जब बकरा बना निजाम

भ्रष्‍टाचार, गरीबी, लूट से त्रस्‍त एक राज्‍य में जब नेेताओं ने एक बकरे को मुख्‍यमंत्री बना दिया  उसके बाद क्‍या ?

मनोज शर्मा:

जब हम गांव में अपने खेत या बगीचे में किसी दूसरे के गाय, भैंस, बकरी को चरते हुये देखते थे तो उत्‍तेजित होकर अपने भाईयों के साथ दौड़ पडते थे और उस मवेशी को घेर कर पकड़  लाते अपने दरवाजे पर बांध देते थे  इस पुरी कवायद में हमें लगता जैसे हमने कोई युद्ध जीत लिया है हांलाकि इसके बाद कुछ होता नही था मवेशी का मालिक आता था थोडी बहुत चिरौरी करता और फिर ऐसा नही होगा कह कर अपना मवेशी लेकर चला जाता था हमारे बुजुर्ग भी उन्‍हें थोडी बहुत हिदायत देकर मामले को वहीं खत्‍म कर देते थे कभी कभी तो हमें ऐसा लगता जैसे हमारे बुजुर्ग हमारा मन रखने के लिये उन्‍हे हिदायत देते थे। तब मवेशी को हम तुरंत पकड़ लेते थे और खेत या बगीचे का कोई खास नुकसान नही होता था।

ऐसा ही वाकया प्रदेश स्‍तर पर हो रहा था एक प्रदेश कि पूरी फसल, बाग बगीचों प्राकृतिक संसाधनों, जनता कि उम्‍मीदों, आकांक्षाओं को कोई जानवर दिन ब दिन लीलते जा रहा था पर पकड़ में नही आ रहा था। कौन सा जानवर है़? कितना बडा़ उसका पेट है ? वह कब चरता है ? कुछ पता नही चलता था बस किसी मायावी कि तरह वह सब कुछ लील रहा था। जनता निराश हताश सिर्फ देख रही थी। मैं सोंच रहा था कि क्‍या अब वैसे अल्‍हड़, मस्‍त, तिलंगे किस्‍म के किशोर, युवा, या जाबांज नही रहे जो घेर कर उस राज्‍य को बर्बाद करने वाले जानवर को पकड़ लायें। पर ऐसा हो नही रहा था। जनता ने कई लोगों को जिनमें चेला, गुरू, से लेकर डो मिसाइल चलाने वाले तक को इस जानवर से निजात दिलाने का काम सौंपा पर सभी असफल रहे। तब जनता के नुमाईंदों ने मिलकर एक बकरे को प्रदेश का निजाम बना दिया लोकतंत्र में यह कोई आश्‍चर्य कि बात नही है कि एक बकरा किसी प्रदेश का मुखिया बन जाये। लोकतंत्र में ही यह संभव है कि चोर उचक्‍के, हत्‍यारे, दलाल, देशद्रोही, दंगाई, अनपढ जाहिल, देव, गंधर्व, यक्ष, किन्‍नर, वानर, गाय, भैंस, बकरे सभी चुन कर आ सकते हैं, आते भी हैं और पांच साल तक वह आबेहयात् पीये हुये रहते हैं अजर-अमर रहते हैं इन पांच सालों में इनका कोई भी कुछ बिगाड़ नही सकता इनके अगर दो टुकडे भी कर दें तो भी यह खत्‍म होने के बजाय राहू-केतू बन जाते हैं। लोकतंत्र के इसी विसंगति को देखकर अरस्‍तु ने कहा था कि प्रजातंत्र तो मुर्खों कि सरकार है।

तो बकरा भी चुनाव जीत कर आया था और बाकी प्रबुद्धजनों ने उसे समर्थन देकर प्रदेश का निजाम बना दिया गया, एक बंधु ने तो यह एलान भी कर दिया कि बकरा एक बहुत ही लोकप्रिय सरकार का मुखिया है। जनता को यह दलील दी गयी कि प्रदेश अपने पहले के निजामों के असफलता से वैसे ही पिछड गया है गरीब हो गया है इस लिये फिलहाल चुनाव कराना फजूलखर्ची भी होगी। इस बकरे को निजाम बना दिया गया है यह जरूर उस मायावी जानवर को भी पकड़ लेगा जो प्रदेश कि उम्‍मीदों, आकांक्षाओं और समृद्धी के सपने को चट करता रहा है, अब प्रदेश तेजी से विकास करेगा हमारी सारी अधूरी आकाक्षांए अब पूरी होंगी, खेतों में फसलें लहलहायेंगी, सडकों का जाल  बिछाया जायेगा, उद्योग धंधों कि भरमार होगी, बेराजगारी दूर होगी, एक मिनट भी बिजली नही कटेगी।

जनता ऐसी बातें सैकडों बार सुन चुकी थी इस लिये इन आश्‍वासनों में उसे कोई दिलचस्‍पी नही थी। वह ऐसे बकवास सुन-सुन कर उब गयी थी इस लिये बकरे को निजाम बनाना था सो बना दिया गया पर जनता को इससे कोई लेना देना नही था या यूं कहे जनता कुछ कर भी नही सकती थी। जो भी हो बकरा निजाम बन गया वह निजामत मिलने  के बाद फुला नही समा रहा था उसने कभी सपने में भी यह नही सोंचा था कि वह एक मिमियाने वाले बकरे से इस मुकाम तक पहुंच जाएगा अब वह प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण, खुबसूरत रमणीक दृश्‍यों से आच्छादित, धरती के अन्‍दर प्रत्‍येक खनिज को समेटे हुये एक समृद्ध भूभाग का मुखिया बन चुका था। इस पद पर सुशोभित होते ही उसके सुख सुविधाओं में अपार वृद्धी हुई उसके आगे पीछे वैसे-वैसे लोग पानी भरने लगे जिनके सामने बकरा कभी मिमियाने की भी कुब्‍बत नही रखता था आज सभी बकरे के हुक्‍म कि तामील करने के लिये एक पैर पर खडे थेा  शायद अरस्‍तु ने ऐसी ही  को विसंगतियों को देखा होगा और लोकतंत्र से उसको चिढ हुई होगी। खैर बकरे के निजाम बनते ही उससे दूर भागे उसके रिश्‍तेदार, स्‍वजन संगिनी सभी वापस आ चिपके उसके सैकड़ो मित्र और शुभचिंतक एकाएक पैदा हो गये थे।। बकरा आह्लादित था।

लोकतंत्र में एक विपक्ष जैसा तत्‍व भी होता है जो सिर्फ शोर करता है पर कुछ उखाड़ नहीं सकता। तो यहां भी विपक्ष में विरोधियों ने जरूर हाय तौबा मचा रखी थी वह प्रलाप कर रहे थे कोई विरोधी कहता बकरा क्‍या जाने राज चलाना यह तो मात्र कठपुतली है, इसे तो कोई और नियंत्रित कर रहा है। कोई कहता एक बकरे को मुखिया बना दिया प्रजातंत्र के लिये यह बहुत घातक है। बकरा भी अब मिमियाने के बजाय बोलने लगा था। वह बोलता कि जब राबडी़ मलाई, बहनजी, तानाशाह दीदी, किसी कि रखैल हिरोईन, नाचने गाने वाले भांड, साध्‍वी सरीखे लोग मुखिया बन सकते हैं तो एक बकरा क्‍यों नही आखिर मैं भी इसी सिस्‍टम से चुन कर आया हूँ।

जो भी हो विपक्षी यूं ही चिल्‍लाते रहे और बकरा अपनी निजामत का मजा लेने लगा। बकरा और उसके सहयोगियों समर्थको के पांचो उगंली घी में और सर कडा़ही में थे। कहा गया है कि सत्‍ता प्राप्‍त होते ही बेवकुफों और मूढ लोगों को भी दिव्‍य ज्ञान प्राप्‍त हो जाता है, उनके ज्ञान के बंद कपाट खुल जाते हैं और उन्‍हें राजनीति कि भाषा यूं आ जाती है जैसे मछली के बच्‍चे को तैरना आ जाता है इसके प्रमाण देशवासियों को कई बार मिल चुके हैं जैसे एक बार एक रसोई और अपने बाल बच्‍चों को संभालने वाली एक देहाती अनपढ़ महीला को मुख्‍यमंत्री बना दिया गया वह शुरू में मिमियाती थी पर सत्‍ता के टॉनिक ने कुछ ही दिनों में ऐसा असर दिखाया कि वह दहाड़ने लगी और अपने दुश्‍मनों को उखाड फेंकने कि बात कहने लगी, वैसे ही कर्नाटक के एक विनम्र किसान को बबुल के पेड के नीचे आम मिल गया वह देश का प्रधानमंत्री बना, हिंदी नही जानता था पर राजनीति की भाषा कब सीख गया और सौ करोड़ जनता को चराने लगे इसका अहसास तक किसी को नही हुआ। खैर बात बकरे कि हो रही थी तो बकरा भी एक बार सत्‍तासीन होते ही राजनीति के सभी गुर बस यूं ही पलक झपकते सीख गया और निष्‍कंटक होकर कैसे राज चलाया जाता है इस खेल में वह माहिर हो गया उसके राज में जब दिल्‍ली से आये सियार हुंआ- हुंआ करते तो वह उनका प्रतिकार करने कि बजाय कुछ टुकडे फेंक देता सियार का मुंह खाने में उलझ जाता और हुंआ-हुंआ बंद, वैसे ही जिन- जिन से संबंध मधुर रखने थे बकरे ने उन्‍हें फुसला लिया था विपक्ष के शोर गुल पर या किसी आरोप के लगने पर अजीब सी भाषा में मेंहे….. मेंहे…… करके कुछ अनाप शनाप बोल देता था जनता और विपक्षियों को कुछ समझ में नही आता था और पाठशाला के गुरूजी कहते ऐसा मान लिया जाय कि जवाब दे दिया गया है। अब सबसे बड़ी बात कि बकरे को जिस उददेश्‍य से निजाम बनाया गया था वह उददेश्‍य पीछे छुट चुका था स्‍वाभाविक था बकरा भी अपने पुर्व के निजामों कि तरह प्रमादी, झुठा, लालची और धनलोलुप हो चुका था।

प्रदेश का विकास, जनता कि गरीबी, युवाओं कि बेराजगारी, किसानों, मजदूरों के दुख दर्द से उसे कुछ लेना देना नही था वह तो ऐसे नशे में डुब चुका था जहां से उसे जिम्‍मेवारी जैसी बातें दिखाई ही नही पडती थीं। बकरे की टीम में अय्याश, लुटेरे, चोर उचक्‍के सभी थे नही थे तो वो लोग जो काम कर सकते थे यह कोई आश्‍चर्य कि बात नही थी जहाँ जाकर गुरू, चेले से लेकर डो मिसाइल मैन जैसे लोग भ्रष्‍ट हो चुके थे वहां एक बकरे का असफल होना लाजमी ही है।बकरे का दूध भात था, वह टेलेंडर बल्‍लेबाज की तरह था, जिससे जनता को वैसे ही कोई उम्‍मीद नहीं थी। बकरा जी भर के अपनी चौक़डी के साथ प्रदेश को लूटता रहा जनता बस टुकुर-टुकुर इन अजर अमर लुटेरों के समूह को देखती रही।

बकरे के राज में विकास के काम छोड़ बाकी सभी काम हो रहे थे विदेश कि सैर, जनता से टैक्‍स वसूली, नई गाडियां खरीदना, पार्टी देना, हलक को महंगी शराब से भीगोना, हिरोईनों को बुलवा कर नचवाना, नोट गिनने कि मशीन खरीदना, मांस मछली खाते हुये गांधी जयंती मनाना और जो ज्‍यादा चूं चपड करे उसे हरियाली देकर शांत कराना सब कुछ अनवरत चलता रहा कहीं कोई विरोध नहीं कोई आक्रोश नही।

प्रदेश का युवा वर्ग जो क्रांति ला सकता था वह गर्लफ्रेंड को खुश करने, मोबाईल पर दिन रात गाना सुनने, इंटरनेट पर दोस्‍ती करने, अश्‍लीलता खंगालने और दुसरे प्रदेशों में जाकर मार और लात जूते खाने में व्‍यस्‍त था । बुद्धीजीवी, चिंतक, साहित्‍यकार, पत्रकार, वर्ग फिल्‍मों में समाज में नग्‍नता और अश्‍लीलता पर चर्चा करने, कहानियों में गाली गलौज हो या नही इस पर चर्चा करने या किसी नंगी तस्‍वीर को देख कर इस बहस में उलझा रहा कि यह अश्‍लील है कि नही, प्रबुद्ध लोगों कि जमात अपने विरोधियों को नीचा दिखाने, प्रपंच करने, में लगी हुई थी, दिल्‍ली में बैठे आका जो बकरे का कान खींच सकते थे वह सभी अंधे और बहरे हो गये थे।

पत्रकारिता जो किसी को भी उखाड फेंकने कि ताकत रखती है वह खुद ही बकरे के सामने मिमिया कर कुछ हरियाली समेटने में लगी हुई थी। न्‍यूज चैनल्‍स स्‍वर्ग नर्क के द्वार दिखाने, डांस प्रतियोगिताओं को दिखाने, भविष्‍य बताने, भांडों द्वारा हंसने-हंसाने, अपने विरोधियों के खिलाफ भोंपू बजाने, विज्ञापन समेटने, हर गलत को सही और सही को गलत बताने में व्‍यस्‍त थे, पर बकरे के भ्रष्‍ट होने से प्रदेश में फैली अराजकता से किसी को कोई सरोकार नही था यूं लग रहा था जैसे सब एक स्‍वर में कह रहे हों

कोई नृप होय  हमें क्‍या हानि

पर हानि तो वहां कि जनता को हो रही थी। उनके खुन पसीने कि कमाई को बकरा तेजी से किसी मुलायम हरी घास कि भांति चबा-चबा कर लील रहा था आप सबों ने गौर किया होगा कि बकरे जैसा जीव बाजार में जहां साग सब्‍जी बिक रही हो वहां किसी लुच्‍चे  की तरह मुंह मार कर टमाटर, साग सब्‍जी समेट लेता है उसके बाद दुकानदार दो चार डंडे दे भी दे पर बकरे को इससे कोई फर्क नही पड़ता वह बड़ी तेजी से मुंह चलाते हुये सब कुछ गटक जाता है एक और खास बात मैं बताना चाहुंगा कि बकरे को सबसे पहले ईरान के लोगों ने पालना शुरू किया था क्‍योंकी बकरे को गाय भैंस कि तरह चारा नही डालना पड़ता है वह यहां वहां से कुछ भी खा कर अपना गुजर बसर कर लेता है और मोटा तगड़ा रहता है। यहां तो एक बकरे को निजाम ही बना दिया गया था। पर कोई भी वर्ग आंदोलित नही था कोई आक्रोशित नही था या फिर उन्‍हे यह पता था कि वे बकरा और इसकी बिरादरी का वो कुछ बिगाड़ नही सकते ये तो पांच सालों के लिये अमर हो चुके हैं। बहरहाल जनता कि उम्‍मीदों, आशाओं को चट करने का सिलसिला चलता रहा। नदीयां, तालाब झरने किसानों के खेतों को सिंचित नही कर रहे थे पर सिंचाई योजनाओं के नाम पर करोडो़ रू फुंके जा रहे थे, शहरों में कुकुरमुत्तों कि तरह माफियाओं और अमीरों के मॉल और अपार्टमेंट उग रहे थे। वही सड़कें खराब थी जिस सड़क पर चल कर बकरा सत्‍ता तक पहुंचा था। प्रदेश के वन संपदा को कोई चुपचाप लील रहा था वहां के खदानों से अमूल्‍य खनिज निकल रहे थे कहीं और जा कर समृद्धी ला रहे थे पर प्रदेश की आम जनता बेरोजगारी, भूख, और गरीबी से बेहाल थी, वहां कि सैकड़ो लड़कियां रोजगार के लिये महानगरों कि ओर रोज पलायन कर रही थीं उन महानगरों में जहां

प्रबुद्ध लोग।

सिविलाईज्‍ड लोग।

दुनिया को एक ग्‍लोबल विलेज मानने वाले लोग।

दरिद्रता के चिंतक विचारक लोग।

महान बाबा और तरह तरह के बापू लोग।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बेताज मैडम, युवराज।

शेयरों के उठा पटक को ही कायनात मानने वाले अर्द्धविक्षिप्‍त लोग।

मैनेजमेंट का फंडा सीख-सीख कर विदेशी कंपनियों के लिये अपने ही देशवासियों को ठगने वाले मेहनतकश लोग

किसी भी चीज को मैनेज कर लेने वाले लोग।

देश कि आम जनता के कष्‍ट और परेशानी पर सुसज्जित कक्षों में बैठ कर घंटो अंगरेजी में बहस कर अपनी खुजली मिटाने वाले लोग।

देश को टैक्‍स देनेवाले वर्ग, सत्‍ता तक पहुंचाने वाले वर्ग, मध्‍यवर्ग को जानवर  कहने वाले लोग। बसते हैं

वहां प्रदेश की लड़कियां बिक रही थीं । पर बकरा कान खुजाने का आनंद लेते हुये यह कहता रहा कि प्रदेश का विकास हो रहा है गरीबी दूर हो रही है। बकरे की पहुंच प्रदेश से बाहर दिल्‍ली दरबार तक हो गई थी और तो और बकरे ने गिनीज वर्ल्‍ड रिकॉर्ड में अपना नाम तक दर्ज करवा लिया था बतौर एक बकरा होते हुये तकरीबन दो साल तक निजाम बने रहने का।

पर बकरा औकात से ज्‍यादा खा चुका था और लाख पचाने का प्रयास करता रहा पर अपच हो ही गया बकरा कितना भी खाये पर वह कोई जंगली भैंसा, हाथी या नीलगाय नही है जो पूरे बीघा भर खेत को चट कर जाते हैं भैंस के बारे में तो कहावत ही है कि अघायलो भैंस चार कट्ठा यानी भैंस का पेट भरा हुआ भी हो तो भी वह 4 कट्ठा खेत चर सकती है बकरे कि हालत उस पेटू ब्राह्मण के जैसी हो गयी जिसने किसी भोज में इतना खा लिया था कि चल भी नही सकता था और लड़खडा कर गिर गया और उसके मुंह से रसगुल्‍ले बाहर आने लगे थे। सो बकरा भी आखिरकार औकात से ज्‍यादा खाने के कारण गिर गया और सब कुछ बाहर आ गया।

दरअसल हुआ ये कि उम्‍मीद के उलट जनता ने एक दिन देखा कि बकरे के कुछ जाने अनजाने सहयोगी ही उसे सिंग, कान से पकडे़ हुये पीठ से धकेलते घसीटते हुये ला रहे हैं और कह रहे हैं कि पकड़ लिया, पकड़ लिया यही है वो दुष्‍ट, भ्रष्‍ट, लालची जो अब तक हमारी खुन पसीने कि कमाई लुटता रहा, हमारे विकास को अवरूद्ध करता रहा, राज्‍य कि हरियाली और फसलों को चरता रहा देखो-देखो हमने पकडा़ है इसे हमने। अब इसके सारे कुकर्मों को उजागर करेंगे सजा दिलवायेंगे नही छोडे़गे इसे। उसे जनता के सामने लाने और चोर साबित करने कि कोशिश वही लोग कर रहे थे जिन्‍होनें कभी उछल कर बकरे को प्रदेश का निजाम बनाया था और जनता को यह भरोसा दिलाया था कि यह बकरा विकास बकरा साबित होगा। बकरा सफाई में बोलते रहा कि असली खेला तो शक्तिपरीक्षण में होगा, पर बकरा इस खेल में हार चुका था।

खैर बकरा पकड़ा गया और एकाएक निजामत से गिर कर उसकी हजामत हो गयी पकडने वालों ने कहा कि हमने इसे रंगे मुंह पकडा है इस लिये बकरा गिरफ्तार कर लिया गया। दरअसल ये वही लोग थे जिनकी खेत चरने की खुद की महात्‍वाकांक्षा जग गयी थी। अब बकरा जेल में डाल दिया गया जेल पहुंचते ही बकरा महान लोगों कि तरह बीमार हो गया और उसमें तरह तरह कि व्‍याधियां उत्‍पन्‍न हो गई पेट कि पथरी का दर्द, सीने में दर्द, मधुमेह, और भी न जाने क्‍या क्‍या बस फौरन ही वह अस्‍पताल में दाखिल हो गया और वहीं आराम करने लगा पर तबियत में सुधार आते हीं उसे फिर जेल भेज दिया गया यह सिलसिला दो तीन बार चला।

