शीनम
महाभारत काल में भी झारखंड से संबंधित कुछ तथ्य मिलते हैं। कहते हैं यह क्षेत्र तब के मगध शासक जरांसध के अधीन था और इसे वार्त्य प्रदेश कहते थे। और यहां के किसी कारागार में जरासंध ने कई पराजित राजाओं को बंद कर रखा था जिनकी संख्या सौ पूरी होने पर वह उन्हें बलि चढाता। उपनिषदों में भी झारखंड शब्द का उल्लेख मिलता है। और भी कई ग्रंथों में झारखंड दिखता है कभी मुरूंड प्रदेश तो कभी किसी और नाम से। झारखंड के बारे में शोध कर किसी ने यह बात कही है कि,
अयस्क पात्रे पय: पानम, शाल पात्रे च भोजनम
शयनम खर्जुरी पात्रे, झारखंड विधिवते
मतलब जहां के लोग अयस्कों (खनिज पत्थरों) के बने पात्रों में जल ग्रहण करते हैं और शाल के पत्तों में भोजन करते हैं, और खजूर के पत्तों पर सोते हैं। यहां ये बातें प्रकृति के साथ यहां के निवासियों की समीपता और संसाधनों की प्रचुरता को बताती हैं। झारखंड में भाषा, खान पान, और गीत संगीत की संपन्नता किसी को भी अभिभूत कर सकती है।
आज का झारखंड अपने पड़ोसी राज्यों बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ और बंगाल के प्रभावों को लिये हुये एक धनी और विलक्षण सांस्कृतिक राज्य है। अगर देश के अन्य राज्यों से झारखंड के संस्कृति को तुलनात्मक रूप से देखें तो यह सबसे अलग और विविधतापुर्ण रंग में दिखेगा। झारखंड के निवासी उत्सवजीवी, आडंबर रहित और उनमुक्त विचारों के होते हैं।