सौंदर्यीकरण के नाम पर पर्यावरण बर्बादी न हो

पिछले सप्ताह ही सरकार ने एलान किया है कि पर्यटन स्थलों के सौंदर्यीकरण पर तकरीबन 53 करोड़ रूपये खर्च किये जायेंगेे । ये एक सराहनीय निर्णय है, पर इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि ये सौंदर्यीकरण और संवारने का काम पर्यावरण और प्रकृति को बर्बाद करते हुये कंक्रीट जंगल बना कर कमाने का जरिया भर न बन जाये।आखिर पिछली सरकारों में सौंदर्यीकरण का हश्र क्या हुआ ये आज हम सभी देख रहे हैं। तालाबों का सौंदर्यीकरण उनकी बर्बादी का कारण बना, हरमू नदी का सौंदर्यीकरण सिर्फ एक शिगुफा बन कर रह गया, वैसे ही झारखंड के दूर दराज के पर्यटन स्थलों पर सिर्फ लाखो करोड़ो का बेतरतीब कंक्रीट निर्माण हुआ ।

 

झारखंड का प्राकृतिक सौंदर्य अप्रतिम है। ये हम सभी झारखंडवासियों के लिये सौभाग्य की बात है कि हम देश के कुछ खुबसूरत राज्यों में से एक झारखंड में रहते हैं।
एक बार स्व. चौधरी देवी लाल मंत्री रहते झारखंड आये थे और यहां के पहाड़ों, जंगलों की खुबसूरती देख कर अभिभूत हो गये थे। तब उन्होंने कहा था कि बिहार का ये झारखंड क्षेत्र इतना खुबसूरत है? इससे तो मैं बल्किुल ही अनभज्ञि था। मैं तो इस क्षेत्र को बिहार के मैदानी इलाकों की तरह ही आम इलाका समझता था। मुझे आश्चर्य है की यहां पर्यटन का आज तक विकास क्यों नही हुआ?
तब से लेकर आज तक में बहुत कुछ बदल चुका है। झारखंड बिहार से अलग होकर राज्य बन चुका है। दो दशक पुराने इस राज्य की प्राकृतिक खुबसूरती भी देश के लोगों क ी नजरों में आयी है, बॉलीवूड भी यहां की खुबसूरती क ा कायल है। लेकिन राज्य में पर्यटन स्थलों के रखरखाव की स्थिति संतोषप्रद नही है। झारखंड अपने पर्यटन और प्राकृतिक धरोहरों को संवार कर उसे एक उद्योग का रूप देने में असफल रहा है। राज्य के जाने माने पर्यावरणवद्ि और भूगर्भशास्त्री नितिश प्रियदर्शी का कहना है कि अन्य राज्य जहां अपनी छोटी चीजों को भी पर्यटन के नाम पर भुना लेते हैं वहीं झारखंड में एक से एक स्थल और प्रागैतिहासिक धरोहरें हैं जो ऐसे ही असुरक्षित हैं, बर्बाद हो रही हैं।
बेहतर हो सरकार सौंदर्यीकरण कर इन स्थलों को और सुरक्षित रखे, संवारने के नाम पर कोई खर्चिला ठेका का खेल न हो, प्राकृतिक खुबसूरती, धरोहरों और पर्यावरण को बचा कर ही यह काम हो, ताकि देश विदेश से लोग झारखंड की खुबसूरती को देखने आये ?

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