बाहर जिसे देखो उसकी जबान पर बकरा और बकरे कि करतूत छायी हुई थी कोई कहता अरे यह नीरीह सा सीधा सा दिखने वाला बकरा तो बहुत बडा पेटू और भ्रष्‍ट निकला, कोई कहता यह संभव ही नही कि एक बकरा अकेले ही इतने बडे लूट को अंजाम दे सके जरूर इसका पूरा गैंग रहा होगा और कई सफेदपोश लोग भी इसके पीछे होगें। बुद्धीजीवियों और प्रबुद्ध जनों के मुंह कि खुजली मिटाने का सामान बकरे कि गिरफ्तारी ने जुगाड कर दिया था, चैनल वालों को भी बेकार का डांस, नाग नागिन ,भूत प्रेत, आत्‍मा, भविष्‍यवाणी, बड़ी हस्तियों के बर्थडे और सगाई होना/ टुटना, सड़े गले पूरानी खबरों को एक्‍सक्‍लूसिव खबर बता कर दिखाने से अलग कुछ सामान मिल गया था लब्‍बोलुआब ये की बकरा एक अतंर्रारष्‍ट्रीय हस्‍ती बन गया था आज वह गिरफ्तार होकर जितना नाम कमा रहा था उतना नाम तो उसने निजाम बनने पर भी नही कमाया था बकरे ने सचमुच ही लूट और भ्रष्‍टाचार के सारे किर्तिमान ध्‍वस्‍त कर डाले थे अब तक घोटाले या लुट के बडे़ मामले भी कुछेक सौ करोड़ तक के ही थे पर बकरे ने 4000 या 6000 करोड़ का घोटाला किया था, बाकि के घोटालेबाज जहाज खरीदते थे पर बकरे ने जहाज के साथ बदंरगाह ही खरीद लिये थे बाकि के घोटालेबाज सोना, हीरा, मोती कही बैंक में रखते थे पर बकरे ने विदेशों में इनके कई खदान ही खरीद रखे थे देश विदेश और महानगरों में मकान, जमीन, अपार्टमेंट तो जैसे बकरे के जूठन जैसी संपत्ति थी। इन सब के खुलासों पर विपक्षी कहने लगे बकरे को पकड़ने से क्‍या होगा अरे इस बकरे के मालिक को पकडो़ आखिर असली दोषी तो इसका मालिक है जिसने इस भुक्‍खड पेटू बकरे को प्रदेश में छुट्टा छोड़ दिया और इस कमबख्‍त ने सब कुछ सफाचट कर डाला, पर बकरे का कोई मालिक सामने नही आया ये वही बकरा था जिसके कई- कई मालिक निजाम बनते समय थे कईयों का वह दुलारा था पर आज बकरे से सभी कन्‍नी काट चुके थे बकरा अपने जिस भी आका या सहयोगी को देखता वह वहां से भाग खडा होता ऐसा दिखाता जैसे वह इस बकरे को नही जानते। हालात ये थे कि जिनके साथ बकरा गलबहियां डाले घुमता था या जो बकरे के निजाम बनने के सबसे बडे हामी थे वह ऐसा बयान दे रहे थे जैसे कह रहे हों ये बकरा कैसा जीव है? कहां पाया जाता है? क्‍या कोई विदेशी नस्‍ल का जीव है ?

विपक्षियों ने शोरगुल मचाना शुरू कर दिया वे कथित गांधीवादियों को असली मुजरिम बताने लगे इस पर गांधीवादियों ने कहा कि अरे ये बकरा तो पहले आप हीं का पालतू था आप लोगों ने ही इसे इस तरह से चरना सिखाया होगा ट्रेंड तो आप ही लोगों का किया हुआ है।

इस पर विपक्षियों का कहना था कि हमने तो इसे कब का अपने यहां से भगा दिया था आपलोगों ने हीं इसे शरण दिया पाला पोसा और गले में बिना घंटी बाधे खेत में चरने को छुट्टा छोड् दिया यह खुद भी हरियाली चट करता रहा और आप सब लोगों को भी हरियाली चखाता रहा आज इसे खुद ही पकड कर पाक साफ बन रहे हैं आपलोग अरे असली भ्रष्‍ट, घोटालेबाज तो आप लोग हीं हैं।

गांधीवादीयों ने कहना प्रारंभ किया हमने आज तक किसी भ्रष्‍ट का साथ नही दिया है किसी को प्रश्रय नही दिया है हमारा ईतिहास रहा है जब तक इस बकरे कि हकीकत हम नही जानते थे हमने इसका साथ अवश्‍य दिया जैसे ही हमारे मैडम को इसकी असलियत का पता चला देखो हमने इसे पकड़ कर जेल में डाल दिया है चाहे यह हमारा अपना ही सहयोगी था पर हम अब इसकी जांच करेंगे और कार्रवाई करेंगे।

