मनोज कुमार शर्मा
रांची : लोकसभा चुनावों का शोर जारी है। सभी पार्टियां तरह तरह के लुभावने वादे तो कर रही हैं पर खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण झारखंड में पर्यावरण वन या जल संरक्षण किसी भी पार्टी के एजेंडे में नहीं है। सड़क , बिजली , पानी , घर, नौकरी , लोन और भत्ते की बात सभी कर रहे हैं लेकिन एक भी राजनीतिक दल या नेता ने ये नहीं कहा है कि अवैध खनन रोक कर , झारखंड के जंगलों, नदियों , झरनों, झीलों और झारखंड के पर्यावरण को बचायेंगे।
हाइकोर्ट ने सरकार को दिये हैं झीलों के सफाई के आदेश
हाल ही में झारखंड के समाचार पत्रों में राजधानी रांची के सभी डैमों में जलकुंभी भरे होने की खबर प्रकाशित होती रही। गोंदा डैम (कांके डैम) में तो इतना जलकुंभी भर गया कि कांके डैम बचाओं समिति के अमृतेश पाठक ने पोस्टर लगा कर इसका नाम ही कचड़ा डैम रख दिया। इन वाकयों के बाद झारखंड हाइकोर्ट ने सरकार को सख्त लहजे में आदेश दिया कि सभी डैमों से जलकुंभी जल्दी से हटायें। हालांकि यह पहला अवसर नहीं है जब राज्य के नदियों तालाबों पहाड़ों और जंगलों के संरक्षण में असफल रहने पर हाइकोर्ट ने पहली बार सख्ती दिखाई हो, पर हाइकोर्ट की सख्ती धरी की धरी रह जाती है और झारखंड में अवैध खनन, वनों के विनाश और नदियों तालाबों का अतिक्रमण अनवरत जारी रहा है।
लोकसभा चुनावों में झारखंड में तीन प्रमुख पार्टियां है भाजपा, कांग्रेस और झामुमो। तीनों ही पार्टिंयां जल जंगल जमीन की बात तो खूब करती हैं, पर किसी भी दल के नेता ने मुखरता से झारखंड के वनों और पर्यावरण को बचाने की बात नहीं की है। रस्मि तौर पर कभी कभार पर्यावरण के मुद्दे को उठाया जाता है।
दो साल पहले मंत्री मिथिलेश ठाकुर का कोरा आश्वासन
कांके डैम के किनारे दो साल पहले यहां के मछुआरों और बाशिंदों ने प्रदूषण, अतिक्रमण और मछली पालन के अधिकार के लिये कई दिनों तक धरना दिया था, मंत्री जी अपने लाव लश्कर के साथ पहुंचे डैम का नजारा लिया, आस पास सैर सपाटा कर झूठा आश्वासन देकर चलते बने। उसके बाद फिर कभी इधर ताकने भी नहीं आये। आज कांके डैम सबसे प्रदूषित डैमों में से एक है। आधी राजधानी को पेयजल उपलब्ध कराने वाले कांके डैम का संरक्षण और प्रदूषण किसी भी पार्टी के लिये मुद्दा नहीं है।