कीटों की कमी से परागण पर संकट

शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया भर में करीब 200 करोड़ छोटे किसानों की पैदावार के लिए इन छोटे जीवों द्वारा दी जा रही सेवाएं विशेष रूप से मायने रखती है
वैश्विक स्तर पर जिस तरह से परागण करने वाले जीवों में कमी आ रही है, उसके चलते करीब 90 फीसदी जंगली पौधों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। यही नहीं यह जीव दुनिया की करीब 85 फीसदी सबसे महत्वपूर्ण फसलों के लिए भी जरुरी हैं, ऐसे में उनकी उपज पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। गौरतलब है कि परागण करने वाली यह मधुमखियां और अन्य कीट विश्व के करीब 35 फीसदी खाद्य उत्पादन में अपना योगदान देते हैं। यदि इन परागणकर्ताओं द्वारा दी जा रही सेवाओं के सालाना मूल्य को आंकें तो वो करीब 14.8 लाख करोड़ रुपए से 29.5 लाख करोड़ रुपए के बीच बैठता है। वहीं यदि छोटे या सीमान्त किसानों की बात करें जिनकी जोत 2 हेक्टेयर से कम है, उनकी संख्या कुल किसानों का करीब 83 फीसदी है। शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया भर में करीब 200 करोड़ छोटे किसानों की पैदावार के लिए इन छोटे जीवों द्वारा प्रदान की जा रही सेवाएं विशेष रूप से मायने रखती है।
यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ गॉटिंगेन द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आई है, जिसमें वहां के कृषि विज्ञानियों ने छोटे किसानों की खाद्य सुरक्षा के लिए परागणकों के महत्व पर जोर दिया है। ऐसे में जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित इस शोध के अनुसार यदि इन परागण करने वाले जीवों पर ध्यान दिया जाए तो पैदावार में इजाफा किया जा सकता है। देखा जाए तो छोटे किसानों को इन परागण करने वाले जीवों से सबसे ज्यादा फायदा होता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि जोत का आकार छोटा है तो वहां बड़े क्षेत्रों की तुलना में परागण के माध्यम से पैदावार में आ रही गिरावट को बेहतर तरीके से कम किया जा सकता है।
पैदावार साथ-साथ गुणवत्ता के लिए भी मायने रखता है परागण
देखा जाए तो बड़ी संख्या में छोटे किसान दक्षिण गोलार्ध में हैं जो भूख और कुपोषण से पीड़ित हैं। वहीं यदि पोषक तत्वों से भरपूर फसलों जैसे फलों और मेवों की बात करें तो वो काफी हद तक परागण पर निर्भर करती हैं साथ ही यह फसलें स्वास्थ्य के लिए भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती हैं। इस बारे में गॉटिंगेन विश्वविद्यालय और इस शोध से जुड़े शोधकर्ता तेजा शांटके ने बताया कि कृषि में फसलों को कीटों से बचाने और अच्छी खाद के साथ-साथ इन परागण सेवाओं पर कहीं अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। परागण का फायदा सिर्फ फलों की पैदावार तक ही सीमित नहीं है, यह उनकी गुणवत्ता के लिए भी मायने रखता है। उदाहरण के लिए उनमें कितने पोषक तत्व हैं और इन फलों को कितने समय तक संग्रहीत किया जा सकता है, यह भी महत्वपूर्ण है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में जहां खेतों का आकार छोटा है और किसान फसलों के साथ-साथ वानिकी पर भी निर्भर हैं, वो इसके लिए विशेष रूप से उपयुक्त हैं, क्योंकि वहां अन्य क्षेत्रों के मुकाबले परागण करने वाले जीवों की कहीं ज्यादा प्रजातियां हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि परागण करने वाले जीवों में आ रही गिरावट के लिए काफी हद तक खेतों में बढ़ता केमिकल का उपयोग, मोनोकल्चर और इनके अर्ध-प्राकृतिक आवासों को हो रहा नुकसान जिम्मेवार है, जिसपर कहीं अधिक ध्यान देने की जरुरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *