:::मनोज कुमार शर्मा::::
- 7 जुलाई 2021 से 17 जून 2024 तक देश में 131 ट्रेन दुर्घटनाएं हुईं हैं और सिर्फ सिंतंबर में ही दर्जन भर रेल दुर्घटनायें कराने का प्रयास अराजक तत्वों द्वारा किया गया है।
- रेल दुर्घटना की साजिश रची तो देशद्रोह का केस होगा मृत्युदंड तक की सजा होगी ? पर क्या इससे अराजक तत्व बाज आयेंगे ?
- बॉलीवूड अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू के इकलौते बेटे की मौत ट्रेन से सफर करते समय उस पर चलाये गये पत्थर के सर में लगने से हो गयी थी।
- गोधरा में ट्रेन में ही धार्मिक उन्मादी लोगों ने यात्रियों को फूंक डाला था।
- करगिल युद्ध के समय गायसल में आतंकियों ने ट्रेन दुर्घटना करा दिया था। क्योंकि उसी ट्रेन से आसाम से सेना और साजो सामान कश्मीर जा रहा था।
- अराजक तत्व कहते हैं कि हम सिलिगुड़ी कॉरिडोर में रेल को बाधित कर दें तो पूरे नॉर्थ इस्ट को देश से अलग कर देंगे।
कभी गीतों में छुक-छुक करती रेलगाड़ी, हमारी कई फिल्मों का एक अहम किरदार और पटरियों पर दूर से इसे आते और आंखों के सामने से अपनी धुन में गुजरते देखने की रोमांचक अनुभूति वाली रेल आज आतंकियों, अपराधियों अराजक तत्वों के निशाने पर है।
आज से दो ढाइ दशक पहले संभवत: उत्तर प्रदेश के किसी जिले में एक चरवाहे ने गांव से गुजरने वाली रेल लाइन कि दर्जन भर फिश प्लेटों को उखाड़ दिया था ताकि वहां रेल दुर्घटनाग्रस्त हो जाये। क्योंकि उस चरवाहे की कुछ भेडें ट्रेन से कट कर मर गयी थीं और उसने बदला लेने के लिये के लिये ऐसा किया था, लेकिन गांव वालों को इसकी भनक लग गयीं गांव वालों ने पकड़ कर पीटा और उसे पुलिस के हवाले कर दिया और एक बड़ी रेल दुर्घटना टल गयी। इस इकलौते वाकये को छोड़ दें तो हमारे देश में रेल हमेंशा से अराजक तत्वों के निशाने पर रहा है। पत्थर चला कर खिड़कियों के कांच तोड़ना, यात्रियों को गंभीर रूप से घायल कर देना, पटरियों पर पत्थर, सिलिंडर, विस्फोटक , पोल रखना आम बाते हैं। मै जब से खबर लिख रहा हूं उसी समय टीवी चैनलों में ये खबर चल रही है कि बुरहानपुर में रेल पटरी पर विस्फोटक रखा गया था, पर समय रहते उसका पता चल गया।
कुछ महिने पहले पाकिस्तान के एक आतंकी ने आह्वान किया कि भारत में रेल को निशाना बनाओ। उसके इस आह्वान के बाद तो जैसे देश में रेल दुर्घटनाओं की बाढ सी आ गयी है। थोड़े संतोष की बात यही है कि अब तक कोई भयंकर दुर्घटना नहीं हुई , पर यह संतोष कब तक ? यहां हालत है कि ट्रेन की पटरियों पर लोहे के बड़े बड़े पोल , सिलिंडर और विस्फोटक तक लगाये जा रहे हैं।
शर्मनाक है रेल के प्रति हम भारतीयों का नजरिया
