झारखंड के दो युवाओं की जल संचयन तकनीक भुंगरू की वैश्विक स्तर पर चर्चा

अब हमें पानी की खेती भी करनी होगी

राजा बागची ने बताया कि एक भूंगरु से करीब 40 लाख लीटर से ले कर 4 करोड़ लीटर तक जल संचयन किया जा सकता है और   जितना भी काम भूंगरु ने झारखंड में  किया है।  सभी जगहों पर करीब – करीब एक से डेढ़ करोड़ लीटर का कैचमेंट मिला है साधारण भाषा मे अगर कहें तो एक तालाब में 15 से 20 लाख लीटर पानी होता है और जब भूंगरु डेढ़ करोड़ लीटर की बात करता है तो करीब करीब एक भूंगरु दस तालाब को हंगरी स्टार्टा  में  संचय करता है और जब इतना पानी जमीन के अंदर रहता है तो इसका मॉइस्चराइजर ऊपर आता है और बंजर जमीन भी उपजाऊ हो जाती है और खेतों में नमी बरकरार रहती है इससे “CLIMATE CHANGE MITIGATION” भी कहते है । भूंगरु के डायरेक्टर रथीन भद्रा ने प्रेजेंटेशन देते हुए बताया कि दुनिया को वैज्ञानिक तरीके से जल संचयन करना चाहिए जिससे कि सही में फायदा हो जल संचयन का और उन्होंने पूरी दुनिया को आगाह किया कि अगर हम अब भी नही चेते और भूंगरु जैसे साइंटिफिक जल संचयन को नही अपनाया तो वो दिन दूर नही की पानी के लिये हम त्राहिमाम करेंगे और यह हमे एक और विश्व युद्ध की ओर धकेल देगा । रथीन भद्रा ने बताया कि पानी को हम बना नही सकते है, पानी को हम पैदा नही कर सकते है पानी को हम सिर्फ और सिर्फ संचय ही कर सकते है और अब समय आ गया है कि जैसे हम दाल , चावल, गेंहू, बाजरे की खेती कर रहे है वैसे ही अब हमें “पानी की खेती” भी करनी ही होगी। 

 

संवाददाता
झारखंड और रांची के लिये यह गौरव का विषय है कि हाल ही में कृषि पर हुये अंतर्राष्ट्रीय वेब सम्मेलन में जल संचयन की नायाब तकनीक भुंगरू को विश्व के सभी देशों ने बहुत ही सराहा और इसमें रूचि ली। ग्रीन रिवोल्ट ने पहले भी भुंगरू के बारे में विस्तार से एक खबर प्रकाशित किया है। अब भुंगरू को राजा बागची एवं रथीन भद्रा ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी है।

यह वेब कांफ्रेंस कोविड-19 काल में कृषि में वैज्ञानिक तरीकों के इस्तेमाल विषय पर आयोजित था। जो 4 अक्टूबर से 6 ऑक्टूबर 2020 तक आयोजित था। इस इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में देश दुनिया की कई यूनिवर्सिटी तथा लोगो ने भाग लिया जैसे बांग्लादेश , मलेशिया , इंडोनेशिया, इजिप्ट, सऊदी अरब. इस इंटरनेशनल वेब कॉन्फ्रेंस में कुल 721 शोधार्थियों ने अपना अपना शोध प्रस्तुत किया और प्रस्तुतिकरण के माध्यम से सबों को अपने रिसर्च के बारे में बताया कि कैसे इससे कृषि को फायदा हो सकता है ।
721 शोधार्थियों में से एक झारखंड के भूंगरु “पानी की खेती” को भी जगह दी गई और सबसे मुख्य स्पीकर में रखा गया , भारत से ले कर इजिप्ट तक सभी देशों ने झारखंड के भूंगरु “पानी की खेती” पद्धति के बारे में भूंगरु के आविष्कारक राजा बागची तथा रथीन भद्रा से बहुत ही बारीकी से समझा और कई सवाल भी किये और इस पद्धति से हो रहे फायदे के बारे में जान कर भूंगरु के जलसंरक्षण के इस पद्धति की काफी प्रसंशा किया और इससे “BOON FOR FARMERS” का नाम दिया और इसे AGRICULTURAL AND ENVIRONMENTAL TECHNOLOGY DEVLOPMENT SOCIETYY ने अपने सोविनियर के पृष्ठ संख्या 27,28 तथा 29 में भी लिखा। कई देशों के कृषि विश्वविद्यालयों ने इस पद्धति को बढ़ावा देने की बात भी कही और टीम भूंगरु (राजा बागची / रथीन भद्रा) को आमंत्रित भी किया। अपने प्रेजेंटेशन में भूंगरु के आविष्कारक राजा बागची ने बताया कि किसान आज क्यों आत्महत्या करने पर मजबूर हैं।
अत्यधिक अव्यवस्थित बारिश के कारण खेतो में जल जमाव हो जा रहा है जिसके कारण किसानों की खड़ी फसल नष्ट हो जा रहे है वहीं पानी के कमी के कारण रबी का फसल नही हो पाता है जिसके कारण उनके पास और कोई विकल्प ही नही बच रहा है। कर्ज चुकाने के लिये या तो वे दिहाड़ी मजदूर बन शहर की ओर पलायन कर रहे है या फिर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे है। अगर इन जल जमाव वाले खेतो के आस पास कही भी भूंगरु होता तो अपने सक्शन और इंजेक्शन टेक्नोलॉजी से सारे जल जमाव वाले पानी को सोंख लेता और उसे अपने खास संचयन तकनीक से एक जगह संचय कर लेता इससे किसानों की खाड़ी फसल बर्बाद होने से बच जाती और भूंगरु के माध्यम से रबी के फसल के लिए भी पानी प्राप्त हो जाता। इससे किसानों को साल में दो फसलों का लाभ मिलता और उनकी आय भी दुगुनी हो जाती तो फिर क्यों कोई किसान आत्महत्या करेगा या पलायन करेगा ?

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