रितेश कुमार दीपक
रांची- पिठौरिया के युवा किसान अभिषेक कुमार महतो कहते हैं कि मैं अपने खेतों में कभी भी यूरिया खाद का उपयोग नहीं करता। इसके रासायन खेतों को अंतत: ऊसर बना देते हैं और यूरिया जनित उपज भी शरीर के लिये हानिकारक होते हैं। अभिषेक का कहना है कि मैने खेतों में नाइट्रोजन की कमी को दूर करने के लिये गौमुत्र से लेकर गोबर खाद तक उपयोग किया है और जीवामृत जो कि गौमुत्र, गोबर, पुराने पेड़ों के जड़ की मिट्टी जैसे सामग्रियों से बनाई जाती है उसका उपयोग करता हूं । ये पूरी तरह से ऑर्गेनिक तरीका है इनके उपयोग से खेत की उर्वरता तो बढती ही है साथ ही
इससे प्राप्त उपज भी पूरी तरह से शुद्ध होते हैं। इसके उपयोग के बाद मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि खेतों में यूरिया डालने की आवश्यकता है। केवल कुछ मौको पर बहुत ही कम मात्रा में मैने वैस्ेा नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्ट्रिया के लिक्विड का छिड़काव किया है जो खेतों को नुकसान नहीं पहुंचाते और नाइट्रोजन की भरपाई कर देते हैं। और इससे फसल पुष्ट होता है। ये भी बहुत ही कम कभी कभार उपयोग करता हूं। मैने इसकी जानकारी बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में होने वाले आयोजनों मीटिंगों से प्राप्त की है और बहुत कुछ फोन में इंटरनेट पर भी देख कर सीखा कि किस तरह से बगैर यूरिया जैसे उर्वरकों के भी अच्छी खेती की जा सकती है।
मनोजरंजन सिंह
जहां एक ओर झारखंड में यूरिया की कमी और कालाबाजारी के साथ ही तय सरकारी रेट से ज्यादा कीमत वसूलने की शिकायतें मिल रही हैं वहीं राज्य में कुछ ऐसे युवा किसान भी हैं जो पारंपरिक और घरेलु विधि से ही सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं और बिना यूरिया के ही अच्छी फसल प्राप्त कर रहे हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री ने भी यह आह्वान किया था कि अगले पांच सालों में यूरिया के उपयोग को बिल्कुल कम कर देना है क्योंकि इससे खेतों की उर्वरता कम होती है।
जब ग्रीन रिवोल्ट को पिठौरिया के युवा किसान अभिषेक कुमार महतो के बारे में यह जानकारी मिली कि वह बिना एक मुट्ठी यूरिया डाले हुये ही सफलता से खेती कर रहे हैं और अच्छी उपज भी प्राप्त कर रहे हैं तो हमने उनसे संपर्क किया और उनसे बातें करके और उनके खेतों को देख कर इस बात की पुष्टि भी हुई कि बगैर यूरिया के भी देश के कृषक आसानी से अच्छी खेती कर सकते हैं। यूरिया को लेकर किसानों में भ्रांतियां भी हैं जैसे इसके उपयोग बगैर फसल अच्छी नहीं होगी, इसका कोई विकल्प नहीं है। जबकि हकीकत ये है कि यूरिया में उपयोग होने वाले रासायन खेतों को बंजर तक बना देते हैं। ग्रीन रिवोल्ट से बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के एक वैज्ञानिक का कहना है कि किसान अगर जीवामृत से लेकर पारंपरिक तकनीक का उपयोग करें तो बगैर यूरिया के भी अच्छी खेती की जा सकती है। लेकिन समस्या एक बार किसी परंपरा के शुरू हो जाने पर उसी के पीछे पड़े रहने की है। दरअसल ज्यादतर किसानों को यूरिया के उपयोग की आदत हो गयी है और किसानों को ऐसा लगता है कि बगैर यूरिया केअच्छी फसल प्राप्त होगी ही नहीं। जबकि समय – समय पर किसानों को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय जीवामृत से लेकर ऐसी देसी विधियों की तकनीक बताते रहता है जिसमें बिना यूरिया डाले भी खेती की जा सकती है। और तो और कई अन्य विकल्प भी उपलब्ध हैं जो यूरिया की जगह ले सकते हैं। यूरिया के निर्माण में जो सीएस का उपयोग होता है वह कृषि योग्य भूमि को बंजर भी बना देता है।
यूरिया जनित सब्जी की उपज भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है यह कई हानिकारक तत्वों को लिये होती है, हालांकि न तो किसान और न ही आम आदमी इस स्तर तक जाकर सोंचता है लकिन यह एक तथ्य है कि वर्तमान में प्राप्त ज्यादतर कृषि उत्पाद हानिकारक तत्व लिये हुये हैं जोे हमारे स्वास्थ्य के लिये पूर्ण सुरक्षित नहीं हैं। ऑर्गेनिक खेती अभी भी दूर की कौड़ी है, पर देर सबेर हमें यूरिया से निजात पाना ही होगा।