मीन प्रिया मां उग्रतारा

यहां मछली की भी बलि दी जाती है

लातेहार जिला के चंदवा प्रखंड में रांची-चतरा मुख्य मार्ग पर स्थित मां उग्रतारा नगर मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। इसे नगर मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर लोगों के श्रद्धा आस्‍था का केंद्र है। शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध इस मंदिर में देवियों की मूर्तियां हैं। मंदिर के पृष्‍ठ भाग में रमणिक पहाड़ों की उपस्थिति इसे एक अलग ही सुंदरता प्रदान करती है।

यहां मंदिर के पुजारी गर्भ गृह में जाकर श्रद्धालुओं के प्रसाद का भगवती को भोग लगाकर देते हैं। श्रद्धालुओं को अंदर प्रवेश की मनाही होती है। यहां प्रसाद के रूप में मुख्य रूप से नारियल और मिसरी चढ़ाई जाती है। मोहनभोग भी चढ़ाया जाता है, जिसे मंदिर का रसोइया ही बनाता है। दोपहर में पुजारी भगवती को उठाकर रसोई में ले आते हैं। वहां भात, दाल और सब्जी का भोग लगता है, जिसे पुजारी स्वयं बनाते हैं। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं द्वारा बकरे की भी बलि दी जाती है।

क्षणे रूष्टा क्षणे तुष्टा

 


रूष्टा तुष्टा क्षणे क्षणे

मां उग्रतारा के बारे में कहा जाता है कि वह तुरंत ही भक्‍तों पर प्रसन्‍न हो जाती हैं और तुरंत ही किसी बात पर नाराज भी। इसलिये इनके बारे में पुरोहितों द्वारा कहा जाता है कि क्षणे रूष्टा क्षणे तुष्टा, रूष्टा तुष्टा क्षणे-क्षणे

मुस्लिम मदार साहब थे मां उग्रतारा के भक्‍त

मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित मादागिर पर्वत पर मदार साहब का मजार है। बताया जाता है कि मदार साहब मां उग्रतारा के बहुत बड़े भक्त थे। तीन वर्षो में एक बार इनकी भी पूजा होती है और काड़ा की बलि दी जाती है। बाद में उसी खाल से मां उग्रतारा मंदिर के लिए नगाड़ा बनाया जाता है। इसी नगाड़े को बजाकर मंदिर में आरती की जाती है। बताया जाता है कि जब कोई भक्त मन्नत मांगता है और उसकी मन्नत पूरी हो जाती है तो मंदिर परिसर में पांच झंडे गाड़े जाते है। एक सफेद झंडा मदार साहब की मजार पर भी गाड़ा जाता है।

कोरोना संकट के कारण मां उग्रतारा के मंदिर में भी लोगों के आने जाने पूजा अर्चना पर रोक थी। लेकिन अब छूट मिलते ही फिर से मंदिर परिसर भक्‍तों की भीड़ से भरने लगा है।

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