झारखंड में किसानों से धान की सरकारी खरीद पर रोक
वरीय संवाददाता
एक ओर केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ विपक्ष आंदोलन और विरोध में जुटा हुआ है, दिल्ली के आस पास हो रहे किसान आंदोलनों को तकरीबन सारे विपक्ष का समर्थन प्राप्त है।
झारखंड सरकार ने भी केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को किसानों के लिये नुकसानदेह बता कर इसका विरोध किया है, पर यह एक अजीब विरोधाभासी बात है कि जो झारखंड सरकार केंद्र के कृषि नीतियों के खिलाफ है, उसे किसान विरोधी बता रही है वह स्वयं झारखंड के किसानों से धान खरीदने से इनकार कर रही है। राज्य के वित्त मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव ने राज्य के किसानों से यह कह कर धान खरीदने से मना कर दिया कि इस मौसम में धान भींगा हुआ है जिसे खरीद कर हम राज्य के खजाने को खाली नहीं कर सकते। वहीं राज्य के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने इस मुद्दे पर ढुलमुल सा रवैया दिखाया है।
दरअसल किसानों के हित में बड़ी -बड़ी बातें करना , उन्हें अन्नदाता बता कर उनका महिमा गान करना, राजनीति करना तकरीबन सारे राजनीतिक दलों का प्रिय शगल है, पर हकीकत में जमीनी तौर पर किसान हित में ठोस काम करने से सबों को परहेज है। जहां एक ओर राज्य के मुख्यमंत्री किसानों के मुद्दों पर केंद्र सरकार की खिंचाई करते हैं वहीं झारखंड में धान की खरीदी पर फिलहाल रोक पर चुप्पी साध लिये हैं। चुनाव पूर्व किसानों को ढाई हजार रूपये प्रति क्विंटल देने के बादे पर अब अमल के बजाय दो हजार पचास रूपये देने की बात सामने आ रही है। किसान हित की कई योजनाओं के बंद होने की बात भी सामने आ रही है।
झारखंड में मंडी सिस्टम जैसी कोई चीज नहीं है और यहां धान उपज का बहुत कम प्रतिशत ही सरकारी खरीद में शामिल है। राज्य सरकार के धान खरीद पर रोक के फैसले के बाद गावों कस्बों में किसान साहूकारों के पास बहुत ही कम कीमत पर अपने खून पसीने की उपज बेच रहे हैं।
लॉकडाउन में लौटे मजदूरों और समय पर इंद्र की कृपा से इस वर्ष धान की अच्छी पैदावार हुई थी
लॉकडाउन संकट में देश भर से मजदूर इस बार जैसे तैसे अपने गांव को लौटे थे और धान रोपने के मौसम में उन्होंने जम कर खेती की। इस कारण से पूरे देश में धान की खेती का रकबा भी बढा। इसके अलावा इस साल मॉनसून ने भी भरपूर साथ दिया। झारखंड में भी इस बार समय पर बारिश होती रही और खरीफ की अच्छी फसल की उम्मीद की गयी है। ऐसे में निश्चय ही झारखंड सरकार के द्वारा किसानों के धान की फसल की खरीदी पर रोक एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। पलामू प्रमंडल के कुछ किसानों का कहना है कि तैयार धान उपज की अगर सरकारी खरीद नहीं होती है तो ज्यादतर किसान धान को स्टोर कर के नहीं रखते, वो अंतत: नगद पैसों की आवश्यकता के कारण औने पौने कीमत में भी धान को बेचेंगे ही। अगर वो धान को बेचते नहीं है तो भी उसके बर्बाद होने का चांस ज्यादा है।
वैसे भी केंद्र की कृषि नीतियों का विरोध एक अलग विषय है, पर झारखंड में पंजाब हरियाणा जैसी कोई मंडी सिस्टम तो है नहीं। महज 10-15 प्रतिशत धान की ही सरकारी खरीदी होती है, ऐसे में ज्यादतर किसान तो अंतत: खुले मार्केट में ही अनाज बेचता है।
किसान स्थानीय साहूकारों से बेच रहे हैं धान
झारखंड में अनुमानत: 28 लाख हेक्टेयर में खेती होती है और धान ही यहां की मुख्य फसल है। इस वर्ष धान की फसल भले ही अच्छी हुई हो पर किसानों की आमदनी अच्छी नहीं हो रही है। सरकार ने धान की खरीद शुरू नहीं की है। जिसके कारण किसान अपने धान स्थानीय साहूकारों को बेच रहे हैं। इसका मूल्य उन्हें सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य से आधा मिल रहा है। किसानों का कहना है कि सरकार यह कह कर धान क्रय केंद्र नहीं खोला जा रही है कि किसानों का धान अभी गीला है। इधर कई किसानों का कहना है कि धान गीला है तो फिर साहूकार कैसे ले रहे हैं। सरकार साहूकारों की जेब भरने के लिए धान क्रय केंद्र नहीं खोले जाने का फैसला लिया है।
महज 1200 रुपये क्विटल बेच दिए धान
एक किसान ने बताया की उसने 12 क्विंटल धान पैदा किया है। खाने भर रखकर 7 क्विंटल धान 1200 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेच दिए हैं। उन्होंने कहा कि रबी फसल की बुआई के लिए धान बेचना भी जरूरी है। सरकार के गलत फैसले के कारण अब तक धान क्रय केंद्र नहीं खुला। इससे किसान आर्थिक रूप से बर्बाद हो रहे हैं। जबकि अभी किसानों को रबी फसल के लिए पूंजी का भी इंतजाम करना है।