विपक्षियों ने कहा बकरे की हकीकत जानने में आखिर दो साल क्‍यों लग गये दो साल तक क्‍या अंधे थे और आज एकाएक ज्ञानचक्षु खुले हैं सीधे बोलिये की दो साल तक बकरे का उपयोग किया बकरे को खुला चरने को छोड़ दिया खुद भी हरियाली चबाते रहे अब मतलब निकल  गया है तो बकरे की बलि चढ़ा रहे हैं।

यानी तेरा बकरा, तो तेरा बकरा का खेल चलता रहा।

जनता यह सब आरोप प्रत्‍यारोप देखती सुनती रही वह टेनिस खेल के  दर्शकों कि तरह अपने सर और नजरों को इस पाले से उस पाले घुमाती रही।

उधर बकरा जेल से ही बाहर हो रहे इस बहस, प्रहसन को देख सुन रहा था और मंद-मंद मुस्‍कुरा रहा था। बकरे कि आंखों के सामने देश में अब तक के हुये सभी बड़े घोटालों, अपराध और स्‍कैंडल जांच उसके हश्र घुमने लगे उसे एकाएक यह तथ्‍य ज्ञात हुआ कि इस देश में किसी भी बड़े कांड में न्‍यायालय, कानून और पूरा तंत्र आज तक मुख्‍य दोषी को नही पकड़ पाया है और जांच कई दशकों तक चलते हैं अंतहीन जांच प्रक्रिया, सबूत, गवाह के खेल, ट्रक भर भर कर कोर्ट तक ढोते कागजातों, अंग्रेजी में बहस बकवास करने वाले काबिल खुर्राट वकीलों, कानून को घोल कर पी चुके बुढा गये पर किसी काम के नही रह गये चौपट अंधे जजों की सारी कवायद पूरी होने तक, सत्‍ता के बदलाव, नये समीकरणों के अड़गें के बीच जनता, शासन और कानून सभी उस घोटाले को भूल जाते हैं और दोषी को पकड़ने की बात तो परलोक कि बात हो जाती है हां ज्‍यादा शोर होने पर कुछ छोटी मछलियों को ठिकाने लगा दिया जाता है और मेरे कांड में तो छोटी मछलियों कि कोई कमी नही है। चारा घोटाला, बोफोर्स घोटाला, पनडुब्‍बी घोटाला, अलकतरा घोटाला, निठारी कांड, फ्लोट पंप घोटाला, गंजी बनियान घोटाला, जूता चप्‍पल घोटाला और भी न जाने कौन कौन से घोटाले इस देश में हुये उनकी जांच हुई पर कानून असली मुजरिम को नही पकड़ पाया आज तक कानून ने खम ठोक कर किसी को आरोपी साबित नही किया यानि जितना बड़ा घोटाला उतनी ही लंबी जांच प्रक्रिया और उतना ही ज्यादा चांस दोषी के बच निकलने का यही ईतिहास इस आजाद देश के कानून, न्‍यायपालिका का रहा है इस तथ्‍य को समझते ही बकरे की बांछे खिल उठी उसे भरोसा था कि जांच में और भी बड़े नाम जुड़ेंगे, मेरे भी आका लोग अपने बचाव में जांच को प्रभावित करेंगे ही, मुझे बस शांत बैठे रहना है तब तक सत्‍ता बदल जाएगी निजाम बदल जाएगा और कोई नया बकरा, घोड़ा, गदहा, जंगली भैसा, नीलगाय सरीखा भी तो पैदा हो ही जाएगा आखिर मुझसे बड़े-बड़े जावनर हैं इस प्रदेश में लोग बाग उनकी करतूतों में उलझ जाऐंगे अंत में लोग मेरा नाम तक भूल जाऐंगे महां… हा… हा… हा…धत् मैं बेकार में चिंता में घुला जा रहा था। ऐसा सोंच बकरा जेल में निश्चिंत हो सो गया।

उस रात बकरे को जेल में ही अच्‍छी नींद आयी उसने स्‍वप्‍न भी देखे जिसमें वह 15 नवंबर 2000 को बनाये गये एक बड़े ही समृद्ध हरे-भरे चारागाह के बीच खड़ा है चारो ओर हरियाली और स्‍वादि‍ष्‍ट चारे कि भरमार है वह ताबड़तोड़ चबा रहा है खाये जा रहा है पर पेट है कि भर नही रहा और कोई उसे रोक भी नही रहा है, वह जिन आकाओं से भय खाता था वह लोग भी चरने और चबानें में मशगूल हैं किसी को रोकने-टोकने की फुर्सत नही है सभी जितना ज्‍यादा हो सके उतनी हरियाली उदरस्‍थ करने में लगे हुये हैं। चारागाह के चारो ओर साढ़े चार करोड़ नंगे भूखे लोगों कि एक भीड़ चारागाह के किनारे किनारे खड़ी है उनमें कुछ कटोरा लिये हुये हैं, युवा डिग्रीयों का बोझ लिये हुये हैं, सभी चिल्‍ला रहे हैं कि ये बाग खेत हमारा है तुम लोग इस तरह से इसे चट नही कर सकते इस पर हमारा हक है क्‍या इसी लिये हमने वर्षों आंदोलन किया था ये आवाजें साढ़े चार करोड़ लोग निकाल रहे थे पर आश्‍चर्य कि बात ये थी कि चारागाह में ताबड़तोड़ चर रहे बकरे और अन्‍य सहयोगियों, मालिकों, चरवाहों तक ये आवाजें नही पहुच रही थी या फिर सभी सुन रहे थे पर न सुनने का स्‍वांग कर रहे थे कुछेक ने तो चरने में खलल न हो इसके लिये बकायदा कानों में ठेप्‍पी तक लगा रखे थे

