विश्व पर्यावरण दिवस और सरहुल: प्रकृति की रक्षा के दो रूप

अजय मुण्‍डा इंटर्न, स्‍कूूल ऑफ मास कम्‍युनिकेशन रांची विश्‍वविद्यालय, रांची

विश्व पर्यावरण दिवस और सरहुल, दोनों ही त्योहार प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को दर्शाते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है, जबकि सरहुल झारखंड के आदिवासी समुदायों द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता है। दोनों का उद्देश्य एक ही है – पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना और उसके संरक्षण के लिए प्रेरित करना, लेकिन उनके मनाने के तरीके और परंपराएं अलग-अलग हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस

विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाना और इसके लिए जागरूक करना है। इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जैसे वृक्षारोपण, स्वच्छता अभियान, जागरूकता रैलियां और सेमिनार। सरकारी और गैर-सरकारी संगठन, स्कूल, कॉलेज और समुदाय इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। हर साल इस दिवस की एक नई थीम होती है, जो पर्यावरण से जुड़े किसी खास मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करती है।

सरहुल

दूसरी ओर, सरहुल झारखंड के आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण वसंत त्योहार है। यह त्योहार नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और मुख्य रूप से कुरुख और सदान जनजातियों द्वारा मनाया जाता है। सरहुल में गाँव के पुजारी पाहन गाँव के अच्छे भाग्य के लिए सूर्य, ग्राम देवता और पूर्वजों को सरना में फूल, फल, सिन्दूर, मुर्गा और तपन (शराब) की बलि चढ़ाते हैं। लोग साल वृक्ष की पूजा करते हैं और सामूहिक रूप से नृत्य-गान करते हैं, जो उनके जीवन और संस्कृति में प्रकृति के गहरे संबंध को दर्शाता है।

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