झारखंड का विलुप्त होता फल महुआ

खुशबू

पीजी इंटर्न, स्कूल आफ मास कम्युनिकेशन

रांची विश्वविद्यालय, रांची

 

झारखंड वन संपदा से भरा हुआ प्रदेश है. झारखंड के नाम से ही पता चल जाता है कि जंगल की भूमि यानी झारखंड. बता दे कि झारखंड के जंगलों में कई प्रकार के पेड़ पौधे मौजूद हैं जिस कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है.लेकिन उनमें से एक पेड़ महुआ का हैं.झारखंड के ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों के लिए मुख्य कमाई का साधन है.

इसको दूसरी भाषा में कहें तो महुआ का पेड़ कोई कल्पवृक्ष से कम नहीं है.
महुआ का सीजन आते हैं इसके आमदनी पर निर्भर रहने वाले ग्रामीणों के चेहरे खिल उठते हैं. महुआ का सीजन आमतौर पर मार्च महीने के दूसरे हफ्ते से लेकर अप्रैल महीने के दूसरे हफ्ते तक माना जाता है.इस दौरान इसके पेड़ों पर पीले फल और फूल लदे हुए रहते हैं.

*ग्रामीणों के लिए आमदनी का है अच्छा विकल्प*

इसके सीजन आने का इंतजार ग्रामीणों को साल भर रहता है और जैसे ही सीजन आता है ग्रामीणों का चेहरा खिल उठता है. क्योंकि ग्रामीणों को आमदनी का महुआ एक अच्छा विकल्प मिल जाता है.

*झारखंड के लातेहार में होती हैं महुआ की अच्छी पैदावार*

झारखंड की बात करें तो झारखंड का लातेहार जिले में महुआ की अच्छी खासी पैदावार होती है. ग्रामीण सुबह उठते ही महुआ को चुनने निकल जाते हैं.चुनकर इसको सुखाया जाता है। जब महुआ का फल पूरी तरह से महुआ सूख जाता है तब इसे बाजार में बेचा जाता है जिससे ग्रामीणों को अच्छी खासी आमदनी हो जाती है.

*मार्च महीने में शुरू होती है इस फल का सीजन*

महुआ का सीजन मार्च महीने में शुरू होता है और इस महीने में होली पर्व भी मनाया जाता है. होली में बाहर कमाने जाने वाले ग्रामीण अपने घर लौटते हैं इस दौरान महुआ का भी सीजन रहता है.जिसके वजह से घर पर ही ग्रामीणों को आमदनी का एक अच्छा खासा जरिया मिल जाता है. जिससे ग्रामीणों का पलायन भी कुछ महीनो के लिए रुक जाता है.

*महुआ से शराब व कई उपयोगी चीज़े बनाए जाते हैं*.

महुआ से शराब बनाने के अलावा कई दूसरे कामों में भी प्रयोग में लाया जाता है.महुआ के तेल से
भी अच्छा खासा मुनाफा कमाया जा रहा है. कुल मिलाकर यह कहें कि महुआ झारखंड के ग्रामीणों के लिए किसी कल्पवृक्ष से काम नहीं है तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी.

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