घी के जगह पर विकल्प के तौर पर तीसी के तेल का उपयोग भी किया जाता था। तीसी तेल की एक खराबी ये थी कि इसमें बने मिठाई जिलेबी गर्म रहने तक ही ठिक लगते थे। ठंढा होने पर इसमें हल्का सा कड़वापन आ जाता था। इन कारणों से लोग इसे वनस्पति घी से भी तुच्छ समझते थे। सस्ता होने के कारण तीसी का तेल छोटे और गरीब लोगों का खाद्य तेल बना रहा। मेले में मिठाई तीसी तेल में ही बनते थे, सस्ते खाद्य तेल की प्राप्ति के लिये ही इसकी खेती छोटे और मंझोले किसान करते थे। बाद में रिफाइन ऑयल और पाम ऑयल के आने पर तीसी की खेती सीमित सी हो गयी और इसके तेल का उपयोग लुप्त सा हो गया। गांव देहात के बाजारों और मेलों ठेलों में सस्ते तीसी तेल की जगह रिफाइन और पाम ऑयल ने ले ली। तब तक इस तिलहन के औषधीय गुणों से लोग परिचित नहीं थे।
लंबे समय तक उपेक्षित सा रहने के बाद जब चिकित्सा विज्ञान ने यह बताया कि तीसी हृदय रोग, मधुमेह में बहुत ही प्रभावी है तब इस लुप्त हो रहे तिलहन की मांग बढ गयी और अब गांव में तुच्छ सा रहा तीसी विभिन्न रूपों में मॉल से लेकर छोटे दूकानों में औषधीय रूप में बिक रहा है।तीसी साबूत, सत्तु, भुना हुआ पैक करके महंगी कीमत पर बाजार में उपलब्ध है। तीसी में एंटीएजिंग गुण होने, खनिजों और फाइबर के होने , रोग प्रतिरोधकता बढाने और अच्छे कॉलेस्ट्रॉल को बढाने का गुण पाया गया है।
जिस तरह सरसों के पीले फूल और उसकी सुंदरता की चर्चा होती है वैसे ही तीसी के पौधे के फूलों की भी अपनी एक खुसबसूरती होती है। यह पूरे खेतों में बोने के बजाय बिहार में गेहूं जैसे फसलों के खेत में चारो ओर मुंडेर पर बोया जाता था। इसकी फलियां जिसमें तीसी के दाने होते हैं किसी छोटे लट्टू की होती हैं जो देखने में इसे विशिष्ट बनाती हैं।बच्चे इसकी फलियों को तोड़ कर घिरनी की तरह नचाते हैं। किसी अन्य फसल के किनारे किनारे एक पतली कतार में लगी तीसी के पौधे अपने फलियों के साथ एक अलग ही सौंदर्य बोध पैदा करते हैं।
वास्तव में हमारे पुराने देसी उपज हमेंशा स्वास्थ्यवर्द्धक ही रहे हैं। ज्यादा उपज , टर्मिनेटर बीजों से व्यावसायिक खेती की चाह ने कई प्रकार के अनाजों और उनके देसी नस्लों से हमें दूर कर दिया। हाल के शोध में यह पता चला कि मड़ुआ में कैंसर रोधी गुण पाया गया है। आज जरूरत है कि देसी और आरोग्यकारक फसलों की पहचान कर उनके बीजों को संरक्षित करने की।