झारखंड में हो रहा पहाड़ों का खातमा

श्‍वेता पाठक

स्‍कूल ऑफ मास कम्‍युनिकेशन

रांची विश्‍वविद्यालय, रांची

झारखंड, जो कभी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पहाड़ियों के लिए जाना जाता था, अब तेजी से अपने पहाड़ियों को खोता जा रहा है। विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों के अनुसार, राज्य में पहाड़ियों का खत्म होना गंभीर चिंता का विषय बन गया है।

अवैध खनन:
पहाड़ियों के खत्म होने का सबसे बड़ा कारण अवैध खनन है। झारखंड में खनिज संसाधनों की प्रचुरता है, और इसे भुनाने के लिए अवैध खनन गतिविधियों में तेजी आई है। पत्थरों और खनिजों की अवैध खुदाई से पहाड़ियों का विनाश हो रहा है।

निर्माण कार्य:
राज्य में बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण पहाड़ियों का कटाव हो रहा है। भवन निर्माण और सड़क विस्तार के लिए पहाड़ियों को काटा जा रहा है, जिससे उनकी प्राकृतिक संरचना नष्ट हो रही है।

वनों की कटाई:
वनों की अंधाधुंध कटाई भी एक बड़ा कारण है। जंगलों के कटने से पहाड़ियों की मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है, जिससे पहाड़ियां कमजोर हो जाती हैं और धीरे-धीरे खत्म हो जाती हैं।

जलवायु परिवर्तन:
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भी पहाड़ियों की स्थिति बिगड़ रही है। बढ़ती गर्मी और असामान्य बारिश से मिट्टी का कटाव हो रहा है, जिससे पहाड़ियों की संरचना कमजोर हो रही है।

प्रभाव:
इसका पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। पहाड़ियों के खत्म होने से न केवल प्राकृतिक सुंदरता कम हो रही है, बल्कि जलस्रोत भी प्रभावित हो रहे हैं। इससे स्थानीय जनजीवन और कृषि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

सरकारी कदम:
राज्य सरकार ने पहाड़ियों को बचाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जैसे कि अवैध खनन पर सख्ती, वृक्षारोपण अभियान, और पर्यावरण संरक्षण कानूनों का कड़ाई से पालन। लेकिन इन कदमों का प्रभाव अभी तक संतोषजनक नहीं रहा है।

समाज की भूमिका:
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के साथ-साथ समाज को भी पहाड़ियों को बचाने के लिए जागरूक होना पड़ेगा। लोगों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझना होगा और पहाड़ियों के संरक्षण के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

यदि हम समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते हैं, तो झारखंड अपनी पहाड़ियों की प्राकृतिक धरोहर को पूरी तरह खो सकता है। पहाड़ियों का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है और इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।

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