मनोज कुमार शर्मा , 9अगस्त 2020
रांची : राज्य के किसानों को जब यूरिया खाद की बहुत ज्यादा आवश्यकता है तब इसकी कीमत वाजिब मूल्य से सौ रूपये तक बढ़ गयी है। झारखंड का किसान खुदरा दूकानदार से अस्सी से सौ रूपये तक ज्यादा कीमत देकर यूरिया खाद खरीद रहा है।
इस लॉकडाउन में जब वैसे ही सभी तंगी में जी रहे हैं वैसे में झारखंड का किसान ज्यादा कीमत देकर यूरिया खाद खरीद रहा है और वह विरोध भी नहीं कर रहा उसने हर साल की तरह बढी कीमत पर यूरिया खाद खरीदना अपनी नियति मान लिया है। किसान विरोध नहीं करता या खुदरा दूकानदारों से उसका विरोध प्रतीकात्मक भर होता है, वह जानता है कि उसके बोलने से कुछ नहीं होगा। उसे एक बोरा यूरिया खाद पर अस्सी से सौ रूपये अधिक देने ही देने हैं।
ऐसा भी नहीं है कि यूरिया की कीमत फसलों के लिये जरूरत के ऐन मौके पर या लॉकडाउन के बहाने पहली बार बढ़ी है। जिन्हें जानकारी है वह अच्छी तरह से जानते हैं कि हर साल आवश्यकता के समय यूरिया की कीमत में आग लग जाती है और किसी – किसी साल तो एक बोरा यूरिया प्राप्त करना छोटे किसानों के लिये किसी उपलब्धि के जैसा होता है। यहां सक्षम किसान बढ़ी कीमत पर भी यूरिया खरीद लेते हैं पर छोटे किसानों के लिये यह किसी शोषण से कम नहीं होता।
आखिर सरकारों और संबंधित विभागों के लाख दावे के बाद भी यूरिया के इस खेल पर अंकुश क्यों नहीं लग पाता? ग्रीन रिवोल्ट ने जब इस बारे में तहकीकात की और एक खुदरा दूकानदार ने जो बताया उससे यहीं आभास हुआ कि यूरिया खाद पर अधिक कीमत वसूलने में पूरा एक चेन है। जिसमें संबंधित अधिकारी से लेकर होलसेलर तक शामिल रहते हैं। यहां खुदरा दूकानदार तो सबसे नीचे के पायदान पर है। अधिकारियों का यह कहना कि उड़नदस्ता का गठन किया जा रहा है और गड़बड़ी करने वालों पर एक्शन लेंगे सिवाय एक प्रहसन के कुछ भी नहीं है। अगर वास्तव में एक्शन होता तो यूरिया की कीमत हर साल ऐसे ही नहीं बढ़ती।
क्या कहते हैं खुदरा दूकानदार ?
किसानों का सीधा सामना खुदरा दूकानदारों से होता है। किसान जब खुदरा दूकानदार से सौ डेढ सौ ज्यादा लेने का विरोध करते हैं तो दूकानदार उन्हें ऊपर से ही खरीद रेट महंगा होने की बात कहते हैं। और किसानों को मजबूरी में मन मसोस कर खुदरा दूकानदारों से महंगे दाम में यूरिया खाद खरीदना पड़ता है। जब ग्रीन रिवोल्ट ने रांची के ग्रामीण इलाके के एक खुदरा खाद विक्रेता से इसके बारे में जानकारी चाही तो उसका कहना था कि हमें ही होलसेलर अंकित मूल्य से ज्यादा कीमत वसूल कर खाद दे रहे हैं ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? जब ग्रीनरिवोल्ट संवाददाता ने होलसेलरों के बारे में और जानकारी चाही तो उसने आगे कुछ बताने से इनकार कर दिया। यहां एक बात तो स्पष्ट हो गयी कि खुदरा दूकानदार खुद ऊंची कीमत पर होलसेलरों से यूरिया खरीद रहे हैं।
किसके कारण बढ़ी यूरिया की कीमत?
खुदरा दूकानदरों के अनुसार होलसेलर की मनमानी के कारण ही प्रति बोरा सौ डेढ सौ तक खाद की कीमत बढ़ जाती है। और यह मनमानी होलसेलरों की है। इसके बाद हमने रांची में खाद के होलसेलरों के बारे में जब जानकारी एकत्र की तो हमें पता चला कि रांची में कृषि विभाग ने मुख्यत: तीन लोगों को खाद बेचने का लायसेंस दिया हुआ है। और यही तीनो होलसेलर जिले में खाद की कीमत और सप्लाई को कंट्रोल करते हैं। इनमें से एक होलसेलर के करीबी से जब ग्रीन रिवोल्ट संवाददाता ने खाद की कीमत खुदरा दूकादारों से ज्यादा वसूलने की शिकायत की तो उसका कहना था कि हमें भी प्रति बोरा कुछ राशि रूपये कहीं देना होता है। उसकी भरपाई करनी होती है। ऐसे में कीमत तो बढे़गी ही।
अब ये जांच का विषय है कि होलसेलर सच हैं या झूठ? अगर उनकी बात सत्य है तो वह यूरिया के प्रति बोरे पर कुछ राशि किसे पहुंचा रहे हैं? जिसके कारण अंतत: गरीब किसानों की जेब कट रही है।