:::मो.इरशाद:::सिमडेगा से
पीजी इंटर्न, स्कूल आफ मास कम्युनिकेशन
रांची विश्वविद्यालय, रांची
आदिवासी बहुल जिला सिमडेगा वनोत्पाद के लिए प्रसिद्ध है। चारो और पहाड़ियों से घिरा और अपने वनोत्पाद से भरा जिला कई पीढ़ियो का सदियों से आजीविका का मुख्य साधन है
महुआ, तेंदू पत्ता, साल के पत्ते, और जड़ी-बूटियाँ जैसे उत्पाद भी यहां के निवासियों की आजीविका का हिस्सा हैं। महुआ के फूलों और बीजों का उपयोग स्थानीय लोग तेल, शराब और खाद्य पदार्थ बनाने में करते हैं। तेंदू पत्ता बीड़ी निर्माण के लिए उपयोग होता है, जो एक महत्वपूर्ण व्यापारिक उत्पाद है।
वनों से मिलने वाले जड़ी-बूटियाँ स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य और पोषण में अहम भूमिका निभाते हैं। ये जड़ी-बूटियाँ पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में भी उपयोग होती हैं, जो आज भी यहाँ के लोगों द्वारा प्रचलित हैं। वन्य उत्पादों के व्यापार से भी स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है, और इससे सिमडेगा के लोगों को रोजगार के अवसर मिलते हैं।
वनों के संरक्षण और पुनर्वास के प्रयासों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। वे पारंपरिक ज्ञान और स्थायी उपयोग की पद्धतियों के माध्यम से वनों को संरक्षित रखते हैं। वन आधारित शिल्पकला, हस्तशिल्प, और कुटीर उद्योग भी यहाँ के लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इससे न केवल उन्हें आर्थिक संबल मिलता है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक धरोहर भी संजीवित रहती है।
सिमडेगा के वनों और वनोत्पादों पर आधारित यह परंपरा यहाँ के लोगों की जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा है। इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता पर्यटकों को भी आकर्षित करती है, जिससे पर्यटन के माध्यम से भी आर्थिक लाभ होता है।
इस प्रकार, सिमडेगा का वनस्पति और वनोत्पादों पर आधारित जीवन सैकड़ों परिवारों के लिए एक स्थायी आजीविका का स्रोत है और उनके सांस्कृतिक और पारंपरिक जीवन का केंद्र बिंदु बना हुआ है।