मनोज कुमार शर्मा
- 2025 से 2025 में देश में हाइवे निर्माण के लिए करीब 10 लाख पेड़ों की कटाई की गई।
- रांची टाटा सड़क निर्माण में हजारों छायेदार सैकड़ा वर्ष पुराने पेड़ काट डाले गये
- हाइवे निर्माण में सबसे ज्यादा पेड़ गुजरात में काटे गये।
- पुराने वृक्षों को शिफ्ट करने की जापानी मशीन भी सिर्फ दिखावे की साबित हुयी।
- झारखंड में बिना वृक्ष लगाये सवा करोड़ उसके देख रेख पर खर्च हुये।
रांची : सड़कों को विकास का पैमाना माना गया है। अमेरिका जैसे देश के बारे में तो यहां तक कहा गया है कि अमेरिका को उसकी सड़कों ने बनाया है।
भारत में जिस तेजी के साथ सड़कों, एक्सप्रेसवे, हाइवे का निर्माण हो रह है वह देश के विकास के लिये तो सराहनीय है, पर उतनी ही तेजी के साथ हरियाली का निर्ममता से विनाश हो रहा है। भारत जैसे अर्द्धविकसित और बड़े आबादी वाले देश में यह एक और विकास और दूसरी ओर विनाश का उदाहरण है। इसका सीधा असर पर्यावरण पर भी दिख रहा है। पिछले पांच साल के दौरान देश में हाइवे निर्माण के लिए करीब 57.10 लाख पेड़ों की कटाई की गई। परिवहन के सलभ और आरामदेह होने की सुविधा तो बढी लेकिन इसके एवज में सांस लेने पर भ्ज्ञी आफत आने वाली है। राजधानी दिल्ली सहित अन्य ज्यादा जनसंख्या वाले शहरों के आसपास हरियाली कम होने और प्रदूषण से सांसों पर संकट प्रत्यक्ष महसूस होता है।
गुजरात में काटे गये सबसे ज्यादा पेड़
पिछले दस सालों में हाइवे का जाल बुना गया है। देश में करीब डेढ़ लाख किलोमीटर लंबाई से अधिक का हाइवे नेटवर्क हो चुका है लेकिन इस सुविधा से पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। 2020-21 से 2023-24 के बीच देश में सबसे अधिक वृक्षों की कटाई गुजरात में हुई है। गुजरात में 7.61 लाख से अधिक पेड़ काटे गए हैं। इसी तरह मध्यप्रदेश में करीब 3 लाख और छत्तीसगढ़ में 2 लाख से अधिक पेड़ों की बलि दी गई है। राजस्थान में करीब 61177 पेड़ काटे गए हैं।
काटना आसान उगाना मुश्किल
घने छायादार पेड़ कुछेक महीनों में तैयार नहीं होते। हाइवे या एक्सप्रेसवे निर्माण में सैकड़ो साल पुराने वृक्षों को एक झटके में काट तो दिया जाता है, पर वैसे वृक्ष फिर से तैयार होने में दशकों के समय लगते हैं। सरकार का यह कहना कि जितना पेड़ काटे हैं उससे ज्यादा वृक्षारोपण कर रहे हैं प्रहसन बन जाता है। दरअसल बड़े और इमारती लकड़ी वाले पेड़ों को काट कर गायब कर दिया जाता है उसके एवज में वृक्षारोपण की सिर्फ खानापुर्ति होती है। अक्सर उतने पौधे लगाये नहीं जाते या खानापुर्ति कर दी जाती है। कुछेक लगाये गये पौधे देख रेख के अभाव में सूख जाते हैं और धरती उजड़ी हुई ही दिखती है।
झारखंड में वृक्ष नहीं लगे पर रखरखाव पर हो गये करोड़ो खर्च
रांची में अनगड़ा से नामकुम तक पांच करोड़ खर्च कर हजारो पेड़ लगाने थे। कुछैक हजार पौधे लगाये भी गये, पर देख रेख के अभाव में ये पौधे सूख गये। अब खुलासा हुआ है कि इन पौधों के देख रेख पर सवा करोड़ रूपये खर्च हुये हैं, यानि जो पौधे थे ही नहीं उनके रख रखाव पर इतने खर्च हुये। ये एक मात्र उदाहरण नहीं है। इसके पहले रांची टाटा मार्ग पर निर्माण में भी वृक्षों के कटने पर यही हश्र हुआ।
कुछ साल पहले झारखंड में जापान की मशीनों के उपयोग की बात कही गयी थी जो बड़े वृक्षों को जड़ सहित उखाड़ कर कहीं और शिफ्ट करने में सक्षम है लेकिन इसका उपयोग झारखंड में असफल रहा। मशीन से वृक्षों को उखाड़ कर कहीं और लगा तो दिया गया, पर वो देख रेख के अभाव में सूख गये। जानकारों का कहना है कि इसका सही तरीके से उपयोग नहीं किया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यावरण और विकास बीच संतुलन जरूरी है। पेड़ों को हटाना जरूरी है, लेकिन इन पेड़ों को काटने की जगह उन्हें दूसरी खाली जगह पर ले जाकर लगाने समस्या का निदान हो सकता है। गाजियाबाद-दिल्ली ऐलिवेटेड रोड निर्माण के समय 64 पेड़ों को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया था। साथ ही क्षतिपूर्ति वनीकरण यानी जितने पेड़ काटे जाएं, उतने ही पेड़ लगाने के प्रति सख्ती होनी चाहिए।
देसी वृक्षों को ही लगायें
राजस्थान की रिटायर्ड पीसीसीएफ भरत तैमिनी ने कहा लाखों-करोड़ों पेड़ों की कटाई हाइवे निर्माण व अन्य विकास कार्य के लिए हो रही है। पेड़ों की कटाई के लिए पैसा जमा होता है, जिसे पेड़ लगाने पर खर्च करना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। पेड़ों के लगाने के नाम पर भ्रष्टाचार पनप रहा है। हाइवे परियोजना में पेड़ों व हरियाली के मामले में निर्माण से पहले जैसा था, वैसा ही करने की अनिवार्य शर्त रखनी चाहिए। अभी हरियाली के नाम पर बोगनवेलियाया, कनेर जैसे पौधे लगाए जा रहे हैं। जबकि नीम, शीशम, सागवान जैसे पेड़ लगाने का काम होना चाहिए। माइनिंग कंपनिया ठेकेदार भी काटते इमारती लकडि़यों के पेड़ को हैं पर लगाते समय बबूल जैसी झाडि़यों का जंगल उगा कर चल देते हैं। निर्माण के नाम पर हम पर्यावरण को भयंकर नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसा नहीं कि हाइवे सड़कों के निर्माण में हरियाली का विनाश होगा ही , अगर सही प्लानिंग से काम हो तो हरियाली भी बचेगी और विकास भी होगा, पर वर्तमान में ये हाइवे , एक्स्प्रेस वे लाखों वृक्षों और हरियाली को लील रहे हैं।
