कुछ सालों से लक्जरी कारों में गोवंशियों की तस्करी हो रही है। इन लक्जरी कारों के डिक्की या पिछली सीट पर गाय बैलों को रस्सियों में जकड़ कर कुछ इस तरह से निर्ममता से बांधा जाता है ताकि वो कार की कम जगह में भी समा जायें। और पुलिस से लेकर किसी को भी लक्जरी कार में गाय होने का शक भी न हो।
पुलिस ने जमशेदपुर में भी कुछ साल पहले कार में ऐसे ही गौवंशियों को ले जाते पकड़ा था, कुछ मामलों में तो जानवर के पैर को ही तोड़ दिया जाता है ताकि उसे आसानी से मोड़ कर कार में रख सके।
रांची :चार और पांच सितंबर को रांची के नामकोम इलाके में लगातार दो दिन कार में जैसे तैसे ठूृंस कर गोवंशियों को ले जाते कुछ युवकों को लोगों ने खदेड़ की पकड़ा और उनकी पिटाई कर पुलिस को सौंप दिया। छोटी कारों में पिछली सीट और डिक्की तक में गोवंशियों को ठूंस कर रखा गया था। तय है कि इन्हें कसाईखाने में ले जाया जा रहा था इसलिये इन्हें निर्ममता से किसी समान की तरह रस्सियों में बांध कर सिकोड़ कर छोटा कर दिया गया था ताकि इन्हें छोटी कारों में भी ठूंस कर ले जाया सके ।
मांसाहार की प्रवृति मनुष्य में आदिकाल से है और ये एक अलग विषय है कि मांसाहार सही है या गलत, पर भारत जैसे देश में जहां गोवंशियों से आम लोगों की आस्था भी जुड़ी हुई है और इसके खिलाफ कानून भी है वहां गाय बैलों को क्रूरतापूर्वक कार में या कंटेनरों में ठूंस कर तस्करी कर ले जाना बहुत दुखद है। जिस जानवर को मार कर खा जाना है उसके साथ पहले से ही भयानक क्रूरता अपराध है, और इस पर सख्ती आवश्यक है। यहां कानून जब असफल होता है तो, आम जन में भी आक्रोश पनपता है और मॉब लिंचिग से लेकर राजनीति तक शुरू हो जाती है, लेकिन इन सब के बीच इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि इन पशुओं को ढोने और तस्करी के दरम्यान भयानक यातनायें दी जाती हैं और प्रबुद्ध वर्ग भी रहस्यमयी चुप्पी साधे रहता है। इस कृत्य के खिलाफ लिंचिंग पर संसद तक में सवाल तो उठाये जाते है, पर पशुओं को क्रूरता से वाहनों में ठूंस कर तस्करी करने वालों पर किसी जिम्मेदार सांसद, पत्रकार या प्रबुद्ध वर्ग की जबान शायद ही कभी खुलती है।