यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाई जाने वाली गौरैया एक मात्र ऐसा पक्षी है जो इंसानों के साथ उनके घरों में रहना पसंद करती है । इसलिए इस घरेलू चिड़िया या हाउस पंछी के तौर पर जाना जाता है, लोग जहां भी घर बनाते हैं, देर-सवेर गोराया के जोड़े वहां पहुंचकर उस घर के सदस्य बन जाते हैं । 25 से 35 ग्राम वजनी वाली गौरैया हल्के भूरे और सफेद रंग में होती है, इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंखेरू होते हैं तथा पैरों का रंग पीला होता है। 14-16 सेंटीमीटर लंबी गौरैया के गले के पास काले धब्बे से होते हैं। यह चिड़िया पहाड़ी इलाकों में कम तथा शहरी कस्बों गांवों और खेतों के आसपास भाग में पाए जाते है। गौरैया के 26 प्रजातियों में से हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरों जैसी कुल छह तरह की प्रजातियां भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है। इसका जूलॉजिकल नाम पैैैसर डोमेस्टिकस है। इंसानों के अनदेखी और संवेदनहीनता और तेजी से हो रहे आधुनिकीकरण के चलते गौरैया का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है । यूरोपीय फ्रांस जर्मनी ब्रिटेन भारत व अन्य कई देशों में भी इनकी संख्या तेजी से घटी है। विश्व में इनकी कुल आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा समाप्त हो चुका है, गौरैया की तेजी से घटती हुई संख्या को देखते हुए शहरी वातावरण में रहने वाले गौरया व अन्य पक्षियों के संरक्षण हेतु जागरूकता लाने के उद्देश्य से वर्ष 2010 से प्रतिवर्ष 20 मार्च विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है । गौराया बिहार का राजकीय पक्षी भी है ,और दिल्ली सरकार ने भी से वर्ष 2012 में राज्य पक्षी घोषित किया है ।
हिंसक जानवरों से नन्ही गौरैया को सुरक्षित रखने एवं उनके संरक्षण के लिए , कृतिम बनाए गए घोंसलों को हम अपने घरों की बाहरी दीवारों पर या छज्जे के नीचे टांगे,इसमें गौरैया तिनका-तिनका जोड़कर अपना घर बना सके और उसकी नजदीकी नियमित भोजन दाना-पानी की भी पर्याप्त व्यवस्था करे। गौरैया की संख्या में कमी आने का एक बहुत बड़ा कारण उसको सुरक्षित स्थानों का न मिल पाना है ।विगत 40 वर्ष में अब तक कई पशु पक्षियों की बेशकीमती प्रजातियां डायनासोर की तरह विलुप्त हो चुकी है ,और जो बची भी है वह संरक्षण एवं परवरिश के अभाव में विलुप्त होने की कगार पर है। बढ़ती हुई जरूरतों सौंदर्यकरण और आधुनिकीकरण ने पशु-पक्षियों से उनका घर परिवार सुख चैन सब कुछ छीनकर उन्हें बेसहारा छोड़ दिया है । सौंदर्यकरण के लिए घर आंगन में लगाए जाने वाले ज्यादातर पेड़-पौधे विदेशी होते हैं जिन पर गौरैया अपना घर नहीं बना पाती है ।
गौरैया के तेजी से विलुप्त होने की कई कारणों में आधुनिकरण व इंसानी गतिविधियों से उत्पन्न प्रदूषण और बढ़ते तापमान के साथ-साथ साइलेंट किलर कहे जाने वाले मोबाइल टावरों एवं 25 हजार , 11 हज़ार और 440 वोल्ट वाली विद्युत लाइनों से निकलने वाले मैग्नेटिक तरंग को की अहम भूमिका है, जिन्हें हम रेडियेसन कहते हैं।