●राज्य में 6-7 वर्षो से दस्तक दे रहा कीट
●सबसे पहले साहेबगंज एवं गोड्डा जिले देखा गया प्रकोप
●इस वर्ष दुमका के सरैयाहाट एवं गोड्डा के पोड़ैयाहाट में कीट का प्रभावी प्रकोप
●राज्य का दुमका, देवघर, गोड्डा व रामगढ जिले में दिखा असर
●संकर धान व अधिक उपज वाली किस्मों की खेती में नाइट्रोजन धारी उर्वरक (यूरिया) का अधिक प्रयोग मुख्य वजह
●धान रोपाई के समय से ही बचाव के उपाय की जरूरत
●ब्राउन प्लांट हॉपर कीट से धान फसल को 70-80 प्रतिशत तक क्षति की संभावना
रांची :बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के कीट वैज्ञानिकों को राज्य के कई जिलों में धान की खड़ी फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर कीट के प्रकोप की शिकायत मिली है।राज्य के दुमका, देवघर, गोड्डा व रामगढ जिलों में इस कीट का प्रकोप देखे जाने की सूचना है। इस वर्ष कीट का दुमका के सरैयाहाट एवं गोड्डा के पोड़ैयाहाट प्रखंड में प्रभावी प्रकोप देखा गया है।ब्राउन प्लांट हॉपर कीट को स्थानीय भाषा में भनभनिया बीमारी तथा बोलचाल में भूरा मधुआ कीट के नाम से जाना जाता है।एशिया महादेश सहित भारत में ब्राउन प्लांट हॉपर धान का महत्वपूर्ण हानिकारक कीट है।
बीएयू के मुख्य वैज्ञानिक सह अध्यक्ष (कीट) डॉ पीके सिंह ने इस सबंध में बताया कि प्रदेश में
संकर किस्मों एवं अधिक उपज देने वाली धान किस्मों की खेती काफी प्रचलित हो चला हैं।धान
इन प्रजाति की खेती में किसान रासायनिक उर्वरकों में खासकर नाइट्रोजन धारी (यूरिया)उर्वरक का अधिकाधिक उपयोग करते है।जो धान की खड़ी फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर कीट के प्रकोप की मुख्य वजह देखने है।इस कीट के आक्रमण से धान फसल को 70-80 प्रतिशत तक क्षति होने की संभावना होती हैं। इससे बचाव के लिए किसानों को रोपाई के समय से ही उपाय तथा जागरूक किया जाना जरूरी है। जिस किस्म में इसका आक्रमण दिखे, उस किस्म को उस खेत तथा आस-पास के खेतों में रोपाई नहीं करनी चाहिए।
बीएयू के धान फसल कीट विशेषज्ञ डॉ रविन्द्र प्रसाद बताते है कि इसका आक्रमण निचली एवं मध्यम भूमि वाले धान खेत में अधिक देखा जाता है।झारखण्ड में यह कीट विगत 6-7 वर्षो से दस्तक दे रहा है। इसका प्रकोप सबसे पहले साहेबगंज एवं गोड्डा जिले में देखा गया।
विगत वर्षो में इसका प्रकोप हजारीबाग के केरेडारी, रांची के बुंडू व इटकी, सरायकेला, पश्चिमी सिंहभूम, गढ़वा, पलामु व जामताड़ा जिलों में देखा गया।इस कीट का प्रकोप धान की पत्तियों के नीचे तथा जड़ के ऊपर वाले तने में होता है। जहाँ सैकड़ो की संख्या में माइक्रो आकार आकृति वाले भूरे रंग के फूद्के पौधों के तने पर असंख्य माइक्रो छेद बनाकर पौधे का रस चुसकर पौधे को कमजोर बना देते है। फलत: पौधे के डंठल सड़ जाते है और पौधा बौना हो जाता है। कीट से ग्रसित पौधे भूरे व पूआल के रंग के हो जाते है।इस कीट का आक्रमण धान के खेतों में गोलाकार आकृति का रूप ले लेता है। इससे बचाव के लिए किसानों को धान रोपाई के समय से ही विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है.खेतों में रासायनिक उर्वरकों के साथ- साथ जैविक उर्वरकों जैसे नीम खल्ली,करंज खल्ली, कम्पोस्ट व वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करने से रासायनिक उर्वरकों विशेषकर नाइट्रोजन धारी उर्वरक के उपयोग में कमी लाई जा सकती है।धान की रोपाई में कतार से कतार एवं पौधों की दूरी बढ़ाकर कीट एवं रोग की रोकथाम संभव है। वैकल्पिक तरीके से खेतों को सुखाकर तथा सिंचित करना भी कारगर होगा।
प्रदेश के किसान पोटाश उर्वरक का उपयोग प्राय: नहीं करते है। पोटाश उर्वरक के प्रयोग से धान सहित सभी फसलों में कीट व रोग के प्रकोप को कम किया जा सकता है। धान की खड़ी फसल में रोपाई के 3 सप्ताह के बाद खेतों में 4-5 से.मी. स्थिर पानी रखते हुए फिफ्रोनील नामक दानेदार कीटनाशी का 20-25 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर बिखेरकर रोकथाम की जा सकती है। इसके बावजूद कीट का प्रकोप दिखाई देने पर बूप्रोफेजिन 25 प्रतिशत एससी को 500-750 मि।ली।प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल में दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
जानकारी के अनुसार पोड़ैयाहाट के विधायक प्रदीप यादव ने संथाल परगना प्रमंडल के 3 जिलों दुमका, देवघर व गोड्डा में धान की खेती में भनभनिया बीमारी (ब्राउन प्लांट हॉपर) से हुई भारी नुकसान का सर्वे कराकर किसानों को मुआवजा देने और तत्काल बचाव के उपाय के सबंध मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री, कृषि सचिव एवं सबंधित उपयुक्त को तत्काल कारवाई करने को कहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने त्वरित कारवाई करते हुए गुरूवार को कृषि विभाग के पदाधिकारियों को किसानों के नुकसान का आकलन कर रिपोर्ट तैयार करने को कहा है, ताकि किसानों को मुआवजा दी जा सकें।