सिकीदिरी के श्‍यामसुंदर बेदिया की फूलों की सुंदर बगिया

पूनम कुमारी पीजी इंटर्न, स्‍कूल आफ मास कम्‍युनिकेशन रांची विश्‍वविद्यालय, रांची

यूं तो लोग अपने घर-जमीन को छोड़कर नगर में कमाने- खाने जाते हैं,किसान भी यही चाहता कि उनका बेटा पढ़ाई लिखाई करके नौकरी करें क्योंकि उन्हें खेती से लाभ नहीं मिलती.लेकिन कोविड महामारी ने यह तो सिखा दिया कि अपना गांव- जमीन अपना होता है लोग काम छोड़- छोड़ कर अपने गांव की ओर आए.इसी दौरान सिकिदिरी के दुबलाबेड़ा गांव के एक किसान प्रेरणा का स्रोत बने.श्यामसुंदर बेदिया का झुकाव शुरू से ही बागवानी में था, इसी झुकाव ने उन्हें फूलों का व्यवसाय करने का साहस दिया,जिसे आज लोग दूर-दूर से इनसे प्रशिक्षण लेने और बागवानी को देखने आते हैं.श्यामसुंदर बेदिया अपने दोस्तों एवं और किसानों से मिलकर 13 एकड़ जमीन पर फूलों की खेती आरंभ किया, उन्होंने बैंक से लोन के लिए अप्लाई भी किया था, पर उन्हें साफ मना कर दिया गया.लेकिन दोस्तों एवं ग्रामीणों ने साथ दिया और उन्होंने अपनी पूंजी इस काम में लगाए और यह काम शुरू किया.
झारखंड सरकार ने वर्ष 2017 में राज्य के 26 किसान को इसराइल दौरे पर भेजा था, श्यामसुंदर उनमें से एक थे.उन्होंने वहां जाकर ड्रिप सिंचाई एवं जैविक तरीके से खेती करना सीखा और इस चीज को उन्होंने यहां अपने खेती में भी उपयोग किया और यह सच में कारगर साबित हुआ.उनके खेत में अभी गुलाब,जरबेरा और अनेक फुल की खेती की जा रही है.साथ ही साथ गर्मी की सब्जियां भी लगाई हुई हैं, जिससे यह और भी किसानों को प्रेरणा दे रहे हैं. साथ में उनको कैसे सरकार की तरफ से सहायता मिल रही है, उसके बारे में भी लोगों को जानकारी दे रहे हैं.आज के युवा भी कृषि को एक नए अवसर के रूप में देख रहे हैं.कई कॉलेजों में इसकी पढ़ाई भी कराई जा रही है , अलग-अलग क्षेत्र के किसान श्यामसुंदर की बागवानी को देखने आते हैं एवं परीक्षण लेकर जाते हैं. श्यामसुंदर ने यह जाना कि हमें नौकरी के लिए बाहर भटकने की जरूरत नहीं है, हम अपने गांव में अपने जमीन पर ऐसी खेती कर सकते हैं, जिससे लाखों के फायदे हो,जो की एक आम नौकरी से भी ज्यादा है. शादी एवं पूजा में इसके डिमांड बहुत ज्यादा रहती है और ज्यादा से ज्यादा इस समय में कमाई होती है.

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