झारखण्ड में जानलेवा समस्‍या  है अवैध खनन  

:::सचिन मुरमू:::

इंटर्न,स्‍कूल आफ मास कम्‍युनिकेशन रांची विश्‍वविद्यालय, रांची

 

झारखण्ड राज्य खनिज संसाधनों से समृद्ध है. यहाँ कोयला, लोहा, बॉक्साइट, और अन्य खनिजों के भंडार है, इन खनिजों की बढ़ती मांग ने अवैध खनन को बढ़ावा दिया है|झारखंड में अवैध खनन एक गंभीर समस्या है, जो कई लोगों की मौत का कारण बनता जा रहा है. अवैध खनन में शामिल लोग सरकारी नियमों और सुरक्षा के नियमों और उपायों की अनदेखी करते है, जिससे यह गतिविधि और भी खतरनाक हो जाती है|अवैध खनन के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी बड़े पैमाने पर देखे जाते है.

अवैध खनन अक्सर गरीब और बेरोजगार लोगों को आकर्षित करता है, जो रोजगार के सीमित अवसरों के कारण इसमें शामिल हो जाते है. इसके अलावा स्थानीय माफिया और बेईमान सरकारी अधिकारियों की मिली भगत भी इस समस्या को आगे बढाने का काम करती है|

अवैध खनन के कारण होने वाली दुर्घटनाएं आमतौर पर खदानों का असुरक्षित होना है. अवैध खनन बिना किसी सुरक्षा प्रोटोकॉल के संचालित होती है. इसके अलावा खदानों के धसने, जहरीली गैसों के धीरे-धीरे बहार निकलना, भूस्खलन और गैस विस्फोट, जैसी दुर्घटनाएं होती है. जब खदान धंसती है, तो उसके निचे काम कर रहे मजदूरों के बचने की संभावना बहुत काम होती है|अवैध खनन का स्वास्थ पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, मजदूर लम्बे समय तक बिना किसी सुरक्षा उपायों के धूल, जहरीली गैसों और खनिज कर्णों के संपर्क में रहते है, इससे उनके फेफङों  हानि होता है और वे सिलिकोसिस, फेफङों की बीमारियाँ और कैंसर जैसे घातक बीमारियों के शिकार हो जाते है|झारखंड में अवैध खनन कई जिलों और क्षेत्रों जैसे की धनबाद, रामगढ़, बोकारो, हज़ारीबाग़, गिरिडीह, कोडरमा चतरा और रांची में होता आ रहा है, जिनमें मुख्यता : कोयला और अभ्रक (माइका ) खनन प्रमुख है.

झारखंड में माइका खदान का लीज किसी के पास नहीं है. कारोबारी माइका को आंध्रप्रदेश और राजस्थान का बताकर कागज प्रस्तुत करते हैं, अभ्रक का उपयोग मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधनों, इलेक्ट्रॉनिक्स, और पेंट्स में किया जाता है. झारखंड में माइका का अवैध खनन सबसे ज़्यादा गिरिडीह, कोडरमा, और हज़ारीबाग़ जिलों में होता है. कोडरमा को तो “माइका का राजधानी” भी कहा जाता है| आमतौर पर अवैध अभ्रक खनन के दौरान चाल धसने से बच्चों और महिलाओं की मौत का खबर ज्यादा सामने आते है ,स्थानीय लोग बहुत मामूली कीमत पर अभ्रक माफियाओं को बेच देते हैं, इससे अभ्रक माफियाओं की चांदी है. लेकिन हैरत की बात ये है कि अभ्रक चुनने में छोटे-छोटे गरीब आदिवासी बच्चों को लगाया जाता है. इनकी उम्र महज 10 से 15 वर्ष की होती है.

झारखंड में अवैध खनन से हर साल कई लोगों की मौत हो जाती है, लेकिन इसकी सटीक संख्या का पता नहीं लगाया जा सकता है. यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है और इसमें विभिन्न संगठन और संगठनों के अलग-अलग आंकड़े हो सकते हैं |अवैध खनन को रोकने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर प्रयास करना होगा. सख्त कानून और उनके कठोर अनुपालन के साथ-साथ जागरूकता अभियान भी चलाना जरुरी है, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना होगा ताकि अवैध खनन के दुष्प्रभावों को काम किया जा सके और लोगों को सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण मिल सके |

 

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