मंत्री मिथिलेश ठाकुर जमीन पर बैठे और कांके डैम बचाओ संरक्षण समिति की बातेें सुनी

मनोज कुमार शर्मा

रांची :दो अक्‍टूबर से कांके डैम बचाओ संरक्षण समिति के सैकड़ो आंदोलनकारी अमृतेश पाठक के साथ  डैम के किनारे नवासोसो फुटबॉल मैदान में डटे हुये थे। इस बीच अखबारों और मीडिया में भी इनके आंदोलन की खबरें प्रकाशित होती रहीं। अंतत: 23 अक्‍टूबर को मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने स्‍वयं धरना स्‍थल पर पहुंच कर डैम  आंदोलन कर रहे ग्रामीणों से बात की, उनकी मांगो को सुना और आश्‍वासन दिया कि सभी मांगो पर सरकार गंभीरता से विचार कर इन्‍हें पूरा करेगी। उन्‍होंने इस आंदोलन को समाप्‍त करने का आग्रह भी किया।

मिथि‍लेश ठाकुर को समिति के अध्‍यक्ष अमृतेश पाठक ने  सहयोगियों मंटु मुंडा, शिवा मुंडा, रमेंश मुंडा, व अन्‍य के साथ मिल कर कांके डैम संरक्षण समिति का मांग पत्र सौंपा। मिथिलेश ठाकुर ने रांची नगर निगम के अधिकारियों को धरना स्‍थल पर ही मांगों के अनुसार कई निर्देश दिये। मौके पर हेहल सीओ भी पहुंचे हुये थे उन्‍हें भी सभी मांगों से अवगत करा कर जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिये। उन्‍होंने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुये कहा कि मैं स्‍वयं इस बड़े जलाशय की साफ सफाई और अतिक्रमणमुक्‍त कराने को प्रयासरत हूं और छठ महापर्व के पहले इसके चारो और साफ सफाई भी की जायेगी।

आंदोलनकारियों के साथ  जमीन पर ही बैठै और कहा कोई भी मांग मुश्किल नहीं है, सब को पूरा करने का प्रयास करूंगा: मिथिलेश ठाकुर

धरनास्‍थल पर कुर्सियों का इंतजाम था, पर मिथिलेश ठाकुर आंदोलनकर्मी  पुरूषो व महिलाओं के साथ जमीन पर ही बैठे और आस पास रहने वाले ग्रामीणों और मछुआरों के मांगाों को देख कर कहा  कि इनमें कोई भी मांग मुश्किल  नहीं है सभी मांगे जायज हैं। मैं अभी जाकर मुख्‍यमंत्री से मिलुंगा और इन सभी मांगों से उन्‍हें अवगत करा कर इन्‍हें पूरा करने का प्रयास करूंगा। मैं और झारखंड सरकार इन मांगों के प्रति बहुत ही संवदेनशील है। मैं रांची से बाहर था अन्‍यथा पहले आकर ही मैं आप सबों की मांग पर अवश्‍य ध्‍यान देता। मैं रांची लौटा हूं और आप सबों से मिलने आ गया।

क्‍या है कांके डैम संरक्षण समिति की मांगे ?

  • कांके डैम की घेराबंदी की जाये।
  • कांके डैम में कचड़ा बहाने वाले सभी नालों को अविलंब बंद किया जाये।
  • डैम में मछली पालन का ठेका और अधिकार डैम के आस पास के रहने वाले मछुआरों और डैम निर्माण में अपना जमीन देने वाले रैयतों को दिया जाये।
  • डैम का पर्यटन स्‍थल के रूप में विकसित किया जाये।
  • डैम के किनारे असमाजिक तत्‍वों का जब तब जमावड़ा लगता है, जिससे यहां के लोगों को भय लगता है, इन तत्‍वों से निबटा जाये।

 

