अब देश भर में छठ महापर्व की तैयारियां प्रारंभ हो जायेंगी। सालो भर गंदगी का अंबार रहे सभी छोटे बड़े जलाशयों का सरकारी और जनसहयोग से साफ साफाई किया जायेगा। ये छठ महापर्व की ही देन है कि धर्म आस्था के साथ ही पर्यावरण की भी सेवा हो जाती है। दो दिनों तक इन जलाशयों क ा कायाकल्प तो हो जाता है, पर पर्व समाप्त होते ही इन नदियों, तालाबों, घाटों को कचड़े से पाट कर हम सभी चल देते हैं , फिर अगल साल भर ये पूज्य घाट और जलाशय नर्क में डूबे रहते हैं। कोरोना महामारी के कारण इस बार पर्व त्यौहारों में भीड़ कम है। अब हमें ये भी सोंचना चाहिये कि महामारी के कारण अगर हम संयमित होकर कम प्रदूषण, कचड़ा पैदा कर रहे हैं तो इसे भविष्य में भी बरकरार रखें। आखिर सालो भर जल, स्वच्छ हवा , और भोजन देने वाले पर्यावरण और प्रकृति की सेवा और देखभाल हम सिर्फ छठ महापर्व के दो दिनों में हीं क्यों करें? हम पूरे वर्ष भर भी थोड़ा सा खयाल रखें तो हमारा पर्यावरण सदैव स्वच्छ रहेगा।
हम भारतीय उत्सवधर्मी होते हैं। हमारे देश में सालो भर पर्व त्यौहारों का आयोजन होते हंै। इनमें शोर गुल, भीड़, भव्यता, दिखावे की होड़ भी रहती है। गौर से देखें तो हिंदू पर्व त्यौहारों का एक खास वैज्ञानिक और पर्यावरणीय उद्देश्य भी होता है। जैसे सावन में मांसाहार से परहेज ताकी उन महिनों में मछलियों एवं जलीय जीवों की संख्या बढे़ और बीमार मछलियों को खाने से हम बचें, बारिश के बाद साफ सफाई वाले त्यौहारों का आयोजन जिसमें इसी बहाने सभी जलाशयों की साफ सफाई हो जाती है, दीपावली में तेल के दिये जला कर हम दीपोत्सव के साथ ही कीट पतंगो की आबादी को भी नियंत्रित करते हैं और इस बहाने हम घरों की साफ सफाई भी कर देते हैं। पर समृद्धि आने के साथ ही भारतीयों ने अपने पर्व त्यौहारों के मूल उद्देश्यों को भूला कर इसे प्रदर्शन का मौका बना दिया। सबसे विशाल पंडाल, सबसे विशाल मुर्ति बनाना, बेतहाशा भीड़, शोर , कचड़ा और प्रदूषण पैदा करना हमारी फितरत सी बन गयी। इन सब कृत्यों को धर्म आस्था और उन्माद से जोड़ दिया गया। हाल के कुछ सालों मे पर्व त्यौहारों के बाद देश भर में प्रदूषण का खतरनाक स्तर तक बढ जाना आम बात है। राजधानी दिल्ली में तो इन पर्व त्यौहारों के बाद सांस लेना और देखना भी मुश्किल हो जाता है।
कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष पर्व त्यौहारों का रंग फीका हो गया है, भव्य पंडालों के निर्माण से और भीड़ से लोग बच रहे है। बाजारों में रौनक कम है। बेशक इस बार प्रदूषण और शोरगुल भी कम होगा। तो क्या हम मजबूरीवश ही कोरोना के कारण मिले इस मौके पर चिंतन नहीं कर सकते कि आगे से हम अपने पर्व त्यौहारों को भव्यता, शोर और प्रदर्शन के बजाय उसके मूल उद्देश्यों के साथ मनायें। उल्लास हो पर शोर, कचड़े, प्रदूषण से हम बचें। अव्यवस्था, दुर्घटना या अप्रिय घटनाओं को टालें और आनंद पूर्वक त्यौहारों का आयोजन करें।