किरण साहू
रांची 25सितंबर : किसानों के लिए उनके खेत और पशु ही उनकी संपति हैं. ऐसे में किसान अपने खेतों और पशुओं को लेकर बेहद ही गंभीर होते हैं. किसानों के जीवन में बदलाव लाने के लिए खेती और पशुपालन पर विशेष बल दिया जा रहा है. इसी कड़ी में राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत मवेशियों में कृत्रिम गर्भाधान को बढ़ावा दिया जा रहा है. पशु नस्ल सुधार के उद्देश्य से झारखण्ड में ग्रामीण स्तर पर पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान को गति दी जानी है. जिसे सभी मैत्री प्रशिक्षाणार्थी को ग्रामीण स्तर पर दक्ष कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्त्ता के रूप में कार्य निर्वहन करना है. प्रशिक्षण से प्राप्त तकनीकी का गाँवों में गव्य विकास को बढ़ावा दे और अनुभवों को ग्रामीण गो-पालक से साझा करें. स्थानीय पशु चिकित्सक के परामर्श से कम खर्च पर आसानी से कृत्रिम गर्भाधान द्वारा पशु नस्ल सुधार कार्यक्रम को गतिशील बनाये रखने की कोशिश करें. उक्त बातें कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि कृत्रिम गर्भाधान पर 30 दिनी दसवाँ मैत्री प्रशिक्षण का समापन के मौके पर कही.
मौके पर डीन वेटनरी ने कहा कि प्रशिक्षण के उपरांत सभी प्रशिक्षाणार्थी को 60 दिनों का व्यावहारिक प्रशिक्षण जिले के कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में प्राप्त होगा. इस अवधि में 75-100 कृत्रिम गर्भाधान कार्य एवं परीक्षण का अनुभव मिलेगा. इस व्यावहारिक अनुभव से प्रशिक्षाणार्थी की कार्य दक्षता एवं उपलब्धि पर उनका मानदेय और आमदनी निर्भर होगी. पशुपालकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी.
प्रशिक्षण समन्यवयक डॉ एके पांडे ने बताया कि कार्यक्रम में चतरा, देवघर, धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग, कोडरमा, रांची एवं जामताड़ा के कुल 56 बेरोजगार ग्रामीण युवक-युवतियों ने भाग लिया. जिन्हें कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के अलावा पशु प्रबंधन तकनीकी की विस्तृत जानकारी दी गई है.
कार्यक्रम राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के अधीन झारखण्ड स्टेट इम्प्लीमेंट एजेंसी फॉर कैटल एंड बुफैलो डेवलपमेंट के सौजन्य से आयोजित किया गया. संचालन प्रशिक्षण सहायक डॉ मुकेश कुमार ने किया.
कृत्रिम गर्भाधान पर 30 दिनी दसवाँ मैत्री प्रशिक्षण का समापन
