::::::मनोज कुमार शर्मा:::::
स्लाईड शो दिखाने, पीएम 2.5, पीएम10 पर लंबा लंबा बांचने और फलां शोध फलां सर्वे बताने भर से प्रदूषण कम नहीं होता । स्वयंभू एक्सपर्ट्स की टीम और इन एनजीओ संस्थाओं के राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सरकारी मोटी फंडिंग जुगाड़ने से वायु जल थल प्रदूषण नहीं घटने वाला। इनमें से ज्यादतर झूठ का प्रदूषण दूर करने वाली चोंचलेबाजी है।
हाल ही में दिल्ली में यमुना की सफाई पर केजरी और भाजपा के बीच नूरा कुश्ती देखे। दशकों से आरोप प्रत्यारोप जारी है, पर यमुना नरक की नरक बनी हुई है।वैसे ही जैसे पंजाब की पराली से दिल्ली प्रदूषित होती है,पर आज तक उसका निदान नहीं निकला और प्रहसन सालों से अनवरत जारी है। हर साल पराली जलायी जाती है, शोर होता है।
इधर एनजीटी का काम सिर्फ फाइन करना है। कुछ ऐसे ही जैसे दीवार पर लिखा हो कि यहां मूतने पर दस रू फाइन लगेगा और मूतने वाले दस रू देने को तैयार हैं। यमुना दशकों से साफ की जा रही है, अब इतना साफ हो गयी है कि झाग से उठते बादलों में लोग़ों को खड़ा देख कर स्वर्ग लोक के मंदाकिनी नदी और इंद्र के रंगशाला में होने का भान होता है। ऊपर से धन्य हैं वो छठ व्रती जो इस काले सड़े हुये जल वाले यमुना में उतर कर भुवन भाष्कर को अर्ध्य देते हैं। पूजा अर्चना हमेंशा शुद्ध स्वच्छ स्थलों की चीज है। सबसे बड़ा मजाक कि इतना शोर, खर्च, आऱोप प्रत्यारोप , चिंतन मनन, सेमिनार, खुजली वाले एनजीओ, कथित प्रदूषण चिंतक, विचारक ,भयंकर भयंकर शोधी दिन रात बड़े बड़े सेमिनार करके हर महिने एसटाइल में बांचते फिरते हैं। प्राना, त्राना और कौन – कौन सा वेबसाइट का हवाला देते रहते हैं। सच बताऊ़ं तो आम लोगों के पल्ले ये सब कुछ नही पड़ता।
हाल में मैं वायू प्रदूषण पर एक सेमिनार में गया था। एक युवती वायु प्रदूषण पर धड़ाधड़ स्लाइड शो दिखाये और बांचे जा रही थी। उसने अपने एक स्लाइड में भारत के नक्शे में उत्तरपूर्व के छोटे से राज्य त्रिपुरा को भी वायु प्रदूषण के खतरनाक दायरे में लाल करे दिखाया हुआ था। मुझे डाटा पर खटका हो गया, मैने पूछ दिया ये नोर्थ इस्ट में त्रिपुरा कैसे वायु प्रदूषण में खतरनाक है? जवाब में लीपापोती हो गया, मुझे अहसास हूआ कि नक्शा दिखाने वाले को भी पता नहीं था कि त्रिपुरावा है केन्ने? एक अमदी बोले वहां आज भी झूम खेती होती है, मने घने जंगल काट कर जलाते हैं और जगह खाली कर खेत बनाते हैं। सच कितना है पता नहीं। अब वैसे जंगल हैं कहां कि झूम खेती हो? सेमिनार में रांची नगर निगम के कमिश्नर शशिरंजन जी भी आये थे। मन किया कि पूछे कि रांची नगर निगम पूरे साधन संपन्न लाव लश्कर के बाद भी बड़ा तालाब से जलकुंभी का एकछत्र राज समाप्त नहीं कर पाता लेकिन हिंदपीढ़ी के दो मछुआरे कइसे पंद्रहे दिन में नाव और रस्सी से ही पूरा जलकुंभी बड़ा तालाब से साफ कर दिये ? लेकिन सवाल नहीं पूछे भाई लोग मुझे विध्न बाधा वाला मान लिया जाता। शशिरंजन जी बताये कि झीरी में कंचरा निस्तारण प्लांट लगाने जा रहे हैं।आखिर रांची झीरी को कचरा डंपिंग यार्ड बने 15 साल से ज्यादा हो चुके हैं, वहां के चाणक्यपुरी के लोगों को नरक का साक्षात दर्शन कराते रहे हैं। आप कचड़ा निस्तारण प्लांट लगा दो पर इतने साल जो नरक भोगवाया गया उसपर तो दिल से यही आवाज आती है कि…तेरे फुरकत के सदमे कम न होंगे।
इधर 27वें कांफ्रेस आफ पार्टी का सम्मेलन मिस्त्र में होने वाला है। मुझे लगता है वहां भी सारे देशों के प्रतिनिधियों की मंशा वैश्विक प्रदूषण दूर करने के बजाय अपना उल्लू सीधा करना होता है। अमीर देश प्रति व्यक्ति ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करते हैं और गरीब देशों का नरेट्टी चांपते हैं। यूरोप अमेरिका के क्लोरोफ्लोरोकार्बन से ओजोन लेयर में छेद बड़ा होता गया, पर नसीहत भारत जैसे विकासशील देशों को दी जायेगी,ग्रेटा थंबंर्ग भााारतत और मोदी जी क़ो कोसेगी। पिछले कौप सम्मेलन में भी लिये गये निर्णयों पर कुछ खास अमल नहीं हुआ है। रूस यूक्रेन युद्ध ने उर्जा संकट पैदा किया है इस कारण से कोयले का उपयोग बंद कर चुके जर्मनी सरीखे देशों से खबर आ रही है कि वो फिर से अब कोयले का खनन और उपयोग करेंगे।
वास्तव में पर्यावरण संकट से निबटने वाले थिकम्मा जैसे मुट्ठी भर गांव देहात के अनपढ लोग अकेले ही एकड़ो बंजर भूमि में जंगल लगा देते हैं।
सूखी नदियों नहरों तालाबों में अकेले सिमोन उरांव दादा जैसे लोग पानी की धार ला देते हैं।
रांची के बड़ा तालाब को दो मछुआरे जलकुंभी मुक्त कर देते हैं।
आसाम का युवक ब्रह्मपुत्र के किनारे घने जंगल बसा देता है ताकि जीव जंतु बाढ में बच सकें।
बाकी सब जगह सिर्फ शोर है शोर ।