शारदा सिन्हा का जाना: गरिमामयी गायकी का एक दीया बुझ गया

चौड़े प्रकाशमय माथे पर गोल बड़ी सी बिंदी, मुंह में पान और वो पुरकशिश मधुर आवाज हमारे बीच से चली गयी।

:::मनोज कुमार शर्मा:::
पद्मश्री शारदा सिन्हा भी इश्वर के श्रीचरणों में चलीं गयीं। ‘जो आया है उसे जाना है ‘ ऐसा सोच कर हम मन को सांत्वना दें लेते हैं, पर क्‍या ही संजोग है कि छठ गानों की पहचान शारदा सिन्हा का छठ के समय ही जाना  जैसे मां सरस्वती पुत्री लता मंगेशकर का सरस्‍वती पूजा के समय ही जाना? लता मंगेशकर के बाद अब  शारदा सिन्हा के रूप में प्रतिष्ठित गरिमामयी गायकी का एक और दीया बूझ गया। हाल ही में उनके पति का भी निधन हुआ था और वो बहुत दुखी थीं। कलाकारों, गायकों और खिलाड़ियों से हम भारतीय यह उम्मीद करते हैं कि वह सदैव रहें और अपना काम करते रहें, पर ऐसा होना असंभव है।

हम सभी शारदा सिन्हा के गीतों को सुनते हुये ही बड़े हुये। बचपन में  हमारे मन में ये भाव भी था कि ये हमारी मिट्टी और बिहार की खुश्‍बू लिये ये मधुर गीत औरों को समझ नहीं आते होंगे? और महानगरों वाले इन गीतों पर हमारा मजाक उड़ाते होंगे? इस सोच का कारण भी था शहर में रहने वाले मेरे एक चाचा ने शारदा सिन्‍हा के भजन कैसेट पर तब के  फिल्‍मी गाने रिकार्ड करवा लिये थे।हालांकि  बाद में मेरी ये सोच गलत साबित हुई जब शारदा सिन्‍हा को बॉलीवूड में भी आदर सहित न्‍यौता दिया गया और वो वैश्विक तौर पर सम्‍मान प्राप्‍त कीं। उनके गाये भजन और भोजपुरी मैथिली गीत गांव में खेलते कूदते भी हमारे जबान पर होते थे। मेरे पास पापा का लाया एचएमवी का एक मोनो टेप रिकार्डर था और उसमें शारदा सिन्‍हा के कैसेट को हम सुनने के लिये संजो कर रखते थे। उनके गाये गीत…
जगदंबा घर में दीयरा बार अइनी हे
का लेके ? शिव के मनायब हो
शिव जोगी होके अइलें जंगलवा में
पनिया के जहाज से पलटनिया बनके अइह पिया
उनका “बताव चांद केकरा से कहां मिले जालअ” ने तो रिकार्ड तोड़ सफलता प्राप्त की थी।
उन्हें मैथिल कोकिला, स्वर कोकिला की उपाधि प्राप्त हुई और गानों के लिये गोल्डन रिकार्ड दिया गया।

समस्‍तीपुर केइएच स्‍कूल में विद्यापति समारोह में उनका आना

मेरा बचपन से किशोर उम्र तक का सफर समस्तीपुर में गुजरा शारदा सिन्हा तब समस्तीपुर में एक शिक्षिका थीं उन्हें हम अक्सर देखते थे और वहां हर साल केइएच स्कूल के प्रांगण में होने वाले विद्यापति समारोह में उनका आना रौनक को बढ़ा देता था। वहां जिस दिन शारदा सिन्हा आती थीं उस दिन समारोह में भीड़ बढ जाती थी। हम सभी रात तक बैठे रहते थे, सोनी पाठक, नगेंद्र झा को सुनने के बाद इंतजार रहता था कि कब शारदा सिन्हा आयेंगी? बिना उन्‍हे सुने, तृप्‍त हुये हम नहीं उठते थे। उनके भोजपुरी और मैथिली गीतों की कशिश ऐसी थी कि लगता था सुनते ही जायें। तब बिहार के छोटे से शहर समस्तीपुर की एक बड़ी पहचान दी शारदा सिन्हा।

कैरियर में किसी उतार चढाव से परे रहीं शारदा सिन्‍हा
शारदा सिन्हा कैरियर में किसी भी उतार चढ़ाव से ऊपर थी। एक बार उन्‍होंने जो पहचान और गरिमा प्राप्त की वह आजीवन एक सा बरकरार रहा। उनकी आवाज में एक गजब की कशिश और मिठास थी जो उम्र से बेअसर प्रारंभ से अंत तक एक सी रही। वो मैथिली भाषी थीं, पर मैथिली और भोजपुरी दोनों भाषाओं पर उनकी गजब की पकड़ थी। दोनों भाषओं में गीत गाकर दोनों को सिंचित किया ,उंचाईं दीं। बाद के गायकों द्वारा भोजपुरी गीतों पर जो ठप्‍पा लगाया गया है उसके उलट अपने गीतों से भोजपुरी को उन्‍होंने विशेष सम्‍मान दिलवाया।

बॉलीवूड फिल्म में उनका गाना मुझे गलती से बजता हुआ लगा था
जब सलमान भाग्यश्री की सफल फिल्म मैंने प्यार किया में “कहें तो से सजना” सुना तो मुझे लगा था कि ये सिनेमा हाल में गलती से बज गया है। क्योंकि मुझे लगता था कि बंबइया फिल्म में इस मधुर और देसी चाशनी वाले गीत को जगह कैसे मिलेगी? बाद में पता चला कि  बड़जात्या भी शारदा सिन्हा के गीतों से अभिभूत थे और अपनी फिल्मों में शारदा सिन्हा के गीतों का सफल उपयोग विशेष प्रभाव के लिये किया। यह शारदा सिन्हा की आवाज का ही जादू था।

छठ गीतों को वैश्विक पहचान दिलाने वाली शारदा सिन्हा का छठ के समय ही जाना ? लगता है छठी मैया को भी उनसे विशेष प्रेम था तभी तो उन्हें इसी समय अपने पास बुला लिया। अब प्रकाशमय से चौड़े ललाट पर वो बड़ी सी गोल बिंदी, मुंह में पान और मधुर कोकिला सी वो आवाज़ देखने सुनने को नहीं मिलेगी। हे छठी मैया उस लोक में भी शारदा सिन्हा को वही स्थान, सम्मान देना जो इस लोक में दिया।

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