भारत में क्‍यों खात्‍मे के कगार पर है ? हिलसा मछली

राहुल सिंह

भारत में फरक्का सहित अन्य नदियों पर बैराज और डैम बनने से हिलसा मछली के आने-जाने का रास्ता बाधित हो गया है। हिलसा माइग्रेट करने वाली मछली है। वह समुद्र से नदी और नदी से समुद्र तक की लंबी यात्रा करती है। इसलिए प्राकृतिक आवागमन में दिक्कत ने इसके अस्तित्व को नुकसान पहुंचाया है।
स्वच्छ गंगा मिशन के तहत पिछले चार सालों से हिलसा के संरक्षण और इसकी संख्या बढ़ाने के गंभीर प्रयास शुरू हुए हैं। इसके तहत हैचरी में तैयार किशोर हिलसा व उनके अंडे को गंगा के अपस्ट्रीम में छोड़ने जैसे प्रयोग किए जा रहे हैं। हिलसा की टैगिंग और इसके बारे में जानकारी देने वाले को प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है। बांग्लादेश अकेले दुनिया का 80% से अधिक हिलसा मछली का उत्पादन करता है। इसके बाद भारत का नंबर है। लेकिन, भारत में बांग्लादेश की तुलना में महज 10% हिलसा होती है। भारत को अपनी जरूरतों के लिए बांग्लादेश पर निर्भर रहना पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हिलसा संरक्षण के लिए भारत-बांग्लादेश-म्यांमार को साझा प्रयास करना होगा।
पश्चिम बंगाल में फरक्का के प्रसनजीत मंडल (30) का पुश्तैनी काम मछली पकड़ना है। लेकिन इन दिनों वह रिक्शा चला कर भी गुजारा करते हैं। साथ ही अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी में मछली पकड़ने भी जाते हैं। प्रसनजीत और उनके दोस्तों की कोशिश हिलसा मछली पकड़ने की होती है। आम मछलियों में उनकी दिलचस्पी नहीं होती। मानसून के बाद एक दोपहर को प्रसनजीत ने बताया कि वह एक दिन पहले अपने तीन दोस्तों के साथ मछली पकड़ने गए थे। उनके जाल में दो हिलसा फंसी। इससे उन्हें 2500 रुपये मिले। इस तरह एक के हिस्से 600 रुपये से कुछ अधिक आए। लेकिन, प्रसनजीत और उनके दोस्त हर दिन इतने भाग्यशाली नहीं होते कि उनके जाल में हिलसा आ जाए। फरक्का में हिलसा मछली के संरक्षण से जुड़े फारूक शेख ने कहा, “बड़ी हिलसा मछली यानी एक किलो वजन वाली की कीमत 2700-2800 रुपये तक हो सकती है। अगर मछली 400-500 ग्राम की है तो वह 700 से 800 रुपये किलो बिक सकती है। बड़ी हिलसा मिलने को चमत्कार से कम नहीं माना जाता है। हिलसा की कीमत मांग और उपलब्धता से तय होती है। आसमानी कीमतों के बाद भी इसके गुणों के चलते इसे खरीदने की होड़ रहती है।
बांध ने रोकी हिलसा की तादाद
कोलकाता के बैरकपुर स्थित सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट के सीनियर साइंटिस्ट डॉ ए.के. साहू ने कहा, “हिलसा प्रवासी प्रजाति है। जब यह माइग्रेट (पलायन) नहीं कर सकी तो भारत में इसकी संख्या कम हो गई।” साहू कहते हैं कि पहले यह प्रजाति इलाहाबाद तक जाती थी, लेकिन 1975 में जब फरक्का बैराज बन गया तो हिलसा का माइग्रेशन मुश्किल हो गया। हिलसा मछली काफी गतिशील होती है। वैश्विक स्तर पर भी हिलसा का दायरा सिकुड़ते हुए सिर्फ बांग्लादेश-भारत-म्यांमार तक रह गया है। सिफरी के डायरेक्टर डॉ बी.के. दास ने बताया, “भारत सरकार की ओर से इसकी तादाद बढाने के लिए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (नमामी गंगे मिशन) के तहत 2018 से गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं और मछुआरे इसमें एक अहम हिस्सा हैं। सवालों के आधिकारिक जवाब में बताया कि गंगा 190 प्रकार की मछलियों का घर है। गंगा के लोअर स्ट्रेच या लोअर स्ट्रीम में फरक्का से फ्रेजरगंज तक मछुआरों के सामाजिक-आर्थिक आकलन में पता चला है कि हिलसा जैसी मछलियां मछुआरों की आय में 38.84% का योगदान करती हैं। हालांकि अपस्ट्रीम में फरक्का से प्रयागराज और कानपुर तक मछुआरे इस महत्वपूर्ण प्रवासी मछली से वंचित हैं। एक समय था जब यह मछली दिल्ली और आगरा में भी उपलब्ध होती थी।
सिफरी ने बताया, “फरक्का बैराज गंगा नदी में हिलसा के प्रवास में बाधा डालने वाला प्रमुख अवरोध है। इसलिए हिलसा को डाउनस्ट्रीम में पकड़ना और उसे अपस्ट्रीम में छोड़ना उनके प्रवासन को सुविधाजनक बनाएगा। सिफरी ने फरक्का बैराज से अपस्ट्रीम में 74,962 जुवेनाइल हिलसा मछली को छोडा है। सिफरी के जवाब के अनुसार राजमहल, भागलपुर और बलिया के मछुआरों ने अपने यहां फरक्का में डाली गई हिलसा के आने की पुष्टि की है। गंगा में 10 लाख 82 हजार निषेचित अंडों को भी छोड़ा गया है। फरक्का में फरक्का ऑथोरिटी से दो तालाब लेकर अपस्ट्रीम में हैचरी बनाई गई है।
हालांकि विशेषज्ञ ऐसे प्रयोगों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। एक विशेषज्ञ ने कहा, “अंडे के जीवित रहने की दर दो प्रतिशत से कम होती है। हिलसा की टैग रिकवरी दर भी वर्तमान में कम है। पानी में परभक्षी द्वारा ज्यादातर अंडे खा लिए जाते हैंं। हिलसा की संख्या तापमान, प्रवाह और वेग जैसे पर्यावरणीय और भूभौतिकीय संकेतों निर्भर करती है।
हिलसा की ब्रीडिंग व उसके लिए अनुकूल परिस्थितियां
मीठे पानी की नदियों में 23 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान पर 23 से 26 घंटे में अंडे से बच्चे निकलते हैं। पानी का तापमान उनके जीवित रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए सर्दियों में प्रजनन और आवागमन सबसे उपयुक्त पाया जाता है। करीब 250 ग्राम की हिलसा तैयार होने में एक साल और एक किलो की तैयार होने में तीन से चार साल लगते हैं। संरक्षण उपायों में जागरूकता पैदा करना, प्रजनन के मौसम में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध, मछली पकड़ने के लिए मच्छरदानी के उपयोग की मनाही, मछली पकड़ने के लिए नदियों में जहर देने पर प्रतिबंध महत्वपूर्ण उपाय हैं। सिफरी का कहना है कि उसने वर्ष 2020-22 की अवधि के दौरान फरक्का से प्रयागराज तक 440 जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें कुल 18,326 मछुआरे शामिल हुए। फरक्का स्थित हिलसा प्रजनन केंद्र (हैचरी)। फरक्का में फरक्का ऑथोरिटी से दो तालाब लेकर अपस्ट्रीम में हैचरी बनाई गई है।

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