मनोज कुमार शर्मा
झारखंड पहाडि़यों की रानी नेतरहाट जो अपनी रमणिक एंद्रजालिक खुबसूरती के लिये जानी जाती थी अब उसका तेजी से क्षरण हो रहा है। कभी अपने देश के सबसे उत्कृष्ट आवासीय विद्यालय, ऊंची पहाडि़यों के बीच सूर्योदय और सूर्यास्त की नयनाभिराम दृश्य, झरनों , सर्वत्र प्रकृति की स्वर्गिक सुंदरता वाला नेतरहाट तेजी से कंक्रीट जंगल में बदल रहा है। मैंने नेतरहाट में चार दशक में विकास के नाम क्षरण को देखा है। नेतरहाट नाम कुछ लोगों की मानें तो अंग्रेजो ने दिया जो इसे नेचर हट यानि प्रकृति का घर कहते थे वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यहां बांस के जंगल बहुत हैं बांस को यहां के मूल निवासी नेतर कहते हैं और इसी नेतर से नेतरहाट नाम पड़ा। आज नेतरहाट की नैसर्गिक सुंदरता पर शहरीकरण के खतरे मंडरा रहे हैं।
कभी रांची से नेतरहाट जाने की अनुभूति भी रोमांचित कर देती थी। गुमला जिले के घाघरा से नेतरहाट की ओर मुड़ते ही लगता था कि अब कुछ ही देर में बिशुनपुर के जंगलों फिर बनारी और उसके बाद नेतरहाट की सर्पिल खतरनाक पर वनों से आच्छादित रमणिक घाटी आयेगी। इस घाटी की चढाई खत्म होती थी तो नेतरहाट पहुंचने और जानी पहचानी मोड़ , सड़क यहां तक कि रास्ते के चट्टानों तक से पहचान हो जाती थी। एक तरफ पहाड़ दूसरी ओर खतरनाक खाई, इन्हें पार करते सड़कों से बहते बरसाती नाले और छोटे छोटे झरने। खाई की ओर बने छोटे चारदीवारी पर बंदरों के झूंड, बांस के जंगल, फिर सामने से आते वाहनों से कट कर निकल जाना नेतरहाट की पहचान रहे हैं। कभी घाटी के जंगल भी इतने घने थे कि कुछ जगहों पर अंधेरेपन का अहसास होता था। जब नेतरहाट से पहले के तिराहे पर पहुंचते हैं जहां से दायें की ओर नेतरहाट को मुड़ते हैं तो लगता है नेतरहाट बांहें फैलाये कह रहा हो कि आ जाओ कुछ पल यहां सुकून से शांति में गुजारो, पर हाल के दशकों में नेतरहाट अपनी यह विशिष्टता तेजी से खो रहा है। पर्यटन स्थल के विकास के नाम पर यहां भीड़ , कंक्रीट जंगल, बेतहाशा होटल, रिसोर्ट और निर्माण ने यहां बहुत कुछ को लीलना प्रारंभ कर दिया है।
बेशक यहां हर ओर सुंदर सड़कें बन गयी हैं, बिजली और अन्य सुविधाओं की अब कोई कमी नहीं, पर इसकी मूल खुबसूरती यहां के जंगल, हरियाली और पारंपरिक खपरैल और मिट्टी के मकान, वन विभाग और पर्यटन विभाग के जंगलों से घिरे गेस्ट हाउस और डाक बंगले थे। चीड़ के जंगलों की धरती चिकने सूखे पत्तों की चादर ओढे उसमें घूम कर पाइन कोण चुनना एक अलग ही खुशी देती है। लेकिन अभी नेतरहाट में चारो ओर रिसोर्ट, होटलों और शहरी तरीके के बने पार्कों की भरमार है। जिधर देखो उधर ही विशाल अंडरग्राउंड से लेकर तरह – तरह के आकृतियों के होटल, कॉटेज और रिसोर्ट बड़ी संख्या में बनते जा रहे हैं।
