मनोज शर्मा
रांची : अभी हाल में झारखंड में लैंड म्यूटेशन बिल को लेकर सरकार और विपक्ष में ठन गयी थी। आम आदमी भी इस बिल को लेकर संशकित है। दरअसल सरकार के इस बिल का एक संदेश जो निकल कर आया है कि इस बिल के बाद भ्रष्ट अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकेगी। जिससे सबों को लग रहा है कि पहले से ही अंचल के निरंकुश अधिकारियों को और खुल्ली छूट मिल जायेगी?
- ऑनलाइन आवेदन तो कर सकते हैं, पर काम होने के वक्त कर्मचारी दौड़ाना शुरू कर देते हैं।
- ऑनलाइन अमीन के लिये आवेदन कर सकते हैं, पर आवेदन लंबे समय तक कर्मचारी के पास अटका रहता है।
- अंचलों के कर्मचारी आफिस से उपलब्ध फोन शायद ही कभी उठाते हैं।
- यहां सीओ कर्मचारी से लेकर आदेशपाल तक के नेक्सस में लक्ष्मी दर्शन का खेल है।
- हाल के दिनों में रजिस्टर टू में भी हेराफेरी की खबरें चर्चा में हैं।
झारखंड जैसे राज्य में जहां जमीन की खरीद बिक्री में बहुत सारे कायदे कानून हैं, आदिवासियों की जमीन को खरीदने पर रोक है और तो और यहां जमीन के प्रकार भी बहुत हैं जिनपर अलग – अलग नियम कानून लागू होते हैं। भुइंहरी, खुटकट्टी से लेकर राजी परहा वगैरह जिसे कोई अच्छा जानकार ही ठिक से समझ सकता है।
झारखंड में अंचल कार्यालय और सीओ ये दो नाम ऐसे है जिसे सुन कर लोगों के मन में एक खटास पैदा हो जाती है। कारण बिल्कुल स्पष्ट है। यहां अंचलों में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी चरम पर है और कस्बाई अंचलों में वाजिब काम के लिये भी रिश्वत मांगना आम बात है। कमाल की बात है कि इसमें कर्मचारी, कंप्यूटर ऑपरेटर से लेकर सीओ तक खुद शामिल रहे हैं। मेरा खुद का अनुभव है कि दाखिल खारिज के बिल्कुल ही साफ सुथरे आवेदन में भी अंचल में एक रेट बंधा हुआ है। उस रेट को देने पर ही कर्मचारी उस दाखिल खारिज को पूरा होने देता है, वर्ना आवेदक को दौड़ाया जाता है। इस बाबत जब सीओ से पूछा गया तो उसका कहना है कि ये सब बदला नहीं जा सकता , हम ऐसे ही काम करेंगे।
अंचलों के कारगुजारियों पर नकेल कसने के प्रति सरकारें भी उदासीन रही हैं। याद किजिये पिछली सरकार में बरकट्ठा के एक अंचल अधिकारी पर सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में कार्रवाई की तो पूरे राज्य में अधिकारियों ने एकजुट होकर सरकार को काम ठप्प करने की धमकी दी और सरकार को अंतत: झुकना पड़ा।
रांची के हेहल अंचल में कुछ साल पहले एक सीओ पर जमीन के म्यूटेशन और रजिस्ट्री करने संबंधित गंभीर आरोप लगे थे। अंतत: उस पर कार्रवाई के बजाय उस अधिकारी की सेवा उसके मूल विभाग को वापस कर दी गयी।
झारखंड में कई भूखंडों को बेचने खरीदने पर कानूनन रोक है। राजधानी में ही गौर करें तो आप पायेंगे कि जिस खास भूखंड के बिकने की आप ने कल्पना तक नहीं की थी उस पर एकाएक अपार्टमेंट खड़े होने लगते हैं और इस पर सर्वत्र चुप्पी रहती है। इस चुप्पी का अर्थ जनता निकालती रहे पर ये हकीकत है कि इन मामलों में अंचल के बगैर घालमेल के कुछ भी संभव नहीं हो सकता।
ऑनलाइन सिस्टम कितना कारगर?
वर्तमान में जब से दाखिल खारिज और जमीन की प्रकृति रकबा नक्शा इंटरनेट पर उपलब्ध कराया गया है। प्रारंभ में अंचलों में कर्मचारियों का कहना था कि इससे तो बेहतर पुराना मैन्युअल सिस्टम ही था। दरअसल ऑनलाइन होने से कोई भी व्यक्ति रजिस्टर टू देखने के अलावा, अपने जमीन का रकबा, प्रकार, नक्शा सब कुछ देख सकता है। साथ ही कोई भी व्यक्ति म्यूटेशन के लिये ऑनलाइन अप्लाई भी कर सकता है। इस सिस्टम के होने से आम लोगों को कुछ लाभ अवश्य हुआ है, पर ऑन लाइन हर चीज का निराकरण नहीं है। शहर के कई अंचलों में ही सब कुछ सही रहने , रजिस्टर टू में रिकार्ड के रहने बकाया दिखने के बावजूद लगान कटने में समस्यायें हैं और अंचल में जाकर इसके लिये आवेदन देने पर मामला महिनों तक लंबित रहता है। इस समस्या के निराकरण के लिये रांची में हीं कई बार कैंप तक लगाये गये, पर जहां ये समस्या थी वहां आज भी वैसे ही हैं। इन कैंपों के आयोजन से अंचल के कर्मचारी भी खिन्न रहते हैं उनका रवैया लोगों के साथ असहयोगात्मक रहता है। अभी तो ये आरोप भी लग रहे हैं कि अंचलों में ऑनलाइन डाटा में भी हेर फेर कर दी जा रही है। इसे लेकर हाल में खबरें भी प्रकाशित होती रही हैं। ऐसे सैकड़ो मामले झारखंड में हैं जिसमें अवैध तरीके से रजिस्ट्री कर जमीन का दाखिल खारिज तक कर दिया गया। पहले भी इन मामलों पर पर कार्रवाई के बजाय लीपापोती होती रही है और नये लैंड म्यूटेशन बिल से संभवत: अधिकारियों को कानूनन गलत करने का लायसेंस मिल जायेगा।
अब सरकार का ये कहना कि गलत करने वाले अधिकारियों पर सरकार चाहे तो कार्रवाई कर सकती है? सरकार के इस दलील से कई सवाल खड़े हो जाते हैं। जैसे सरकार आखिर कब चाहेगी और क्यों चाहेगी? आखिर लैंड म्यूटेशन बिल की क्या आवश्यकता है? गलत करने वाले अधिकारियों को आखिर बचाने के लिये कोई बिल लोगों को हताश कर रहा है। कुछ बड़े अधिकारियों का कहना है कि इस बिल से अधिकारियों को प्रताड़़ना से बचाया जा सकेगा। ऐसे में मूल सवाल है कि अधिकारियों की प्रताड़ना कोैन करता है? और उनके प्रताड़ना की आखिर नौबत क्यों आती है?