सिदाम महतो
खूंटी: राज्य के खूंटी जिला में चल रहे जन शक्ति, जल शक्ति अभियान के तहत ‘बोरी बांध’ की चर्चा आज मीडिया में हो रही है। जिला के मुरहू प्रखंड के कई नाले में ग्रामीणों न मिलकर बोरी बांध का निर्माण किया। सेवा वेलफेयर सोसाइटी एवं जिला प्रशासन खूंटी ने ग्रामीणों के श्रमदान को उत्साहवर्धन कर ज्यादा से ज्यादा ‘बोरी-बांध’ निर्माण करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
क्या है बोरी बांध?: बरसात का महीना खत्म होने के बाद नदी, नाला(सतिया) का जल -प्रवाह कम होने लगता है। गर्मी आते- आते तो नदी -नाला सूखने लगती हैं। जल संकट के संभावित खतरे को देखते हुए ग्रामीण नदी-नाले की धार को रेत या मिट्टी से मेड़ बनाकर रोककर रखते हैं। रेत या मिट्टी को बोरी में भरा जाता है इसलिए इसे ‘बोरी बांध’ कहा जा रहा है।अतिरिक्त जल की निकासी के लिए किनारे में एक निकास द्वार(पोईन) छोड़ दिया जाता है, ताकि बांध टूट न जाए।
जल संग्रह करने की यह तकनीक नई नही है। झारखंड में नदी , सतिया(नाला)किनारे के लोगों के लिए यह तकनीक वर्षों पुरानी है। पहले लोग बांध बनाने में बोरी का इस्तेमाल नही करते थे। नदी के किनारे के कई गांव वाले इस तरह का बांध बनाया करते थे। बैल, मवेशी की सहायता से रेत को इक्क्ठा कर मेड़ बना देते और अस्थाई बांध बना लेते थे। ग्रामीणों के लिए यह बांध बहुउद्देशीय प्रोजेक्ट हो जाता है।
◆ मछली पालन- इस अस्थाई बांध में मछली पालन भी किया जाता है। जिस तरह मिलकर बांध का निर्माण करते है उसी तरह मिलकर मछलियों को मारते हैं और आपस मे बांट लेते हैं। आपस मे एकत्व का भाव निर्माण होता है।
◆गाय, बैल, मवेशी को नहलाने के लिए यह बांध काम मे आ जाता है।
◆ किनारे की जमीन पर फसल के लिए पानी उपलब्ध हो जाता है।
◆ यह बांध गर्म पानी का स्रोत भी बन जाता है। बांध के मेड़ के नीचे से ठंड के महीने में गर्म जल का स्राव होता है और गर्मी के महीने में ठंड जल का स्राव होता है।
बांध के नीचे नहाने के लिए साफ और स्वच्छ पानी मिल जाता है। कोई लोग तो इस जोरक के पानी को पीने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।ऐसे बांध के निर्माण से आसपास के कुओं में भी जलस्तर बढ़ जाता है। आपसी -एकता के अभाव में नदी किनारे के गांव के बहुत से ग्रामीण इस तकनीक को छोड़ चुके हैं। क्योंकि अकेले का काम नही है। यह एक टीम वर्क है।
खूंटी जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसायटी की सक्रियता की वजह से नदी-नाला में अस्थाई बांध बांधने की हमारी पुरानी तकनीक फिर से जिंदा हो उठी है।इसी क्रम में ग्रामीणों के सहयोग के बल पर जिले के अंतिम छोर पर बसे मुरहू प्रखंड के रूमुतकेल पंचायत अंतर्गत बडा डाहंगा गांव के नाले पर दो और छोटा डाहंगा में तीन, कुल पांच बोरीबांध बनाये गए। उप विकास आयुक्त, अरूण कुमार सिह का कहना है कि जनशक्ति से जलशक्ति आंदोलन सराहनीय है। खूंटी के दुर्गम इलाके में पानी दुर्लभ होता जा रहा है। भूगर्भिय जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है। ऐसे में पानी को बचाने के लिए सेवा वेलफेयर सोसाईटी और ग्रामीणों के द्वारा जिला प्रशासन के सहयोग से जल के लिए चलाया जा रहा यह आंदोलन सराहनीय है। डाहंगा में पूर्व से आदिवासियों द्वारा पत्थरों से की गई मेढ़बंदी, पत्थर और बोरियों से हुए बांध निर्माण से सीख लेने की बात उन्होंने कही।