::::मो. इरशाद::::
सिमडेगा जिले में विगत 23 वर्षों में हाथी के प्रकोप से बचाव को लेकर स्थायी समाधान नहीं निकल सका। हर वर्ष हाथियों के आतंक से सैकडो लोग प्रभावित हो रहे है। वहीं कई जानें भी जा रही है। वन विभाग और प्रशासन लगातार प्रयास कर रहा है लेकिन जानमाल का नुकसान कभी थमा नहीं
है। विगत 23 वर्षों की बात करें जंगली हाथियों एवं भालुओं के हमले में लगभग 117 लोगों की जानें गई है। वहीं लगभग 163 लोग घायल हुए हैं। इनमें भालुओं के हमले की घटना गिने-चुने हैं। जबकि अधिकांश घटनाओं को हाथियों ने अंजाम दिया है। इसके अलावे लगभग 11967 लोग हाथियों के हमले में मकान, फसल एवं भंडारित अनाज के रूप में नुकसान झेला है। आंकड़ों के अनुसार हाथी के कारण प्रत्येक वर्ष 4-5 लोगों की जान जा रही है। वहीं हाथी सैकड़ों घर को ध्वस्त कर रह हैं। सरकार नुकसान एवं अनुग्रह राशि के रूप में पीड़ितों को मदद तो करती है, लेकिन कागजी कार्रवाई पूरा करने में काफी समय लग जाता है। जिससे लोगों को महीनों न केवल सर छुपाने के लिए सोचना पड़ता है, बल्कि दो जून की रोटी तलाशना भी पहाड़ लगता है। जंगलों एवं पहाड़ों के गोद में बसे जिलेवासियों को सालों भर जंगली जानवर हाथी एवं भालू के आतंक के साए में जीना पड़ता है। विभाग की मानें तो हाथी जिले के कुछ क्षेत्रों में स्थायी आश्रय बना चुके हैं। वे भोजन की तलाश में ही गांवों एवं बस्तियों की ओर आ धमकते हैं। इसी क्रम में वे जान-माल का नुकसान पहुंचाते हैं।