वर्ष 1994 में मैने नेतरहाट को शांत और कच्चे रास्तो वाला, नाशपाती के बगीचे और चीड़ के जंगलों वाला एक सुरम्य और सुकूनदेह पर्यटन स्थल के रूप में देखा था। गिने चुने होटल और डाक बंगले थे जहां से लोग सूर्योदय देखा करते थे। यहां किसी भी ओर रास्तों पर चलते हुये स्वर्गिक आनंद की अनुभूति होती थी। एक छोटा सा बाजार ऐसा जहां बस किसी तरह काम की चीजें भर मिल जाती थीं पर यह छोटा बाजार भी नेतरहाट की अपनी एक खुबसूरती थी। आज यहां दूकान, बाजार जरूरतों और उपलब्धता के कारण बड़े हो चुके हैं । जंगल और हरियाली तेजी से घटे हैं, गर्मियों में तापमान बढ़ा है, सड़कों के निर्माण ने यहां आवागमन आसान किया तो अब बेतरतीब भीड़ भी बढी है। इनमें ज्यादतर यहां घूमने के बजाय रात में होटलों में रूकने, शराबनोशी और मजे को आते हैं। झारखंड अलग राज्य बनने से पहले से ही नेतरहाट को एक पर्यटन स्थल और देश भर में यहां का आवासीय विद्यालय अपने मेधावी छात्रों के लिये जाना जाता है। वर्ष 2000 के बाद झारखंड राज्य बनने पर यहां आने वालों की भीड़ बढती चली गयी और धीरे -धीरे यह एक भीड़ वाले पर्यटन स्थल में बदल गया है।
विकास के नाम पर किसी आम बेतरतीब शहर की तरह बनता जा रहा है नेतरहाट
अब नेतरहाट में नाशपाती के बाग भी पहले की अपेक्षा सिकुड़े हैं, हालांकि नये बाग भी लगाये जा रहे हैं। नेतरहाट स्थित झील अब सौंदर्यीकरण के बाद किसी शहरी तालाब सा दिखता है। झील के किनारे एक पार्क बनाया गया है जो लंबे समय से पूरी तरह से बनने के बाद भी बंद है और किन्हीं माननीय के हाथो उद्घाटन की बाट जोह रहा है यहां कुछ सुरक्षा गार्ड गेट बंद कर इसकी निगरानी करते हैं, सबसे सुरम्य और हरियाली वाले इलाकों में सिर्फ होटल और रिसोर्ट बनते जा रहे हैं कुछ बैंक्वेट हॉल और रिसोर्ट बन चुके हैं। एक आर्ट विलेज बना है जिसकी उपयोगिता हो रही है या नहीं? किसी को नहीं पता, एक -एक कमरे वाले कॉटेज का एक बड़ा सा कैंपस बनाया गया है, कोयल व्यू प्वाइंट जहां की उंचाई और, हरे भरे जंगलों और मैदान के बीच से लोग सूर्योदय देखते थे वहां अब राज्य सरकार ने विकास के नाम पर एक बड़ा सा पार्क बना दिया है उसमें सूर्योदय देखने के लिये टावरनुमा मकान बना है , कभी के रमणिक से कोयल व्यू प्वाईंट को घेर कर आम लोगों के लिये फिलहाल वर्जित कर दिया गया है और ”पार्क बंद है ” का बोर्ड टांग दिया गया है। कोयल व्यू प्वाइंट पर वाहन न जा सकें इसके लिये गड्ढे खोदे गये हैं और कंटीले तार भी लगा दिये गये हैं। लब्बेलुआब ये कि, नेतरहाट अपनी नैसर्गिक खुबसूरती खो रहा है और विकास के नाम पर इसे किसी महानगर के पार्क सा बना दिया गया है।
जिस नेतरहाट को जनश्रुति में मैग्नोलिया और चरवाहे मोहन की मार्मिक प्रेम कथा के लिये हम जानते हैं और सूर्यास्त देखने के लिये मैगनोलियाा प्वाईंट पर भीड़ एकत्र होती है वहां अक्सर पानी और शौचालय की समस्या रहती है। शाम में मैगनोलिया प्वाईंट पर महंगेे कारों और एसयूवी की भीड़ जमा हो जाती है, लोग सेल्फि लेने में व्यस्त रहते हैं लेकिन यह भी देखना होगा कि मैगनोलिया के घोड़े की मुर्ति टूट गयी है और उसे बचाने के लिये बैरिकेडिंग के अंदर रखा गया है। विकास आवश्यक है, पर किसी पर्यटन स्थल के मूल स्वरूप और वहां की विशिष्टता को बनाये रखना भी आवश्यक होता है जो नेतरहाट के साथ तो बिल्कुल नहीं हो रहा। झारखंड बनने के बाद नेतरहाट जो एक अनछुआ संरक्षित सा पर्यटन स्थल था और झारखंड में एक ऐसी जगह जहां जाते वक्त यह अहसास नहीं होता था कि यह झारखंड में ही है वह नेतरहाट तेजी से अपनी विशिष्टता खो रहा है।