लालू के एमवाई की तरह झामुमो का (एएम)आदिवासी मुस्लिम समीकरण का मजबूत होना झारखंड में एनडीए की वापसी को बना सकता है अंतहीन।
:::मनोज कुमार शर्मा:::
रांची : सबसे पहले यह स्वीकारोक्ति कि मेरे सहित सैकड़ों पत्रकारों को झारखंड में झामुमो के इस तरह एकतरफा जीत की उम्मीद नहीं थी। जो पत्रकार और राजनीतिक पंडित पहले से झामुमो गठबंधन के 56सीट जीतने की भविष्यवाणी कर रहे थे वो भी अपनी सदिच्छा जता रहे थे न कि अपने अनुभव से जमीनी तथ्य बता रहे थे।
पांच साल के एंटी इंकंबेंसी, बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा, कोल्हान टाइगर चंपाई सोरेन का भाजपा मे आना , हिमंता और शिवराज सिंह चौहान का अथक प्रयास, पीएम मोदी के प्रचार के बावजूद एनडीए 24सीट पर सिमटेगी ऐसा नहीं सोचा था।।
ये अवश्य माना जा रहा था कि झारखंड में कांटे की टक्कर है हेमंत सोरेन को जेल भेजने से उपजी सिंपैथी, मंइया सम्मान योजना से महिला वोटरों का झामुमो को समर्थन, संथाल सहित पूरे राज्य में मुस्लिम आदिवासी वोटरों का एकमुश्त समर्थन ,कल्पना सोरेन के धुंआधार सफल जनसभाओं की बदौलत झामुमो भी टक्कर में था पर झामुमो ने कांटे की टक्कर के बजाय अपनी आंधी में एनडीए को उड़ा ही डाला।
एक ऐसे समय में जब देश में भाजपा और एनडीए का चहुंओर जलवा है झामुमो का झारखंड में प्रचंडता से सत्ता में वापसी बड़ी उपलब्धि है। कुछ ऐसा ही जैसे कभी आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के विजयरथ को भारत ने सौरव गांगुली के नेतृत्व में रोक दिया था।
अब झामुमो की जीत और एनडीए की हार के कारणों को सारे पत्रकार, फेसबुकिये अन्वेषक, विश्लेषक ,कार्यकर्ता गिना रहे हैं । ये कारण सही ही होंगे ?क्योंकि रिजल्ट के बाद हर तथ्य स्पष्ट दिखता है इसे बताना कोई बड़ी बात नहीं। जैसे..
- नये नवेले टाइगर जयराम महतो की पार्टी ने आजसू और एनडीए की लुटिया अकेले डूबो दी और एनडीए के 35-37सीटों तक पहुंचने की उम्मीद को धो डाला।
- कैंची छाप के कारण महतो वोटर तीन टुकड़ों में बंट गये, पर आदिवासी और मुस्लिम झामुमो के लिये एकजुट रहे।
- कल्पना सोरेन ने पत्नी धर्म निभाते हुये धुआंधार प्रचार कर अकेले दम पर हेमंत सोरेन और झामुमो को उबार लिया।
- भाजपा ने बाहर से आये नेताओं और चूक गये घीसे पिटे लोगों को टिकट दिया इससे पुराने कार्यकर्ता और उम्मीदवार निराश हुये।
- परिवारवाद के खिलाफ बोलने वाली भाजपा स्वयं इसमें आकंठ लिप्त हो गयी।
- राज्य भाजपा के नेता सुख सुविधा में रमे रहे, सोशल मीडिया में एक्टिव पर जमीन पर कोई काम नहीं किये।
- एनडीए के आदिवासी नेता अब कहने को आदिवासी हैं उनका आदिवासियों से जमीनी जुड़ाव खत्म हो चुका है।
- संथाल में मुस्लिमों और घुसपैठियों ने जमकर एकमुश्त वोटिंग झामुमो के लिये की जिससे 70 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग हुई।
एनडीए की हार के ये उपरोक्त सारे कारण सही हैं, पर अब झारखंड में एनडीए और भाजपा के लिये आगे और बड़ा संकट है। भले भाजपा नेता कार्यकर्ता अब आगे के संघर्ष के लिये मंथन चिंतन करेंगे, पर अब झामुमो से पार पाना लंबे समय तक मुश्किल हो सकता है? क्योंकि झामुमो ने अपने मुख्य सहयोगी कांग्रेस को भी गठबंधन के तहत मजबूत बना दिया है।
याद किजिये बिहार में लालू राबड़ी ने निष्कंटक दस साल तक राज किया। जबकि राबड़ी देवी ज्यादा पढ़ी लिखी और राजनीतिक रूप से चपल महिला नहीं थीं। जिस तरह लालू बिहार में मुस्लिम-यादव ( एम वाई) समीकरण बना कर लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रहे कुछ वैसा ही फार्मूला झारखंड में झामुमो ने अपनाया है जो अब समय के साथ और पुख्ता होता जायेगा।
हेमंत सोरेन के साथ एक और बड़ी बात है कि उनकी धर्मपत्नी कल्पना सोरेन पग -पग पर उनके हर संकट को हरने की शक्ति रखती हैं, राबड़ी के उलट कल्पना सोरेन एक पढ़ी लिखी मैनेजमेंट की हुई महिला हैं जिनकी अपील आदिवासियों समेत आधी आबादी में लाजवाब है।वह जब तक राजनीति में नहीं थीं तब तक एक गृहिणी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी भर थीं, पर पति पर संकट आते हीं उन्होंने जो सामना किया और हर बाधा को पार किया वह काबिले तारीफ है।
अब झारखंड में आदिवासी, मुस्लिम और कुछ हद तक अन्य वोटरों का भी समीकरण झामुमो के साथ है ।यह समीकरण एनडीए और भाजपा को लंबे समय तक पांव जमाने नहीं देगा। यह लालू के मजबूत एमवाई समीकरण की तरह ही है। जिसके टूटने की उम्मीद निकट भविष्य में नहीं है।
झामुमो के आदिवासी वोटरों को तोड़ने या उनका विश्वास जीतने के लिये भाजपा के पास कोई भरोसेमंद आदिवासी चेहरा नहीं। कभी ललित उरांव, करिया मुंडा सरीखे जमीनी नेता भाजपा के पास थे अब चूक रहे अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी, बाहर से आये चंपाइ सोरेन( देखना होगा कब तक भाजपा के साथ हैं?) जैसे आदिवासी चेहरे हैं जिनकी खुद की स्थिति डावांडोल है।
अब अगर हेमंत सोरेन पत्नी को झारखंड की बागडोर सौंप
स्वयं आजाद होकर राजनीतिक समर में उतरते हैं तो यह मास्टरस्ट्रोक हो सकता है? क्योंकि एक पढी लिखी महिला मुख्यमंत्री की स्वीकार्यता राज्य में झामुमो विरोधी लोगों में भी बढ़ेगी , अवांछित तत्वों की पैठ सत्ता में घटेगी। यह सब
झारखंड एनडीए को लंबे समय तक पांव जमाने नहीं देगा। आखिर लालू राबड़ी के एमवाई समीकरण की काट खोजने और जनता का इससे मोह भंग होने में बिहार को डेढ़ दशक लगे थे।