बकरा एक बार सर उठा कर उस आबादी कि ओर देखने लगा तो उसे साथ चरने वाले में से किसी एक कि आवाज सुनाई दी जो चिल्‍लाने वाले लोगों  की ओर देख कर हंसते हुये कह रहा था

don’t cry for meal get the meal

एक ताबड़तोड़ चरने वाला गेंडा तो कह रहा थी कि

दम है तो घास चर, वरना बर्दाश्‍त कर

 

बाकी सभी इस तरह हरियाली में मुंह मारे हुये थे कि प्रतीत हो रहा था जैसे वहां चार करोड़ कि सजीव आबादी न होकर रोड़ा पत्‍थर हो और कोई शोर नही बल्कि सन्‍नटा पसरा हो पर बकरे का स्‍वप्‍न शोरगुल से टुट गया जगने पर उसने देखा कि सभी बकरे को गालियां बक रहे हैं, मारो -मारो कह रहे हैं। एक ने बकरे का हाथ भी तोड़ दिया।

दिन रात बहस होती रही बकरा किसका है यह तय नही हो पाया पर देश के दूसरे हिस्‍सों में भी लोग प्रदेश का नाम बकरे के करतूत से ही पहचानने लगे थे। दिल्‍ली तक में प्रदेश के लोगोंसे पूछा जाता था कि ओह तो आप बकरे वाले राज्‍य से हैं?  अतंत: प्रदेश में चुनाव का बिगुल बज गया। जनता दिग्‍भ्रमित थी की कौन सही कह रहा है कौन गलत अंतत: देश के ईतिहास में पहली बार एक बकरे को ही मुद्दा बना कर चुनाव हुये जनता भ्रम का शिकार रही कुछ गांधीवादियों के झांसे में आये कुछ औरों के झांसे में कुछ एक गुरू घंटाल के झांसे में। मुख्‍य बात ये थी कि  इन सबों को सत्‍ता कि कसौटी पर पहले भी आंका जा चुका था और सब के सब खोटे साबित हो चुके थे पर जनता के सामने चुनने को चोर नही तो गिरहकट का ही विकल्‍प था सो एक बंटे हुये जनादेश के रूप में चुनाव परिणाम आया।

नया निजाम कौन बना यह कोई मुद्दे कि बात नही है हमारे देश में चुनाव के बाद अक्‍सर ही सांप, नेवलों  में, भी पांचसाला टिकाउ दोस्‍ती हो जाती है सो ऐसी ही कोई बेमेल दोस्‍ती हुई और नया निजाम कुर्सी पर काबिज हो गया। सारा ऊफान थम गया। बकरे की सोंची हुई ये बातें कि वो बिल्‍कुल बरी हो जाएगा सिर्फ उसकी खुशफहमी नही थी क्‍योंकी जो लोग बकरे के पकड़े जाने के बाद सबसे ज्‍यादा हाय तौबा मचाये हुये थे, बकरे के भ्रष्‍टाचार  की जांच सीबीआई से कराने कि बात कर रहे थे वही लोग सत्‍ता में आने के बाद इससे परहेज करने लगे उन्‍हें अब सत्‍ता चलाने और सुख भोगने में मजा आ रहा था अब चारागाह पांच साल तक के लिये उनका था। बकरे का भ्रष्‍टाचार और उसकी जांच उनके लिये अब कोई मायने नही रखता था सो उन्‍होनें कह दिया कि कानून अपना काम करेगा। अब बकरा जेल में है ,इस उम्‍मीद में है कि अब ऐसा कुछ होगा कि मैं बरी हो जाउंगा आखिर मुझसे पहले भी कैसे-कैसे महान लोग भ्रष्‍टाचार में फंसे हैं और किसी का भी बाल बांका नही हुआ फिर भला मैं कैसे दोषी साबित हो जाउंगा, पर जमानत मिलने या बरी होने कि कोई उम्‍मीद नजर नही आ रही थी।

बकरा कभी कभी हताश भी हो जाता था और बड़बड़ाने लगता था कि यह सब क्‍या मैने अकेले किया है स्‍साले और भी तो बड़े-बड़े लोग मेंरे साथ थे कभी कभी उसे यह भी अहसास होता है कि माहीर और चालाक लोगों ने उसका उपयोग किया है और बाद में उसे फंसा दिया है ऐसा सोंच वह खुद पर गुस्‍सा करने लगता है। ऐसे ही एक दिन एक पत्रकार जिसका नाम रामस्‍नेही (रामस्‍नेही पगला गया कथा में इस पत्रकार की पूरी कहानी आप पढ सकते हैं )था उसका सामना जेल में बकरे से हो जाता है। रिपोर्टर को किसी के दिल कि बात सुनने कि बीमारी है उसे बकरे के दिल से ये आवाजें सुनाई पड़ गयी….

