कृषि बिल : ध्‍यान रहे कि अन्याय न हो अन्नदाता के साथ

मनोज शर्मा

देश में पहले भी किसानों के लिये आसमान से तारे तोड़ कर लाने के वादे सरकारें करती रही हैं, पर हमारा किसान पहले भी गरीब था आज भी गरीब है। किसी कहानी में भी किसान को हम एक गरीब किसान था वाक्य से ही पहचानते हैं।
उसके उपज के लिये आज भी कोल्ड स्टोरेज में जगह नहीं होता, वह ज्यादा कीमत देकर खाद, बीज खरीदता है। साग सब्जियां अगर महंगी हो गयीं तो सबसे पहले महंगाई का शोर होता है। केंद्र सरकार का दावा है कि नये कृषि विधेयक से किसानों की स्थिति बेहतर होगी। उन्हें फसलों का उचित मूल्य मिलेगा, आढतियों की मनमानी खत्म होगी, वह देश में जहां चाहें वहां ले जाकर फसल और उपज को बेच सकेंगे। यह सब सुनकर एक खुशहाल किसान की तस्वीर तो मन में उभरती है, पर आज तक यह सब जमीन पर नहीं उतरा।

हमारे कृषि प्रधान देश में हर रोज दस हजार लोग खेती छोड़ कर शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। लाख नियम कानून और भाषण के बाद भी झारखंड में ही हर रोज कृषि योग्य भूमि किसानों के मन या बेमन से कब्जायी जाती है और वहां कंक्रीट जंगल उगने शुरू हो जाते हैं। अब तो राज्य में ये प्रयास भी हो रहा है कि जमीन के म्यूटेशन में अपराध करने वाले अफसरों पर कोई कार्रवाई ही न हो।
बिहार में 80 के दशक में किसानों को सरकार ने कर्ज पर सिचाई मशीन उपलब्ध करवाये थे। तब उस पांच हजार की सिंचाई मशीन के एवज में किसानों को बीस बीस हजार तक चुकाने पड़े थे और कईयों को खेत बेच कर यह ऋण चुकता करना पड़ा था। कई जेल गये, कई ऋण वसृली के भय से भागते फिरे थे और यह सब सरकार के ऋण के चलते हुआ था। सरकार तब किसी सूदखोर महाजन से भी क्रूर अंदाज में थी। हालांकि तब से लेकर आज तक में बहुत कुछ बदला है, पर अभी बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है।
नये कृषि विधेयक में केंद्र सरकार का कहना है कि कांट्रेक्ट फार्मिंग से किसानों को उनके उपज की सही कीमत मिलेगी और किसानों को अपने भूमि को खोने का कोई भय नहीं है, सरकारी खरीद भी पहले की तरह ही जारी रहेगी। लेकिन सबसे मूल बात कि नये कृषि विधेयक के बारे में कई बातें जो तौर पर जबानी कही जा रही हैं वह विधेयक में लिखित में नहीं हैं। ऐसे में इस बात की क्या गारंटी है कि किसानों के साथ कोई छल नहीं होगा? वैसे भी भारत में किसानों के साथ सरकार से लेकर, माफियाओं, बैंकों और घाघ व्यापारियों के छल का पुराना इतिहास है। और ये धोखे चुपचाप दफ्न होते गये ,किसी ने खुलकर आवाज नहीं उठायी। इसलिये आवश्यक है कि किसानों के साथ कोई छल न हो?