::::मनोज:::
रांची : आज 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है। ये दिवस 1970 से मनाया जाता है। दरअसल 1970 में अमेरिका में समुद्री तट पर हुये भयंकर तेल रिसाव से हुये प्रदूषण को देख चिंतित लोगों के समूह ने इस दिवस को बनाने की शुरूआत की थी। तब से लेकर आज पांच दशक से ज्यादा हो गये, पर पृथ्वी को बचाने और उसके दोहन को रोकने में कोई खास सफलता नहीं मिली है। कॉप जैसे अंतर्राष्ट्रिय सम्मेलन बड़े देशों के स्वार्थ और टकराव की भेंट चढ जाते हैं वहां जलवायु परिवर्तन, जीरो कार्बन उत्सर्जन, पृथ्वी का तापमान कम करने और कोयला जनित ईंधन के रोक पर एकराय नहीं बन पाती।
जर्मनी जैसे देशों ने कोयलेके उपयोग पर रोक लगायी है, पर कोरोना के आपदा के समय चरमराती अर्थव्यस्था को संभालने के लिये भारत समेत कई देशों ने कोयला उत्पादन को और बढाने का काम किया। भारत में तो हंसदेव जंगल कोयला खनन की भेंट चढ रहा है। अमीर और सक्षम देश विकासशील और गरीब देशों को कार्बन उत्सर्जन् का दोषी ठहराते रहे हैं। चीन अफ्रिका के छोटे देशों के संसाधनों को चूस रहा है और उनके पूरे पारिस्थिकी का बुरी तरह से संहार कर रहा है। कई अफ्रिकी देशों के सुंदर लैगून को वह मछली पालन और प्रोसेसिंग में बर्बाद कर चुका है।
कुछ साल पहले ब्राजील के अमेजन जंगलों में भयंकर आग लगी थी जो अंतरीक्ष से भी दिखती थी। जानकारों का कहना है कि यह स्वत: लगी कोई जंगली आग नहीं बल्कि ब्राजील सरकार की सोची समझी लगवायी गयी आग थी। ताकि घने जंगल खत्म हों और उन जगहों को बराबर कर खेती योग्य भूमि तैयार कर सकें। ये उस अमेजन जंगल के प्रति रवैया रहा है जिसे दुनिया का फेफड़ा कहते हैं और ब्राजील की पहचान रहा है।
विश्व पृथ्वी दिवस पर एक दिवसीय सेमिनारों, विमर्शों, आयोजनों का दौर तो चलेगा। ढेर सारे भाषण, पृथ्वी बचाने का संदेश, श्लोगन और भयावह आंकड़े तक प्रस्तुत किये जायेंगे लेकिन आज 22 अप्रैल के बाद फिर दुबारा कोई इसकी सुध नहीं लेता।
हमें क्या करना होगा ?
पृथ्वी पर जंगलों, नदियों, वन्य जीवों, जलस्त्रोतों, हरियाली को बचाने के लिये सबसे बड़ी ताकत जनशक्ति है। हमें इस मानसिकता से निकलना होगा कि यह सारी जिम्मेवारी सरकारों और बड़ी सक्षम शक्तियों की है। सरकारें किसी बड़ी परियोजना के तहत या भ्रष्टाचार में वनों का विनाश करती है, पर नदियों तालाबों के अतिक्रमण, प्रदूषण, घरों के आस पास के वृक्षों को काटने , प्लास्टिक प्रदूषण फैलाने , वन्य जीवो के शिकार ,वायु और ध्वनि प्रदूषण के लिये अधिकतम जिम्मेवार तो आम आदमी है और सबसे ज्यादा परिणाम भी आम आदमी ही भुगतता है। यदि आम आदमी सजग हो जाये, प्लास्टिक के उपयोग, नदियों तालाबों के अतिक्रमण और प्रदूषण से परहेज, अवैध बालू खनन ,पहाड़ों की कटाई के प्रति एकजुट होकर विरोध करे तो बड़ा बदलाव दिखने लगेगा।