मटर की खेती में कम अवधि वाली धान किस्मों की खेती फायदेमंद

अजय कुमार

रांची : प्रदेश में वर्षा आधारित खेती पर निर्भरता और सीमित सिंचाई के कारण बहुतायत किसान रबी फसलों की खेती नहीं कर पाते है। बीएयू अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), चतरा द्वारा लोचदार कृषि तकनीकी के बढ़ावा ने किसानों की सोच को बदल दिया है।

चतरा जिला मुख्यालय से 7 किलो मीटर की दूरी पर स्थित निकरा अंगीकृत मरदनपुर गांव के किसान सिंचाई के आभाव एकफसली धान की खेती मात्र किया करते थे। कम आमदनी से किसानों में खेती की कम अभिरुचि के कारण रोजी- रोजगार के लिए बाहर पलायन करते थे। गंांव में प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के तहत पुराने तालाबों का जीर्णोद्वार तथा नये तालाबों के निर्माण से जल संचय की सुविधा विकसित किये जाने से कृषि योग्य सिंचित भूमि 7 प्रतिशत से बढ़कर 45 प्रतिशत तक हो गई। 120 जनजातीय किसान परिवार वाले इस गांव के किसान लंबी अवधि वाली धान किस्म एमटीयू 1010 तथा 175 दिनों वाली स्थानीय किस्म जो -160 की खेती की वजह से दिसम्बर अंतिम सप्ताह में धान की कटाई के बाद दूसरी फसल नहीं ले पाते थे।

किसानों की परेशानी को देख केवीके वैज्ञानिकों ने गांव के 42 आदिवासी किसानों की कुल 17 हेक्टेयर भूमि में  सबसे  पहले  कम  अवधि (90-110 दिनों) वाली धान किस्मों अंजलि, वंदना, सहभागी और अभिषेक का अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण (एफएलडी) कराया गया। नवम्बर के प्रथम सप्ताह में धान की कटाई के बाद खेतों में 30-40 प्रतिशत नमी की उपलब्धता पाया गया। इस नमी के उपयोग से सभी 42 आदिवासी किसानों के खेतों में संतुलित मात्रा में उर्वरको के प्रयोग तथा कीट  ब्याधि   प्रबंधन  से मटर (प्रभेद आरकेल) की खेती को एफएलडी माध्यम से बढ़ावा दिया गया। इस खेती से किसानों को औसत उपज 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से करीब 1 लाख 12 हजार 9 सौ रूपये कुल आमदनी मिला।

केवीके, चतरा के प्रभारी डॉ. रंजय कुमार सिंह बताते है कि पूर्व में देशी धान किस्मों से किसानों को औसत उपज 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा कुल आमदनी 28 हजार 9 सौ रूपये मात्र होती थी और रबी मौसम में खेत खाली पड़ा रहता था। कम अवधि के उन्नत धान प्रभेद से 23 क्विंटल  प्रति  हेक्टेयर  उपज मिला। जिसका कुल बाजार मूल्य किसानों को 39 हजार 1 सौ रूपये मिला। इस तकनीक से किसानों को एक वर्ष में एक हेक्टेयर भूमि से 1 लाख 51 हजार 6 सौ रूपये की कुल आमदनी हुई। जो पूर्व वर्ष की तुलना में  224 प्रतिशत अधिक है। इस तकनीकी लाभ को देखकर रबी 2019 में गांव के किसान धान की कटाई के बाद करीब 30 हेक्टेयर भूमि में मटर की खेती करने लगे है। इस प्रत्यक्षण को प्रक्षेत्र दिवस के माध्यम से जिले के विभिन्न प्रखंडो के किसानों को परिभ्रमण कराया गया। इसके उपरांत रबी 2019 में जिले के किसानों ने करीब 300 हेक्टेयर भूमि में उपलब्ध नमी का उपयोग कर मटर की खेती की।

केवीके प्रभारी ने बताया कि इस कार्यक्रम को आईसीएआर की जलवायु समुत्थानशील कृषि पर राष्ट्रीय पहल (निकरा) परियोजना को चलाया गया। इसके तहत जिले में वर्षा में असमानता, अतिवृष्टि या अनावृष्टि, बाढ़, सुखाड़, परिवर्तनशील जलवायु एवं प्राकृतिक आपदाओं के आधार पर जलवायु अनुरूप तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिले में निकरा चयनित गांवों में इन तकनीकों के उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले  हंै।

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