विकास के नाम पर झारखंड में हरियाली की बर्बादी

रांची : खबर में लगे चित्र में रांची के धुर्वा में स्मार्टसिटी के निर्माण के नाम पर तकरीबन 300 पेड़ों को कटा हुआ देख सकते हैं। रांची में स्मार्टसिटी और स्मार्टरोड बनाने का प्रहसन बहुत पुराना है। ये दोनों चीजें दो दशकों में धरातल पर नहीं उतरीं, पर इनके नाम पर पुराने पेड़ों की कटाई लगातार जारी है। धुर्वा में 900 पेड़ों को काटा जाना है, तकरीबन तीन सौ पेड़ों के कटने के बाद स्थानीय लोगों के विरोध के कारण वृक्षों की कटाई रोक दी गयी है। लोगों का कहना है कि एचइसी के बनने के समय ही यह पेड़ इस इलाके में प्रदूषण को कम करने के लिये लगाये गये थे। ये पांच दशक पुराने पेड़ हैं जिन्हें हम कटने नहीं देंगे। लेकिन सरकार इसका कोई विकल्प नहीं खोज सकी और अंतत: ये दशकों पुराने 900 पेड़ काट ही दिये जायेंगे।

हाल ही में एनजीटी ने झारखंड सरकार पर नये विधान सभा भवन क्लियरेंस लिये बगैर बनाने पर 144 करोड़ का दंड लगाया है। इसके अलावा राज्य में कई ऐसे भवनों को भी चिन्हित किया गया है जो बिना एनजीटी के स्वीकृति के बनाये गये हैं। संभवत: झारखंड में एनजीटी का यह पहला सख्त कदम था। इसके बावजूद यहां सरकारें वनसंपदा संपन्न झारखंड में इनके संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं रही हंै।

पिछले ही साल राज्य सरकार की रिपोर्ट आयी थी कि झारखंड में वन क्षेत्रों में वृद्धि हुई है और अब यह बढ़ कर 32 प्रतिशत से कुछ ज्यादा है। यह आंकड़ा आम झारखंडियों को राहत दे सकता है, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। यहां यह समझने की चीज है कि उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों में हरियाली बढ़ी है जिसमें राज्य में किसी भी प्रकार के वनों, पार्को, बगीचों से लेकर खेतों में अरहर की फसल और केले के बगान को तक शामिल हैं लेकिन हरियाली के इतर राज्य में वास्तविक सघन वनों का प्रतिशत कितना बढा?
राज्य में हाइवे बनाने से लेकर अन्य निर्माणों में पुराने और विशाल वृक्षों की पुरजोर कटाई की गयी है। किसी भी सरकार की यह दलील होती है कि विकास के लिये यह आवश्यक है, लेकिन इसमें कभी भी अन्य विकल्पों पर विचार नहीं किया जाता है। बेशक राज्य के विकास के लिये सड़कों का होना आवश्यक है, पर क्या सड़क मार्ग परिवर्तित कर या समानांतर मार्ग बना कर सालों पुराने इन सुकूनदेह वृक्षों को काटने से बचाया नहीं जा सकता?