एक बकरे को हरे भरे चारागाह कि बागडोर सौंप दी ,सकी तो यह फितरत है कि सारे चारागाह को चट कर जाएगा आखिर गधों और बकरों ने कब हरियाली की फिक्र की है?आखिर बाकी भी तो मेरे साथ सारा खेत चट किये हैं, मैने कब कहा था कि मुझे निजाम बनाओ खुद ही निजाम बनाया अब लग रहा है कि सुली पर लटका देंगे। मैने कुछ गलत नही किया मुझसे विकास कि उम्‍मीद लगाये बैठे थे? मैं चाह कर भी विकास के काम नही कर सकता था भला एक बकरा विकास का काम कैसे कर सकता है? मुझे तो पता ही नही है कि विकास का कोई काम करना हो तो शुरूआत कहां से करेंगे मैं आदतन बिल्‍कुल सही हूं अपनी जाति फितरत और औकात के अनुसार मैने काम किये हैं इसमें कुछ भी गलत नही है पर पता नही जनता, कानून, प्रवर्त्तन निदेशालय सभी आखिर मेरे पीछे क्‍यों पड़े हैं । मुझ पर विकास अवरूद्ध करने और सिर्फ लुट खसोट का ईल्‍जाम लगा रहें हैं पर इन चपाट लोगों को कौन समझाये कि नौ सालों में मुझसे पहले इस पुरे प्रदेश में एक फ्लाईओवर का पिलर तक किसी ने नही बनवाया, राजधानी में कुछेक सड़कों को छोड़ दें तो एक भी ऐसा कोई काम नही हुआ जो यह दर्शाता हो कि आम जनता के लिये कुछ किया गया हो, सभी चिल्‍लाते रहे बिजली, रोजगार, उद्योग, ला देंगे पर कोई माई का लाल इस दिशा में एक कदम भी काम नही कर पाया पर स्‍साले सब के सब मुझे ही दोष देते हैं कौन बताये इन्‍हें कि मेरे को सजा होना मायने नही रखता एक बकरे को सजा दे देने भर से यह प्रदेश खुशहाल नही होगा यहां तो नीलगायों का पूरा झुंड पुरे प्रदेश को चट कर जाने को खुर पटक रहा है

उस रिपोर्टर ने ये बातें बकरे के दिल से सुनीं थी और उसने ये बातें हुबहु समाचार पत्र में प्रकाशित करवा दिया । जनता ने इस रिपोर्ट को पढ़ा किसी ने इसका मजाक उड़ाया, किसी ने कहा  बकरे के सोंचने का स्‍तर ऐसा ही होता है, कुछ लोगों ने कहा बकरा अपने जगह बिल्‍कुल सही सोंच रहा है, प्रबुद्ध और चिंतनशील लोगों का तबका बकरे के इन विचारों को लेकर पोस्‍टमार्टम करने लगा है ,कोई बुद्धीजीवी कह रहा है कि

बकरे कि सोंच संविधान के खिलाफ है।

कोई कह रहा है कि क्‍या कानून में ऐसा कोई उपाय है कि किसी के संविधान के खिलाफ सिर्फ मन में सोंचने पर भी कार्रवाई हो सके।

कोई कह रहा है पहले भ्रष्‍टाचार कि परिभाषा तो तय हो? तभी माना जायेगा कि बकरे कि सोंची गयी बातें गैरकानूनी हैं।

एक विचारक ने तो यहां तक कह दिया कि बकरे कि सोंच में कुछ भी गलत नही है वह अपने जाति और क्षमता के अनुसार बिल्‍कुल सही सोंच रहा है गलती तो बकरे को निजाम बनाने वाले लोगों की है

यह सब बातें सुन एक अन्‍य प्रबुद्ध व्‍यक्ति ने कहा की इन बातों ने एक नयी बहस को जन्‍म दिया है इस लिये इस पर बहुत ही ईमानदारी से सोंच विचार मंथन की आवश्‍यकता है।

बहरहाल बकरा जेल में है वह कभी हताश निराश होता है कभी बरी होने की उम्‍मीदें पालता है जनता अब धीरे धीरे उसका नाम भी भूलते जा रही है प्रदेश में निजाम बदल चुका है और ये कर देंगे वो कर देंगे स्‍वर्ग से पारिजात पेड़ उखाड़ कर यहां लगा देगें ऐसा ही दावा सरकार कि ओर से किया जा रहा है।

जनता पहले कि तरह ही नाउम्‍मीद और मायूस है प्रदेश अपराध, भ्रष्‍टाचार, बेरोजगारी, पलायन, भूखमरी, सुखाड़, नक्‍सली आतंक, सड़क जाम से त्रस्‍त है पर बकरे के जेल में सोंची गयी बातों  के  प्रकाशित होने से प्रदेश की जनता को जबतब एक स्‍वप्‍न दिखाई पड़ना शुरू हो गया है उन्‍हे स्‍वप्‍न में नीलगायों और जंगली भैसों का एक उन्‍मत्त झुंड दिखाई पड़ता है जो पूरे प्रदेश को चट करने के लिये दौड़े चला आ रहा है उन्‍हें कोई भी बाड़ या अवरोध नही रोक पा रहा है। सभी लोग चाह कर भी कुछ नही कर पा रहे हैं,  लोग किसी चमत्‍कार कि उम्‍मीद लगाये आसमान की ओर ताक रहे हैं।

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