उज्ज्वल केरकेट्टा
पीजी इंटर्न, स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन
रांची विश्वविद्यालय, रांची
झारखंड की जनजातियाँ प्रकृति की उपासक है। पर्वत, पहाड़, पशु-पक्षी और पेड़-पौधों को भगवान स्वरूप मानती हैं। कई बार प्राकृतिक नजारों को देख कर हमारा मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है जो मानवीय परिकल्पना से परे होता है।ऐसा ही एक अद्भुत दृश्य झारखंड राज्य में पश्चिमी सिंहभूम के चक्रधरपुर और चाईबासा के बीच में है। यह मुख्य मार्ग NH-75 के किनारे मड़कमहातु में है। यहां पर इसे जोड़ा पेड़ के नाम से जाना जाता है। यहां दो पेड़ आपस में जुड़े हुए हैं। इन पेड़ों की जड़ें अलग- अलग है परन्तु उपर जाकर दोनों पेड़ आश्चर्यजनक रूप से जुड़े हुए है। यह अर्जुन का पेड़ है। अर्जुन का पेड़ एक औषधीय पेड़ है। इसे घवल, ककुभ तथा नदीसर्ज भी कहते हैं। यह पेड़ लगभग 60 से 80 फीट ऊँचा होता है।
यहां हो समाज के लोग इसे एक पवित्र स्थल मानते है। यह एक जायरा ( पूजा) स्थल है। इसे लोग बोंगा द्वार यानी भगवान का दरवाजा भी मानते हैं। लोग इस स्थल का सम्मान करते हैं। इस जुड़वा पेड़ को प्रकृति की दोस्ती और आस्था के प्रतीक के रूप में माना जाता है। मड़कमहातु ग्राम सभा के आदेशानुसार यहां नारियल फोड़ना, अगरबत्ती जलाना, सिंदूर आदि का प्रयोग, पान गुटखा आदि पर प्रतिबंध है।