वरीय संवाददाता
भारतीय कृषि को मॉनसून के साथ जुआ कहा गया है। यानि इंद्रदेव की कृपा हुयी तो कृषि धन्य धान्य से समृद्ध होगी अन्यथा कृषक निराश ही रहेगा। भले हम कितने भी विकास का दावा करें, पर हम आज भी मॉनसून पर निर्भर हैं, पर अब कुछ बदलाव भी दिख रहे हैं।
पूरे देश की तरह झारखंड के अधिकतर किसान भी खेती के लिए बारिश पर निर्भर हैं और अधिकतर किसान अपनी पूरे खेत में खेती तक नहीं कर पाते। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए झारखंड में एक योजना के तहत महिला किसानों के समूह को सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप दिए जा रहे हैं। स्थायी पंप के साथ-साथ इसमें साइकिल पंप भी दिए जा रहें हैं जिससे छोटे-सीमांत किसान अपने खेत की सिंचाई कर सकें। इस जोहार योजना की एक खास बात यह है कि इसमें बोरिंग कर भूजल के दोहन की इजाजत नहीं दी जाती। केंद्र की कुसुम योजना में जहां एक तरफ भूजल के दोहन का डर बना हुआ है वहीं जोहार योजना के इस प्रावधान से जल संवर्धन की उम्मीद भी बढ़ी है। झारखंड के खूंटी जिले की रहने वाली परमेश्वरी देवी के पास तीन एकड़ खेती योग्य जमीन है पर उन्होंने पहली बार अपने पूरे खेत पर धान की रोपाई की। वह भी डीजल के लिए भाग-दौड़ किये बिना। पिछले साल इन्होंने कुल 12 क्विंटल धान उपजाया, इस बार 30 क्विंटल धान की उपज हुई। करीब 1,200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा और 36,000 रुपये की आमदनी हुई।
6प्रतिशत से भी कम किसानों के पास सिंचाई के अपने साधन
झारखंड में ऐसे ढेरो किसान है जो सिंचाई की व्यवस्था न होने की वजह से अपनी पूरी जमीन पर खेती नहीं कर सकते। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट, 2019 वॉल्यूम 2 से झारखंड के कमजोर सिंचाई व्यवस्था का पता चलता है। इसके अनुसार झारखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 7,972 हजार हेक्टेयर है। इसमें से केवल 1,385 हजार हेक्टेयर शुद्ध बोया गया क्षेत्र है। कुल क्षेत्रफल का 17.37 फीसदी। यहां लगभग 31 प्रतिशत भूमि परती है। झारखंड के साथ ही अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ की भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति लगभग एक समान है। पर यहां झारखंड की तुलना में शुद्ध बोआई क्षेत्र का प्रतिशत काफ़ी बड़ा है। छत्तीसगढ़ का शुद्ध बोया गया क्षेत्र इसके भौगोलिक क्षेत्र का 33.94 प्रतिशत है।
झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग के अनुसार राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 37 प्रतिशत भूमि खेती योग्य है, पर झारखंड में कृषि मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर है। राज्य में कुल बोए गए क्षेत्र के सिर्फ़ 15 फ़ीसदी हिस्से में ही सिंचाई की सुविधा है और 6प्रतिशत से भी कम किसानों के पास सिंचाई का कोई उपकरण उपलब्ध है।
चुनौतियां एवं आशंकायें भी
किसानों को मुफ़्त बिजली या सौर ऊर्जा के पंप देने की अपनी चुनौती रही है। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवम उत्थान महाअभियान (पीएम कुसुम) के तहत भी किसानों को सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप कम लागत (सब्सिडी) पर उपलब्ध कराए जाते हैं। कुसुम योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने 20,00,000 सौर ऊर्जा से चलने वाले कृषि पंप की स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि केंद्र सरकार की इस योजना में भूजल का अत्यधिक दोहन, चिंता का विषय रहा है। राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में वर्ष 2020 में एक अध्ययन में कहा गया है कि किसान भूजल को निजी संपत्ति मानते हैं। अधिक से अधिक पानी निकालने को अपनी उपलब्धि समझते हैं। इस अध्ययन में यह संभावना जतायी गई है कि सौर पंप से किसान भूजल का अधिक दोहन कर सकते हैं।महाराष्ट्र के जलगांव में ऐसे अनुभव हो चुके हैं कि पहले किसानों को बिजली रात में दी जाती थी। फिर वहां सौर पंप लगाए गए और भूजल का स्तर नीचे चला गया। यानी दिन मे बिजली मिली तो किसानों को अधिक देर तक पंप चलाने का मौका मिला।
पर्यावरण के मुद्दों पर सक्रिय एक स्वयंसेवी संस्था इंटरनेशनल फोरम फॉर इनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आई फॉरेस्ट) में अक्षय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन विभाग की प्रबंधक मांडवी सिंह कहती हैं, “पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में मुफ़्त बिजली मिलने से भूजल के अत्यधिक दोहन का मामला स्थापित हो चुका है। सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप में भी कोई लागत नहीं लगने वाली इसलिए यहां भी यह डर तो रहेगा ही। भारत में सिंचाई की वजह से भूजल का स्तर बहुत तेजी से नीचे जा रहा है। 2018 में आए एक अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर भारत में भूजल का स्तर 19.2 गीगाटन प्रति वर्ष के हिसाब से नीचे जा रहा है।