कोयला खनन से निवासी को हो रही हैं दिक्‍कत

रॉची संवाददाता : उदय कांत कुजूर

भारत में प्रति वर्ष 150 से 200 मिलियन टन कोयला का आयात किया जाता हैं विश्‍व में सबसे अधिक कोयले का भंडार की उपलब्‍धता वाले देशों की सूची में भारत का नाम  पांचवा स्‍थान में  हैं।  कोयला से बिजली उत्‍पादन , कल कारखानों , स्‍टील उद्योग , ईंट भट्टे या अन्‍य महत्‍वपूर्ण उद्योग में कोयले का उपयोग होता हैं हम आधुनिक भारत निर्माण पर जोर तो दे रहे  हैं कहां ।  शहरों पर दें रहें हैं गांवों पर नही । कोल कंपनी जिस – जिस क्षेत्र में हैं वहां का पर्यावरण प्रदूषित हों जाता हैं 2007 में विश्‍व स्‍वास्‍थ संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार कोयले के कणों के प्रदूषण से दुनिया भर में सालाना लगभग 10000  लोगों की जान जाने की अनुमान हैं।

जिस क्षेत्र में कोय कंपनी हैं वहां के लोगों के लिए शिक्षा के लिए स्‍कूल ,आसपताल , पे जल ,

खेल का मैंदान, अच्‍छी सड़क, वहां के लोगों को रोजगार देना  और पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिए पेड़ लगाना आदि चीजों का  सुविधा देना ,  कोल कंपनी का होता हैं क्‍या सही में इन सब चीजों को कोल कंपनी ध्‍यान देती  हैं या नही । कोल कंपनी आज कल इन सब चीजों को कुछ साल के लिए ध्‍यान देती हैं और इन सब चीजों को कुछ साल के बाद भूल जाती हैं जिसके कारण से वहां के गरीब उभर नही पाते हैं और जिनको कोल कंपनी में नौकरी लगी हैं उनका स्थिति अच्‍छा रहता हैं जिनको नौकरी नही लगा है वे लोग अपना पेंट पालने के लिए कोयलें खदान सें कोयला चोरी करकें अपना पेंट पालतें हैं अफसोस की बात यहा हैं । कि अपना जमींन को कोल कंपनी को देना और अपना ही जमींन में कोयला चोरी  करकें अपना पेंट पालना कितना अफसोस की बात हैं ।

कोल कंपनी को  जमींन से कोयला निकाल कर जमींन को समतल कर जमींन को वापस करना होता हैं मगर अजकल कोल कंपनी जमींन को समतल कर वापस नही देती हैं । उसे जगहां में कोल कंपनी अपना अपना अॅफिस बना लेती हैं  एगरीमेंट पेपर में साफ लिखा होता हैं कि जमींन के अंदर से कोयला निकाल कर जमींन को समतल कर वापस  देना होगा लिखा होता हैं । मगर आज कल जमींन वापस मिलता कहां हैं जिसके कारण वहां के गरीब लोंग बड़ नही पाता हैं

आज कल सरकारी कंपनियां पूरी तरह से कोल माफिया के इशारो पर खेल रही हैं । और बड़ी प्राइवेट कंपनी भी स्‍थानीय लोगों की समस्‍याओं को नजरअंदाज करती हैं जिस – जिस क्षेत्र में कोल कंपनी हैं वहां यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पेड – पौधों एवं जंगलों की स्थिति में सुधार हुआ हैं या नहीं , वहां के निवासियों को स्‍वास्‍थ समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं कोयले का परिवाहन करते समय पर्यावरण प्रदूषण के बचाव के लिए क्‍या अमल किया जा रहा हैं यह भी देखना चाहिए कि जिस कंपनी को राज्‍य के क्षेत्र में उत्‍पादन की जिमेंदारी मिली हैं कंपनी ने वहां के स्‍थानियों निवासियों व उनके आर्थिक , सामाजिक उत्‍थान के लिए क्‍या प्रयास किए । इन प्रयासों का परिनाम क्‍या निकला हैं और नही कर पाए तो इसके लिए  जिमेंदारी  भी सुनिश्चित करने की आवश्‍यकता हैं केंद्र व राज्‍य सरकार को कोयला खानों के कारण हां रहें प्रदूषण व नुकसान को रोकने के लिए सख्‍त निर्देश लेना चाहिए । यह याद रखने वाली बात हैं कि पर्यावरण संरक्षण में जितनी देरी होगी । उतना क्षतिपूर्ति में भी समय अधिक लगेगा

भारत कोयला उत्‍पादन में पांचवा स्‍थान हैं भारत का अकडा देखा जा तो छत्‍तीसगढ़ 15 . 84 करोड़ टन , ओडिशा 15. 41 करोड़ टन , मध्‍यप्रदेश 13. 25 करोड़ टन और झारखंड में 11. 92 करोड टन उत्‍पादन होता हैं और इन सब राज्‍य में कोयला प्रचुरता के कारण ही आयरण फैक्‍ट्री एवं अन्‍य पावर प्‍लांट खुला हैं और  जिस क्षेत्र में  हैं वहा का वातावरण को प्रदूषित कर देता हैं जिसके कारण उस आस – पास के  इलाका  को दुषित  पर्यावरण का सामना करना पडता हैं प्र‍दूषित पर्यावरण के कारण कई लोगों की जाने जा चुकि हैं और  देश में कोयला उत्‍पादन की आधुनिक तकनीकों का अभाव हैं इसके कारण कोयला खदानों में दुर्घटनाओं की संभावने हमेश बनी रहती हैं। और उस आस- पास के इलाकों में भी दुर्घटनाओं का संभावना बनी रहती हैं ।

 

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