आमजन के लिये लंबी दूरी तक का सबसे सस्ता, सुलभ साधन रेल ही है, पर हम भारतीय अपने ट्रेनों पर हमले को कुख्यात रहे हैं। यहां रेल और रेल की संपति को लावारिस , खुले में रखे सामान की तरह देखा जाता है। रेल में बेटिकट यात्रा , गुड्स ट्रेन से चोरी, डीजल की चोरी या रेलवे की अन्य संपत्तियों पर हाथ साफ करना तो बहुत छोटा अपराध है ।रेल से पंखा, बल्ब, पर्दे, चद्दर, तकिया, नल चुराने की फितरत है और इस कृत्य में पेशेवर चोरों के अलावा अच्छी श्रेणी में यात्रा करने वाले यात्री भी लिप्त रहते हैं। याद किजिये जब पहली बार टेलगो ट्रेन चलायी गयी तो उसमें लगे हेडफोन और सीट पर लगी एलइडी स्क्रिन तक को लोग उखाड़ कर लेते गये। बंदे भारत ट्रेन के तो सबसे पहले ट्रेायल रन में ही खिड़कियों पर पत्थर मार कर उसे बड़ा नुकसान पहुंचाया गया। इसके चालन के एक महिने में तकरीबन हर बार पत्थर मार कर उसके कांच को तोड़ा गया। रेल को कई बार प्राइवेट हाथों या नीजिकरण की बात कह कर भी नुकसान पहुंचाने की बात कही गयी।धरना, प्रदर्शन, बंद या शक्ति प्रदर्शन करने के लिये सबसे पहले रेलवे को ही निशाना बनाया जाता है। यहां तक कि कुछ इलाकों में बस की तरह हाथ देने पर रेल के नहीं रूकने पर उस पर पथराव किया जाता है।
अपराधियों आतंकियों के लिये आसान शिकार क्यों है भारतीय रेल ?
रेल का रूट जंगलों, पहाड़ों , निर्जन इलाकों से होकर गुजरता है। हाइवे सड़कों के उलट स्टेशनों के बाद इसके सुनसान इलाकों से गुजरते पटरियों को नुकसान पहुंचाना, विस्फोटक लगाना, फिश प्लेट उखाड़ने से लेकर कोई अवरोध खड़ा करना आसानी से संभव है। रेल की सुरक्षा और जांच में लगे लोगों के लिये भी यह संभव नहीं कि एक- एक जगह को जांच सके। इसलिये भारत में रेल दुर्घटनाओंकी तादाद अन्यत्र से बहुत ज्यादा है। इतिहास की कुछ भयंकर रेल दुर्घटनायें हमारे देश में हुई हैं।
यह कितनी बड़ी विडंबना है कि आस्ट्रेलिया की आबादी जितने रेल यात्री भारत में हमेंशा ट्रेन में यात्रा कर रहे होते हैं, हमारी रेल का अर्थव्यवस्था में रोल इतना कि अलग से रेल बजट पेश किया जाता था और लाखें चोरी और भ्रष्टाचार के बावजूद रेल कई घाटों की भरपाई करता है। कई जानकारों का कहना है कि भारतीय रेल में अगर ईमानदारी आ जाये तो रेल की पटरियां सोने की हो जायेंगी, पर हमारी यह रेल सुरक्षित नहीं उलटे आतंकियों और विध्वंसकों के लिये सबसे आसान शिकार है। हम जब भी किसी हाइस्पीड ट्रेन को चलाते हैं तो उस पर पत्थर फेंके जाते हैं, उसे गरीबों के लिये अप्राप्य कह कर सिर्फ अमीरों की ट्रेन बता कर उसमें खामियां गिनाने वाले भी बहुत होते हैं यही लोग भारतीय रेल में सुविधाओं में कमियों का रोना भी रोते हैं। भारत में बुलेट ट्रेन चलाने का काम तेजी से हो रहा है, पर उसकी सुरक्षा को लेकर हम कितने आश्वस्त हो सकते हैं?
तकनीकी खामियों, सुरक्षा या सिग्नल जारी करने में किसी खामी के कारण दुर्घटनायें अलग हैं, पर जब रेल को निशाना बना कर उसे दुर्घटना कराना और सैकड़ो लोगों की जान लेना, अरबों की संपत्ति का नुकसान कराने वाले तत्व हर रोज अंजाम देने लगें तो यह देश की सुरक्षा के साथ ही करोड़ो यात्रियों के लिये बहुत ही चिंता की बात है।