झारखंडियों की तसर रेशम उत्पादन में अहम भूमिका

प्रतिमा प्रिया

यूजी इंटर्न, स्‍कूल आफ मास कम्‍युनिकेशन

रांची विश्‍वविद्यालय, रांची

पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्हाइट हाउस की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन और उनकी पत्नी जिल बिडेन को भारत के विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए विशेष उपहार भेंट किए। इनमें से एक उल्लेखनीय उपहार झारखंड में निर्मित तसर रेशमी कपड़ा था।
जहां तक तसर रेशम उत्पादन की बात है, तो भारत में झारखंड इसका सबसे बड़ा उत्पादक है। देश के कुल उत्पादन का 70% हिस्सा अकेले झारखंड ही पूरा करता है। अपने सुनहरे रंग, खास बनावट और मजबूती के लिए जाना जाने वाला यह कपड़ा, झारखंड की संस्कृति विरासत का एक अहम हिस्सा है।

आदिवासी विशेषज्ञता और वनों का आशीर्वाद

तसर रेशम के पीछे का जादू झारखंड के विभिन्न जिलों जैसे दुमका, गोड्डा, सरायकेला-खरसावां और सिंहभूम में रहने वाले कुशल आदिवासी समुदायों के हाथों में है।इन समुदायों ने तसर के रेशम के कीटों को पालने की कला में महारत हासिल कर ली है।ये कीट अर्जुन और आसन के पेड़ों की पत्तियों पर पलते हैं, जो राज्य के जंगलों में बहुतायत में पाए जाते हैं।तसर के रेशम के कीट जंगल में रहते हैं।आदिवासी जंगलों से तसर के अंडे (डबा के नाम से जाना जाता है) इकट्ठा करते हैं और उन्हें सावधानीपूर्वक तब तक संभालते हैं जब तक वो फूट नहीं।इसके बाद, निकले हुए लार्वा को पेड़ों की शाखाओं पर रखा जाता है ताकि वे पत्तियों को खा सकें।एक बार परिपक्व होने के बाद, लार्वा अपने कोष्ठ बनाते हैं, जिन्हें काटकर रेशम के रेशे निकाले जाते हैं।

आजीविका का सुनहरा धागा

तसर रेशम उत्पादन सिर्फ एक कलाकृति ही नहीं है, बल्कि झारखंड के हजारों आदिवासी परिवारों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है।अंडे इकट्ठा करने से लेकर कोकून को संसाधित करने तक की पूरी प्रक्रिया विभिन्न चरणों में आजीविका के अवसर प्रदान करती है।कुछ समुदाय जहां रेशम के कीटों को पालने में विशेषज्ञता रखते हैं, वहीं अन्य लोग रेशों को सुंदर कपड़ों में बुनने में माहिर हैं।तसर रेशम उद्योग स्व-सहायता समूहों और प्रशिक्षण पहलों के माध्यम से उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है और महिलाओं को सशक्त बनाता है।

चुनौतियां और पहल

अग्रणी स्थान होने के बावजूद, झारखंड के तसर रेशम उद्योग को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।एक प्रमुख बाधा राज्य के भीतर ही कोकून को संसाधित करने के लिए सीमित बुनियादी ढांचा है।परंपरागत रूप से, कच्चे माल का एक बड़ा हिस्सा आगे की प्रक्रिया और बुनाई के लिए बिहार के भागलपुर ले जाया जाता है।इस समस्या से निपटने के लिए, राज्य सरकार सेंट्रल सिल्क बोर्ड जैसे संगठनों के साथ मिलकर झारखंड के भीतर ही प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने पर काम कर रही है। यह न केवल अधिक रोजगार पैदा करेगा बल्कि कारीगरों को मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने में भी मदद करेगा।साथ ही, रेशम के कीट पालने की तकनीकों को बेहतर बनाने और तसर रेशम की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी शोध किया जा रहा है।झारखंड का तसर रेशम परंपरा, कौशल और सतत विकास का एक चमकता उदाहरण है।

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