भारत में वन एवं उनका पर्यावरणीय महत्व

डॉ. कृष्ण कुमार मिश्र
एसोशिएट प्रोफेसर
होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र
टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान
(सम-विश्वविद्यालय)
मुंबई-400088

वनों का हमारे समाज तथा संस्कृति से सदियों पुराना गहरा रिश्ता रहा है। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों तथा लेखों में वनों की महत्ता का वर्णन खूब मिलता है। आज भी धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वृक्षों की पूजा होती है।
भारत में लगभग हर तरह के वन तथा विविध किस्म के पेड़-पौधे पाए जाते हैं। ये वन अनगिनत पक्षियों, जानवरों तथा कीट-पतंगों के लिए आवास स्थल प्रदान करते हैं। विश्व में हमारे देश की एक खास पहचान है। यह न सिर्फ भारत के भूगोल, इतिहास और संस्कृति के कारण है, बल्कि प्राकृतिक पारितंत्रों की महान विविधता के कारण भी है। भारत में कृषि के बाद इस्तेमाल होने वाला सबसे बड़ा भूभाग वन हैं। भारत का 67830000 हेक्टेयर भूभाग वनों से ढँका हुआ है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.64 प्रतिशत है। हमारे देश के वनों में लगभग 45000 तरह की वनस्पतियां तथा 81000 तरह के जीव-जन्तु पाए जाते हैं। भारत के वनों की चित्रमाला अण्डमान निकोबार द्वीपसमूह, पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्वी राज्यों से उत्तर में हिमालय के शुष्क अल्पाइन वनों तक फैली हुई है। इन दोनों के मध्य अर्द्धसदाबहार वर्षा वन, पर्णपाती मॉनसून वन, कँटीले वन, उपोष्ण-कटिबंधीय पाइन वन और निचले पहाड़ों के शीतोष्ण वन हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार भारत का वन क्षेत्र कुल भौगोलिक क्षेत्र का 19.27 प्रतिशत है।
वन किसी राष्ट्र की अमूल्य संपदा होते हैं। ये किसी देश की समृद्धि और सम्पन्नता के द्योतक होते हैं। वनों की आवश्यकता क्यों है, और इनका क्या पर्यावरणीय महत्व होता है, आज हर कोई इस बात से थोड़ा बहुत जरूर परिचित है। वन एक ऐसे क्षेत्र को कहते हैं जहाँ वृक्षों का घनत्व बहुत अधिक हो। वन एक ही तरह के पेड़ों से भी भरे हो सकते हैं, और यह भी हो सकता है कि उनमें काफी छोटे क्षेत्र में ही कई भिन्न-भिन्न प्रजातियाँ हों। भूमण्डल का करीब 9.4 प्रतिशत क्षेत्र वनों से ढँका है जो कुल भूमि क्षेत्र का 30 प्रतिशत है। किसी समय धरती का कुल 50 प्रतिशत हिस्सा वनों से आच्छादित था। लेकिन मनमाने ढंग से की गई वनों की कटाई और उचित प्रबंधन के अभाव में वनों का इलाका तेजी से कम होता गया है।
वन हर उस जगह पाए जा सकते हैं जहाँ की जलवायु पेड़ पौधों के विकास में सहायक हो। यह हरे भरे क्षेत्र न सिर्फ अपार जैवविविधता के भण्डार और अनगिनत जीव जन्तुओं के निवास स्थान हैं अपितु सीधे तौर पर हमें लकड़ियाँ, ईंधन, बाँस और अन्य लाभदायक उत्पाद भी उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा पशुओं का चारा, उनके चरने का स्थान, तथा व्यावसायिक और औद्योगिक रूप से आवश्यक पदार्थ मिलते हैं। वनों से इमारती लकड़ी, चारकोल, कागज़ निर्माण के लिए सामग्री, गोंद, डाई, एवं अन्य पदार्थ प्राप्त होते हैं। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में वनों की बहुत ही अहम भूमिका होती है। इसीलिए कहा जाता है कि अगर हमें धरती पर पर्यावरण को बचाना है तो वनों को बचाना हमारी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। बहुत सारी पर्यावरणीय समस्याओं के पीछे वास्तव में तेजी से सिमटते जा रहे वनों का क्षेत्र ही मुख्य कारण है। इसलिए आज हमें अपने पूर्वजों की प्राचीन अरण्य संस्कृति से प्रेरणा लेने की जरूरत है जहां इंसानों का वनों तथा वन्यप्राणियों के साथ सहअस्तित्व हुआ करता था। वनों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2011 को अंतरराष्ट्रीय वन वर्ष के तौर पर मनाया गया था।

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