 1960 में बना था  कांके डैम

कांके डैम जिसे गोंदा जलाशय भी कहते हैं रांची के जलापुर्ति के उद्देश्‍य से इसका निर्माण 1960 में हुआ था। यह 450 एकड़ से कुछ ज्‍यादा में फैला हुआ है। इस डैम से रांची शहर के बड़ी आबादी को जलापुर्ति होती है। इसके किनारे पर एक वाटर फिल्‍टर प्‍लांट है और हथिया पहाड़ी पर पानी के दो विशाल टंकी बने हुये हैं। जिससे कांके रोड, अपर बजार समेंत सभी मुख्‍य इलाकों में वाटर सप्‍लाइ होता है। लेकिन हाल के  दो दशक  में डैम अपनी दुर्गति को प्राप्‍त हो चुका है। रातू रोड और कांके रोड का इसका हिस्‍सा अतिक्रमण और प्रदूषण से बेहाल हैं, इसके ग्रीनलैंड और कैचमेंट को जमीन दलालों ने बेच दिया और उसमें मकान बना लिये गये हैं। एक दो बार अतिक्रमण तोड़ा भी गया, पर अभी भी एक बड़ा इलाका अतिक्रमित है। इसमें पांच छोटे बड़े बरसाती नाले मिलते थे जो जल का स्‍त्रोत थे अब इसमेें कई गंदे नालेे मिलते हैं।  एक पंडरा पुल के नीचे से बहने वाली नदी ही बची हुई है। वह नदी भी अतिक्रमण का शिकार हो चुकी है और लुप्‍तप्राय हो रही है।

कभी स्‍वच्‍छ सुंदर नीले जलराशि वाला कांके डैम 15 सालों में हुआ नारकीय रूप से प्रदूषित

दो दशक पहले तक कांके डैम स्‍वच्‍छ नीले और विशाल जलराशि वाला सुंदर जलाशय था, लोग सालो भर यहां घूमने आते थे। आज इसका जल हरे रंग का हो गया है और रॉकगार्डेन इलाके में इसके जल से बदबू आती है। पुराना वाटर फिल्‍टर प्‍लांट भी इसके जल को साफ करने में अक्षम हो गया था, तब वाटर ट्रीटमेंट के फिर से इंतजाम किये गये। 1960 में बनने से लेकर आज तक कांके डैम की  सफाई नहीं हुई। यह छिछला   हो चुका है, सीसीएल ने इसकी सफाई की पहल की थी, पर सरकार के अजीबो गरीब शर्तों के कारण डैम की सफाई नहीं हो पायी। उसके बाद कुछ साल पहले नवासोसो इलाके में कुछ हिस्‍से से गाद की सफाई की गयी थी और उतने से ही कांके डैम में जल संग्रहण क्षमता में वृद्धि हो गयी। लेकिन प्रदूषण पर अंकुश नहीं लग सका है। इसी कारण से पिछले साल ऑक्‍सीजन की कमी और जलकुंभी की बहुतायत से यहां हजारो मछलियां मरी थीं।

कभी छोटी झींगा और देशी मछलियों वाला था कांके डैम, अब कचड़े खाने वाली तिलैपिया की है भरमार

जलाशय का इकोसिस्‍टम प्रदूषण के कारण बदल चुका है। हालांकि डैम में जाड़ों में हजारो की संख्‍या में आज भी प्रवासी पक्षी आते हैं पर जिस कांके डैम में जाड़ों में छोटी झींगा मछली की भरमार होती थी, साथ ही कई देशी मछलियों की प्रजातियां भी पायी जाती थीं अब डैम के प्रदूषित होने के साथ ही इन मछलियों का मिलना लगभग समाप्‍त हो गया है। यहां अब सिर्फ तिलैपिया मछली की भरमार है जो कचड़े खाती है और प्रदूषित जल में भी पनपती है। शहर के बीचो बीच पहाड़ों से घिरा इतना विशाल जलाशय बहुत कम शहरों को नसीब है। कांके डैम के एक छोड़ पर हथिया पहाड़ है । जिस पर रॉकगार्डेन है, जिसकी ऊंचाई से विशाल कांके डैम को निहारना एक अद्भुत अहसास कराता है। अब देखना है कि कांके डैम के लिये मंत्री और  सरकार का आश्‍‍‍‍‍‍वासन जमीन पर कितना उतरता ?

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